वाराणसी के Kabir chaura Math मूलगादी परिसर में सेंसर से चलेगा कबीर का करघा और पानी में गूंजेगी बानी

श्रमसाधक संत की कर्मस्थली में उनके करघे की खटर-पटर सुनाई देगी तो पानी में गूंजती बानी ठिठकने पर विवश करेगी। यह सपनीली हकीकत कबीरचौरा मठ मूलगादी परिसर स्थित उसी नीरू-नीमा टीला पर हाईटेक कुटिया के रूप में आकार पा रही है!

By Saurabh ChakravartyEdited By: Publish:Tue, 13 Oct 2020 08:10 AM (IST) Updated:Tue, 13 Oct 2020 01:16 PM (IST)
वाराणसी के Kabir chaura Math मूलगादी परिसर में सेंसर से चलेगा कबीर का करघा और पानी में गूंजेगी बानी
वाराणसी के कबीरचौरा मठ में कबीर की झांकी।

वाराणसी [प्रमोद यादव]। करघे के जरिए कर्म को धर्म बताने वाले, जीव-आत्मा व परमात्मा के संबंधों को समझाने वाले संत कबीर एक बार फिर अपनी कर्मस्थली में संदेश देते नजर आएंगे। श्रमसाधक संत की कर्मस्थली में उनके करघे की खटर-पटर सुनाई देगी तो पानी में गूंजती बानी ठिठकने पर विवश करेगी। यह सपनीली हकीकत कबीरचौरा मठ मूलगादी परिसर स्थित उसी नीरू-नीमा टीला पर हाईटेक कुटिया के रूप में आकार पा रही है जहां कबीर ने जीवन जीना सीखा और इस कला का देश-दुनिया को संदेश दिया।

बांस की फट्ठियों और लकड़ी का आभास कराते चुनार के पत्थरों से इसका ढांचा तैयार हो चला है। दो हिस्सों में बंटी झोपड़ी बाहर से सामान्य नजर आएगी लेकिन जर्मनी व नीदरलैंड की तकनीक और अमेरिकन सेंसर इसे खास बनाएगा। झोपड़ी के एक हिस्से में कबीर साहब का स्वचालित ताना-बाना होगा। झोपड़ी में प्रवेश करते ही स्वत: करघे की आवाज संग कबीर की लोकप्रिय बानी झीनी-बीनी चदरिया... पूरी मिठास के साथ कानों में घुलती जाएगी। कदम आगे बढ़ते ही ढिबरी (दीपक) अपने आप जल उठेगी और परिसर स्वाभाविक रूप से ध्यान -साधना के लिए विवश करेगा। पास में स्थित नीरू-नीमा की मजार व ऐतिहासिक कुएं को भी सजाया-संवारा जाएगा। इसके पास फव्वारा भी होगा जिसकी लाइट में कबीर का जीवन दर्शन नजर आएगा तो उसमें निहित अर्थों को साउंड सिस्टम बताएगा।

ज्ञान-विज्ञान का समावेश

कबीर के ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के समावेश से बन रही कुटिया में कोलकाता के कारीगरों ने रेलिंग व बीम को लकड़ी का आकार दिया है। भागलपुर के मिस्त्रियों ने बांस की फट्ठियों से सजाया, स्थानीय कारीगरों ने भी कौशल दिखाया। झोपड़ी में आठ परिक्रमा कबीर दर्शन में निहित अष्ट-कष्ट-दुख निवारण का प्रतीक है। 

डेढ़ दशक पुरानी परिकल्पना

कबीरचौरा मठ मूलगादी ने डेढ़ दशक पहले संत कबीर की कुटिया सजाने के खाका खींच केंद्रीय संस्कृति विभाग को प्रस्ताव भी दिया, लेकिन बातें न सुनी जाने पर खुद आकार देने का निर्णय ले लिया। महंत आचार्य विवेकदास बताते हैैं कि नीदरलैैंड में संग्रहालयों को देख कबीर की कुटिया को अत्याधुनिक रूप देने का विचार आया। इसमें उनके जीवन दर्शन को सहेजने के साथ नई पीढ़ी तक ले जाने का उद्देश्य समाहित है। परिसर में ही कबीर संग्रहालय की भी परिकल्पना की गई है।

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