सोनभद्र में महावीर स्वामी जयंती पर निकाली गई शोभायात्रा, अारती और भजन पूजन

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जयंती पर बुधवार को जैन धर्म के अनुयायियों ने शोभायात्रा निकाली। जैन सााधना भवन से यात्रा प्रारंभ होकर नगर भ्रमण करते किए।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Wed, 17 Apr 2019 11:37 AM (IST) Updated:Wed, 17 Apr 2019 11:37 AM (IST)
सोनभद्र में महावीर स्वामी जयंती पर निकाली गई शोभायात्रा, अारती और भजन पूजन
सोनभद्र में महावीर स्वामी जयंती पर निकाली गई शोभायात्रा, अारती और भजन पूजन

सोनभद्र, जेएनएन। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जयंती पर बुधवार को जैन धर्म के अनुयायियों ने शोभायात्रा निकाली। जैन सााधना भवन से यात्रा प्रारंभ होकर नगर भ्रमण करते किए। इसके बाद भक्तों ने राबर्ट्सगंज स्थित बस स्टैंड के समीप साधना केंद्र में मंगला आरती, भजन-कीर्तन किया। वहीं आयोजित कार्यक्रम में बच्चों ने मनोहारी कार्यक्रम भी प्रस्‍तुत किए। इस दौरान लोगों ने भगवान महावीर स्वामी के बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। कहा कि महावीर स्वामी अहिंसा के मूर्तिमान प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। एक लंगोटी तक का परिग्रह नहीं था उन्हें।

हिंसा, पशुबलि, जात-पात के भेदभाव जिस युग में बढ़ गए, उसी युग में पैदा हुए महावीर और बुद्ध। दोनों ने इन चीजों के खिलाफ आवाज उठाई। दोनों ने अहिंसा का भरपूर विकास किया। ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के यहां तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल तेरस को वर्द्धमान का जन्म हुआ। यही वर्द्धमान बाद में स्वामी महावीर बने।

महावीर को 'वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' भी कहा जाता है। 12 साल तक मौन तपस्या की और तरह-तरह के कष्ट झेले। अन्त में उन्हें 'केवलज्ञान' प्राप्त हुआ। केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान महावीर ने जनकल्याण के लिए उपदेश देना शुरू किया। अर्धमागधी भाषा में वे उपदेश करने लगे ताकि जनता उसे भलीभांति समझ सके।

भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार ही उनके प्रवचनों का सार था। भगवान महावीर ने श्रमण और श्रमणी, श्रावक और श्राविका, सबको लेकर चतुर्विध संघ की स्थापना की।

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