पॉलीहाउस तकनीक से सब्जी उगाएं, लाखों रुपये कमाएं, शीतलहर और लू का भी नहीं असर

पॉलीहाउस तकनीक के जरिए सब्जियों की खेती से किसान मालामाल हो सकता है। बेमौसमी बारिश ओलावृष्टि कड़ाके का पाला सिहरा देने वाली शीतलहर हो या झुलसा देने वाली लू।

By Vandana SinghEdited By: Publish:Wed, 08 May 2019 07:10 PM (IST) Updated:Thu, 09 May 2019 11:00 AM (IST)
पॉलीहाउस तकनीक से सब्जी उगाएं, लाखों रुपये कमाएं, शीतलहर और लू का भी नहीं असर
पॉलीहाउस तकनीक से सब्जी उगाएं, लाखों रुपये कमाएं, शीतलहर और लू का भी नहीं असर

वाराणसी, [मुकेश श्रीवास्‍तव]। पॉलीहाउस तकनीक के जरिए सब्जियों की खेती से किसान मालामाल हो सकता है। बेमौसमी बारिश, ओलावृष्टि, कड़ाके का पाला, सिहरा देने वाली शीतलहर हो या झुलसा देने वाली लू। इन सबके बाद भी इस खेती को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। इस विधि का आइआइवीआर (भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान) में भी बेहतर उपयोग किया गया है। इसमें पाया गया है कि पॉलीहाउस में मात्र एक हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में खेती कर एक साल में दो से ढाई लाख रुपये तक का शुद्ध मुनाफा सहजता से प्राप्त किया जा सकता है।

आठ बिस्वे खेती से ढाई लाख रुपये तक मुनाफा

आइआइवीआर के निदेशक डा. जगदीश सिंह बताते हैं कि वर्षा एवं ग्रीष्म ऋतु में खुले में उगाई गई सब्जियों पर बीमारियों व कीटों, विशेषकर विषाणु रोग फैलाने वाले कीटों का प्रकोप अधिक होता है। ऐसे में प्राकृतिक वायु संवाहित पॉलीहाउस में सब्जियों की खेती कर किसान कम लागत में गुणवत्तायुक्त सब्जियों का उत्पादन कर सकते हैं। बताया कि 1000 वर्ग मीटर यानी करीब आठ बिस्वे में खेती कर हर साल दो से ढाई लाख रुपये तक शुद्ध मुनाफा सहजता से पाया जा सकता है। वर्तमान में संस्थान द्वारा पॉलीहाउस में खेती के विभिन्न तरीकों के उन्नयन पर कार्य चल रहा है। ताकि कम से कम लागत में किसान अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकें।

अक्टूबर में रोपाई और उपज अभी बरकरार

प्रधान वैज्ञानिक डा. हरे कृष्ण बताते हैं कि उनके यहां इस विधि से अक्टूबर में ही टमाटर, शिमला मिर्च आदि रोपा गया था। इसकी उपज अभी तक बरकरार है, जबकि सामान्य विधि से खेती करने पर जनवरी या अधिकतम फरवरी तक ही उपज रह पाती है। बताया कि खरबूज, खीरे की भी इस विधि से खेती कर लाखों रुपये कमाया जा सकता है। बीज रहित खीरे को मार्च से जून एवं जुलाई से अक्टूबर तक लगाया जा सकता है।

यहां तैयार हो रही गुरचा रोग को मात देने वाली मिर्च की नई प्रजाति

आइआइवीआर के ही प्रधान वैज्ञानिक डा. राजेश कुमार, डा. इंदीवर प्रसाद, डा. अच्युत कुमार सिंह आदि की टीम ने लाइलाज बन चुके गुरचा रोग को भी मात देने वाली मिर्च की एक नई प्रजाति तैयार की है। यहां पर 13 साल से मिर्च की एक जंगली प्रजाति को लेकर एक शोध चल रहा है। शोध में पाया गया है कि इस प्रजाति के पास कोई रोग भटक नहीं पा रहे हैं। अब छठवीं पीढ़ी से 2208 पौधों में से चयनित 22 पौधों पर मॉलिक्यूलर मेथड से जांच चल रही है। इसके बाद इसको दुनिया के लिए जारी कर दिया जाएगा। 

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