काशी के ठाठ ये गंगा के घाट : ब्रह्मा ने ब्रह्माघाट को बनाया था अपना निवास

काशी के ठाठ ये गंगा के घाट, ब्रह्मा ने ब्रह्माघाट को बनाया था अपना निवास।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 26 Apr 2018 01:13 PM (IST) Updated:Thu, 26 Apr 2018 05:20 PM (IST)
काशी के ठाठ ये गंगा के घाट : ब्रह्मा ने ब्रह्माघाट को बनाया था अपना निवास
काशी के ठाठ ये गंगा के घाट : ब्रह्मा ने ब्रह्माघाट को बनाया था अपना निवास

वाराणसी : हिमालय से लेकर मैदानी इलाकों तक गंगा के विस्तार के साथ ही गंगा घाटों की अनगिन कथाओं से भी गंगा और तट की संस्कृति काफी समृद्ध रही है। खास कर काशी के संबंध में चौरासी घाटों का अपना महत्व और अपनी पहचान है। उन्हीं प्रमुख घाटों के महात्म्य को रेखांकित करने के लिए दैनिक जागरण लेकर आया है वेब सीरीज। आज की कड़ी में जानिए ब्रह्मा घाट और उसके महत्व के बारे में-

वर्ष 1740 में नारायण दीक्षित ने दुर्गाघाट के साथ ही इस घाट का भी पक्का निर्माण कराया था। घाट का प्रथम उल्लेख गीवार्ण पदमंजरी में हुआ है। घाट के नामकरण के सम्बन्ध में कथा प्रचलित है कि जब शिव जी के आदेश पर ब्रह्मा जी का काशी में आगमन हुआ तो ब्रह्म जी ने इस घाट को अपना निवास स्थान बनाया। इसीलिये इस घाट को ब्रह्मघाट कहा जाने लगा। ब्रह्मा एवं काशी के सम्बन्ध का उल्लेख मत्यस्य पुराण में भी हुआ है। घाट पर ब्रह्मा मंदिर 13वीं शताब्दी का बना हुआ है। यहां पर ब्रह्मा की प्रतिमा स्थापित है तथा ब्रह्मेश्वर शिव मंदिर स्थित है। घाट पर ही स्थित श्री काशी मठ संस्थान के अन्दर बिन्दु माधव, दत्तात्रेयद्ध एवं लक्ष्मी नृसिंह मंदिर स्थापित है। घाट के समक्ष गंगा में भैरव तीर्थ की स्थिति मानी गई है। गंगातट से ब्रह्मेश्वर शिव मंदिर तथा ब्रह्मा मंदिर में जाने के लिये अलग-अलग सीढि़यां शास्त्रीय विधान के अनुसार निर्मित हैं। ब्रह्मेश्वर शिव तक जाने के लिये पांच-पांच सीढि़यों के बाद चौकी का निर्माण किया गया है जो पंचायतन शिव का प्रतीक है। वहीं ब्रह्मा मंदिर तक चार-चार सीढि़यों के पश्चात चौकी का निर्माण हुआ है जो चतुर्मुखी ब्रह्मा का प्रतीक माना जा सकता है। मान्यताओं के अनुसार आदि शकराचार्य काशी आगमन पर श्री काशीमठ संस्थान में निवास करते थे। काचिकोटि शकराचार्य द्वारा प्रत्येक वर्ष इसी घाट पर चातुर्मास अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। वर्तमान में घाट पक्काए स्वच्छ एवं सुदृढ़ है। यहा स्थानीय लोग स्नान कार्य करते हैं। सन् 1958 में राज्य सरकार के द्वारा घाट का पुन: निर्माण कराया गया था। गंगा से संबंधित विविध आयोजन यहां भी अपना महत्व रखते हैं।

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