बनारसी जायकों का साल भर होता है सीजन, बाबा विश्‍वनाथ घुलाते हैं मगही पान तो मलइयो की अनोखी पहचान, पढ़ें...

बनारसी जायकों का साल भर सीजन होता है यहां पर बाबा विश्‍वनाथ मगही पान घुलाते हैं तो मलइयो की अनोखी पहचान बनारस ने मुद्दतों से सहेज रखा है। बनारसी जायकों का कोई जोड़ नहीं आप जब भी आएं तो जायकों तक पहुंच बनाना न भूलें।

By Abhishek SharmaEdited By: Publish:Wed, 17 Aug 2022 12:35 PM (IST) Updated:Wed, 17 Aug 2022 01:01 PM (IST)
बनारसी जायकों का साल भर होता है सीजन, बाबा विश्‍वनाथ घुलाते हैं मगही पान तो मलइयो की अनोखी पहचान, पढ़ें...
बनारसी जायकों का स्‍वाद जिसकी जुबान पर चढ़ता है फ‍िर वह उतरता ही नहीं।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। गुलाबी ठंडक की शुरुआत के साथ ही वाराणसी में जायकों का अपना महत्‍व और महात्‍म्‍य शुरू हो जाता है। आप संकटमोचन का पेड़ा ही ले लीजिए, लज्‍जत ऐसी कि बोल उठेंगे भाई वाह! दूसरी ओर मलइयो, लौंगलता से लेकर लस्‍सी और पान तक का जायका बॉलीवुड को अपना मुरीद बना चुका है। इसमें खास बात यह है कि बनारसी पान के बाबा विश्‍वनाथ भी शौकीन हैं और मगही पान घुलाते हैं। दस वह विशेष जायके जो बनाते हैं बनारस शहर को जायकों को शहर, जानकर आप भी रह जाएंगे हैरान।

मगही पान : खइके पान बनारस वाला के धुनों को गुनगुनाया तो सभी ने होगा। लेकिन, बनारस में यह मगही प्रजाति वाला पान खुद बाबा विश्‍वनाथ को भी भोग में लगाया जाता है। बाबा को नैत्यिक भोग में यह पान भी शामिल किया गया है। इसके अलावा बनारसी पान भंडार देश भर में बनारसी पान के जायकों को फैला रहे हैं। मीठा पान, सुर्ती पान और सादा पान के अलावा मसाला पान सहित तमाम वैरायटी आपको खाने को मिलती है, बस दुकान पर पहुंचकर स्‍पेशल पान का आर्डर कर दें आपको वैरायटी की भरमार मिल जाएगी।  

कचौड़ी- सब्‍जी : बनारसी लोगों की दिनचर्या कचौड़ी और सब्‍जी से शुरू होती है। कचौड़ी खाने वाले चने और कोहड़े आलू की मसालेदार सब्‍जी का जायका लेना नहीं भूलते। सुबह की मानो शुरुआत ही इसी से बनारसी करना पसंद करते हैं। बनारस की लज्‍जत को निहारना और खाना सुबह अड़‍ियों पर नजर आती है। कचौड़ी सब्‍जी के साथ चाय की चुस्‍की भी लेना बनारसी नहीं भूलते।  

लौंगलता : यह बनारस की परंपरागत मिठाई मानी जाती है। जिसमें मीठे खोये में लौंग पीसकर डाला जाता है। इसकी वजह से जायके में मिठास के साथ ही लौंगा के जायके का तड़का लोगों के मुह को सुवासित भी कर देता है। आकार छोटे से लेकर बड़ा तक होता है तो दूसरी ओर लौंग की वजह से मैदे के भीतर चौकोर आकार में भीतर तरल मिठास आदमी को लज्‍जत से सराबोर कर देता है। 

मलइयो : यह मिठाई दरअसल ओस की बूंदों से बनती है और दूध, केसर को फेंटकर निकले क्रीम से बने झाग को ओस की ओट से मिठास भरी चोट करके तैयार किया जाता है। पीले रंग की यह मिठास केसर दूध के साथ ली जाती है। इसे खाने के बाद आपको पता भी नहीं चलेगा कि आपने खाया है या पीया है या हवा ही खा गए। बस जुबान में छूते ही घुल जाता है और मीठे सुगंधित जायके से आपको आनंद की अनुभूति नजर आती है।  

गीली पकौड़ी : सकोड़ा या गीली पकौड़ी आपको तरीदार सब्‍जी और पकोड़ी की याद दिलाती है। कुल्‍हड़ में देसी घी और नींबू के साथ मसाले का शोरबा और सोयाबीन के टुकड़ों के साथ ही पालक की दो पकौड़ी देसी अंदाज में जब परोसी जाती है तो आपके मुह में पानी स्‍वाभाविक तौर पर आ जाता है। मुह में डालते ही तीखापन तन बदन में जो सुरसुरी पैदा करता है वही जायका लेने बनारसी ठेलों पर उमड़ते हैं।  

लस्‍सी : बनारसी लस्‍सी का अपना अनोखा जायका है, यहां लस्‍सी में रबड़ी भी मिक्स होती है तो भांग भी जायके को नशीला बना देता है। बस आर्डर कीजिए तो आपके सामने देश दुनिया की अनोखी रंगत वाली कुल्‍हड़ लस्‍सी का जायका आपको अनोखे अंदाज में नजर आता है। रामनगर की लस्‍सी, पाल, पहलवान, ब्‍लू आदि तो मानो अब ब्रांड हो चुके हैं। गर्मियों में लस्‍सी का यह जायका आपको तरावट ही नहीं बल्कि राहत भी देता है। 

ठंडई : पाकिस्‍तान में इसको सरदई कहते हैं तो बनारस में ठंडई का नाम आम है। बनारसी जायकों की कड़ी में ठंडई का होना गर्मियों में तरावट के साथ ही लोगों को तरोताजा रखने के लिए विशेष राहत और सेहत का खजाना भी प्रदान करता है। मेवा ही नहीं बल्कि दूध और मलाई के साथ मिली हुई सुगंधित औषधियां कुछ दुकानों की विशेष पहचान हैं। गर्मियों में इसकी डिमांड खूब होती है। 

लाल पेड़ा और तिरंगा बर्फी : बनारस में लाल पेड़ा आपको संकटमोचन के साथ ही यूपी कालेज के पास भी मिलता है। बनारस में लाल पेड़ा खाकर आप चाकलेट को भूल जाएंगे। सौंधी खोये की खुश्‍बू के साथ ही बनाने का औटाने वाला तरीका और खुरचनी का मिक्‍सचर आपको लाल पेड़े का जायका मुद्दतों तक भूलने नहीं देगा। वहीं तिरंगा बर्फी के मुरीद लोग स्‍वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस ही नहीं बल्कि दो अक्‍टूबर और अन्‍य राष्‍ट्रीय पर्व के मौके पर खाना नहीं भूलते।  

कुल्‍हड़ चाट : काशी चाट भंडार हो या दीना चाट भंड़ार, गली के नुक्‍कल के भोला की चाट हो या बनारसी चाट के कोई भी पुश्‍तैनी कारीगर। सभी के हाथों में कुल्‍हड़ की चाट बनाने का हुनर मौजूद है। कुल्‍हड़ में छोला और समोसे भी परोसने की काशी में परंपरा है। दूसरी ओर दही के साथ चटनी और नमकीन के साथ नमकपारा भी आपको कई चाट के कुल्‍हड़ों में नजर आ सकता है। 

जलेबी : बनारसी जलेबी के शौकीन होते हैं। यहां पर जलेबी आपको दही के साथ और रबड़ी के साथ भी खाने की मिल सकती है। गुड़ की जलेबी से लेकर बड़का जलेबा भी आपको तीज पर या आन डिमांड मिल जाएगा। इसको खाने वालों की भीड़ इतनी होती है कि चूल्‍हे से निकलकर चाश्‍नी से निकलने के बाद अब यह खत्‍म हो जाती है उसका अंदाजा सिर्फ बेचने वाला ही लगा सकता है। 

इन सबके अलावा बनारस में जायकों का बड़ा कारोबार ही नहीं बाजार भी है। ठेलों के सत्‍तू की बाटी और लिट्टी के साथ ही चोखा और सत्‍तूू पराठा के साथ ही अड़‍ियों की कड़‍ियां जोड़ती चाय की चुस्‍की और कुल्‍हड़ की सौंधी मिठास का कोई जोड़ नहीं। बनारस में वेज और नानवेज दोनों ही खाद्य आइटम मिलते हैं। मगर कुल्‍हड़ में परोसने की परंपरा का जो सौंधा सा जायका बनारसर में मिलता है वह आपको देश में शायद ही कहीं और नजर आए। 

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