मधुरता के बिना सुंदरता निरर्थक

वाराणसी : संत मोरारी बापू ने कहा कि सहज भाव श्रेष्ठ धर्म होता है। प्राण और स्वभाव जीवन के साथ जाते ह

By Edited By: Publish:Sat, 28 Mar 2015 12:32 AM (IST) Updated:Sat, 28 Mar 2015 12:32 AM (IST)
मधुरता के बिना सुंदरता निरर्थक

वाराणसी : संत मोरारी बापू ने कहा कि सहज भाव श्रेष्ठ धर्म होता है। प्राण और स्वभाव जीवन के साथ जाते हैं। जीवन में अनेक परिवर्तन स्वाभाविक होते हैं लेकिन स्वभाव परिवर्तन स्वाभाविक नहीं होता। स्वभाव को ही प्रकृति कहते हैं। प्रकृति मधुर होने से जीवन मधुर हो जाता है। सुंदरता के साथ मधुरता का समावेश होने से ही उसका महत्व होता है, अन्यथा वह पतन का कारण बन जाती है।

अस्सी घाट मैदान में श्रीराम कथा प्रेमयज्ञ के सातवें दिन शुक्रवार को प्रवचन में बापू ने मधु-मधुर, जड़-जड़ता, सहज-असहज का भाव समझाया। महाभारत, गीता, सुख सागर, भागवत आदि पौराणिक ग्रंथों के प्रसंगों का उद्धरण देकर व्यावहारिकता से जोड़ा। उन्होंने कहा कि जीवन में हार जीत को जो सहज भाव में लेते हैं, वही सुखी होते हैं। सही अर्थो में श्रीरामकथा सहज सहजता को प्रमाणित करने का प्रयास है।

व्यासकथा सबको स्वीकारने का प्रयास

संत मोरारी बापू ने कहा कि उनकी व्यास कथा सभी को सुधारने का प्रयास नहीं करती बल्कि सबको स्वीकारने का प्रयास करती है। उन्होंने कहा कथा में श्रोताओं का सहयोग सहज रूप में जुड़े रहने से होता है। वक्ता का सहयोग सहज ढंग से माधुर्य को श्रोताओं तक पहुंचाना है। मां, बेटे की सहजता और बेटा, मां की ममता से जब जुड़ा होता है तभी आनंद आता है।

हार जीत स्वाभाविक गति

क्रिकेट विश्वकप सेमीफाइनल में भारत की हार के बाद हो रहे विरोध पर मोरारी बापू ने चिंता व्यक्त की। कहा कि धौनी और उनकी टीम को बीते मैचों में हुई जीत के लिए धन्यवाद देना चाहिए न कि एक हार के लिए पुतले फूंकने चाहिए। हार जीत स्वाभाविक गति है। हार का सम्मान भी सहज ढंग से जीत की तरह करने से ही जीवन में मधुरता आती है। इसी सहजता को उनकी व्यासपीठ सच कहती है। हालांकि सच को खोजने की जरूरत नहीं होती, वह स्वर्ण आवरण से ढका होता है, उसे हटाने की आवश्यकता होती है।

गुरु कृपा को न भूलना श्रेष्ठ धर्म

संत मोरारी बापू ने भावुक मन से कहा गुरु को भले भूल जाना लेकिन उसकी कृपा को कभी न भूलना ही श्रेष्ठ धर्म है। उन्होंने कहा कि मैं बोलता नहीं हूं, बोलता है तो मेरा 'त्रिभुवन दादा'। कौन गा रहा है, माधुर्य कौन दे रहा है। यह तो वह ही जाने, मैं तो गा रहा हूं। इसके साथ ही मोरारी बापू गुनगुना पड़े-'मेरा सूना पड़ा रे संगीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं, हरी बोल।'

कम, तर्कसंगत और सही बोलो

बाबू ने कहा कि थोड़ा बोलो, तर्क संगत बोलो और सही बोलो। कोई व्यक्ति तुम्हारे सामने बहस में ज्यादा उतरे तो समझ लेना कि उसके पास बुद्धि नहीं है। लाठी का कोई मूल्य नहीं होता लेकिन वह मूल्यवान सितार को तोड़ देती है। ज्यादा बोलने वाला टेलीविजन पर तार्किक बोलने वाले को चुप कर देता है। उन्होंने इसे स्पष्ट किया-'तुम मुझसे बहस करने की जिद कर रहे, हम क्या तुम्हें सुनाएं। नग्मे जो थोड़े रहे, उसे कैसे गुनगुनाएं। आंसुओं के साए में कैसे मुस्कुराएं, नजदीक आके हम दूर होंगे। इन वादियों से कह दो, हमको न भूल जाए।'

सम्मान देकर सम्मानित हुए पीएम

बापू ने संगीतकार से प्रधानमंत्री के मिलन और उनके सहज सम्मान को बधाई दी। कहा कि ऐसा ही होना चाहिए। प्रधानमंत्री ऐसा कर सम्मान के पात्र हुए।

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निगाहें घुमाने से इबादत हो जाती है

जिज्ञासा समाधान सत्र में बापू ने कहा कि मैं अभाव में जीया हूं लेकिन किसी का धन, किसी की बड़ाई मुझे कभी बांध नहीं पाई, सिवाय मानस स्नेह के। मोरारी बापू ने कहा कि 'ये हसीन चेहरे, मेरी तस्वीर के दाने हैं। निगाहें घुमा लेता हूं, इबादत हो जाती है।' सवाल था कि बापू आप कथा से पहले चारों ओर निगाहें घुमाकर देखते हैं। नजरों से बांधते हैं क्या। बापू ने अपने संगतकारों का सुमधुर अंदाज में परिचय कराया। कहा कि इनमें एक मुस्लिम संगीतकार भी हैं जो इस्लाम के साथ मानस को जीने में रुचि लेते हैं।

कथा से पहले काशीनरेश महाराज अनंत नारायण सिंह, केशन जालान, कृष्ण कुमार जालान, अखिलेश खेमका, भगीरथ जालान, अनिल अग्रवाल, भरत सर्राफ, राधेगोविंद केजरीवाल आदि ने व्यासपीठ की आरती उतारी।

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