डायग्नोसिस के नाम पर अंधेरे में तीर

By Edited By: Publish:Mon, 05 Aug 2013 02:02 AM (IST) Updated:Mon, 05 Aug 2013 02:03 AM (IST)
डायग्नोसिस के नाम पर अंधेरे में तीर

वाराणसी : सबको स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के दावे और खर्च सालाना हजारों करोड़ रुपये। सरकारी अस्पताल व स्वास्थ्य केंद्रों की विशाल श्रृंखला और डाक्टरों की फौज। इसके बाद आज भी रहस्य हैं बीमारियां। तमाम रोगों की पहचान के नाम पर अंधेरे में तीर। इसमें गरीब तकदीर को कोस रहे और जान गंवा रहे।

ताजा प्रकरण : लोहता के कोटवा गांव में चार दिन में सात मौत। इसमें आठ दिन की नवजात और 10-15 वर्ष के बच्चे भी शामिल। एक कुनबा तो खत्म होने की ओर। कारण 'रहस्यमय बुखार' और अभी भी दो दर्जन से अधिक बीमार।

हैरत की बात, मौत के आंकड़ों में सातवीं मौत दर्ज होने से पहले मंडल के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल ने भी हाथ खड़े किए। सरकारी अमले का अक्कड़ बक्कड़ के अंदाज में आगाज हुआ। पहले दिन हुई चार मौतों के पीछे रहस्यमय बुखार के साथ ही अनगिनत कारण बता डाले। उच्चस्तरीय जांच की अर्जी लगाई और कुर्सी बचाने की जुगत कर ली। मलेरिया और कालाजार की आशंका तो पेयजल पर भी ठीकरा फूटा। फिलहाल डाक्टरों की भारी भरकम फौज के लिए 'बुखार का रहस्य' बरकरार, मौतों का सिलसिला जारी। पुराना मामला : दो वर्ष पहले (14 से 17 नवंबर 2011) चौबेपुर के नारायनपुर गांव में एक ही कुनबे के चार सदस्यों ने चार दिन में दम तोड़ दिया। इसमें घर का मुखिया, उसकी पत्नी दो पुत्र-पुत्री शामिल थे। इस परिवार के छह सदस्य एक सप्ताह से 'रहस्यमय बुखार' से पीड़ित थे। बाद में मामला अखबारों में आने पर महकमा सक्रिय हुआ। जांच में पता चला सभी सीवियर मलेरिया से पीड़ित थे और दो की जान बचाई जा सकी।

सरकारी सेवाओं पर नहीं रहा भरोसा

दोनों मामलों में जो सचाई सामने आई सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से विश्वास डिगाने के लिए काफी है। लोहता के कोटवा में दो दर्जन परिवार एक पखवारे से बीमार थे लेकिन पांच किलोमीटर की दूरी पर काशी विद्यापीठ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाना मुनासिब नहीं समझा। नीम हकीम से इलाज कराते रहे। इसके लिए घर गृहस्थी के सामान भी बेच डाले।

ऐसा ही चौबेपुर के मामले में भी रहा, पीड़ित गरीब परिवार एक सप्ताह से बीमार लेकिन दो किलोमीटर दूर स्वास्थ्य केंद्र जाना गवारा नहीं हुआ। हालत बिगड़ने पर सरकारी अस्पताल का रूख किया फिर भी चार को जान गंवानी पड़ी थी।

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कैसे हो भरोसा

आखिर सरकारी व्यवस्था पर कोई भरोसा करे भी तो कैसे। लोहता में चार मौत के बाद डाक्टरों की टीम दौड़ी और कुर्सी बचाने की जुगत में कारण के तौर पर फूड प्वाइजनिंग, सेप्टीसीमिया, शाक और न जाने कितने नाम गिना डाले। अगली दो मौत के बाद मलेरिया, कालाजार पर ठीकरा फोड़ा। जांच रिपोर्ट ने आइना दिखाया तो सरकारी आपूर्ति के पेयजल को जिम्मेदार ठहरा दिया। लापरवाही की हद यह भी कि लोहता में बंद पड़े स्वास्थ्य केंद्र को छह मौत के बाद दो डाक्टर मिल सके।

संयोग है मौत : सीएमओ

सीएमओ डा. एमपी चौरसिया के लिए लोहता में चार दिनों में सात मौत महज संयोग से अधिक कुछ नहीं। उनका कहना है कि सभी गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे। एक दो दिन के अंतराल पर मौत हो गई। दावा किया महकमा सक्रियता बरत रहा है फिलहाल संयोग का रहस्य बरकरार है।

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