गरीबों को उजाड़ थम गया जेसीबी का चक्का

By Edited By: Publish:Fri, 19 Sep 2014 09:39 PM (IST) Updated:Fri, 19 Sep 2014 09:39 PM (IST)
गरीबों को उजाड़ थम गया जेसीबी का चक्का

सुल्तानपुर : कारण कुछ भी हो पर जो सामने दिखा वह प्रशासन की नियत पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। सड़कों को अतिक्रमणकारियों द्वारा गलियों में तब्दील कर देने व इससे पैदा हुई जनसमस्या से बहुत दिनों तक प्रशासन नजरे छिपाता रहा। दुर्गापूजा महोत्सव की शुरुआत से पहले विसर्जन यात्रा के लिए सड़कों को अतिक्रमणमुक्त करने के लिए बंद कमरे में प्लान बना। अधिकारी गुरुवार को जेसीबी लेकर सड़क पर निकले। गरीब गुर्बो के ठेले-खोमचे व टीन के चद्दर हटाए गए, शुक्रवार की सुबह छप्पर व झोपड़ी ढहाई गई। पर, दोपहर बाद अचानक न जाने क्या हुआ और घोषित तौर से शाम को चलाए जाने वाला अतिक्रमणविरोधी अभियान ठहर गया। एसडीएम सदर अमित सिंह कहते हैं कि शुक्रवार दिन होने के कारण एक वर्ग के धार्मिक आयोजन के चलते यह अभियान रोका गया है। जबकि दूसरी चर्चा है कि सुल्तानपुर विधायक के पत्र के बाद प्रशासन बैकफुट पर है।

अतिक्रमण से शहर की प्राय: प्रत्येक सड़क गलियों में तब्दील हो चुकी हैं। मुख्य मार्ग पर तीन स्तरीय अतिक्रमण हावी है। सबसे पहले पक्की दुकान के मालिकों का वाहन सड़क पर, उसके आगे जमीन पर बैठे व्यापारी, फिर उसके आगे ठेले लगाए दुकानदार। ऐसे में आम आदमी चले तो कहां। प्रशासन इसको बखूबी जानता और देखता है। उनके जिम्मेदार इन जामों में खूब फंसते भी हैं। हूटर और पुलिस स्कॉट के बाद भी उनके वाहन रेंगते हैं। आम आदमी तो खून के आंसू रोता है। बीमार और मजलूम लोग समय से चिकित्सालयों और जरूरत की जगहों पर नहीं पहुंच पाते हैं। लेकिन कोई क्या करे। व्यवस्था के कारिंदे ही व्यवस्था चौपट किए पड़े हैं। पूरा शहर अनियंत्रित अतिक्रमण की चपेट में है। चारों तरफ अवैध स्टैंड से लेकर डग्गेमारी तक हावी है। पर, समस्या का स्थाई निदान नहीं तलाशा जा सका है। यहां का दुर्गापूजा महोत्सव अपनी ख्याति बटोरे हुए है। शहर में ही 140 पंडाल बनने हैं। इतनी ही मूर्तियां स्थापित होंगी। उन्हें विसर्जन वाले दिन पूरे शहर का भ्रमण कराया जाना है। जाम और अतिक्रमण से कराह रही सड़कें इस काम में बड़ी बाधा हैं। प्रशासन को इसकी जानकारी भी है। पूजा समितियों के लोगों ने बैठक में मुद्दे भी उठाए। सड़कों को साफ करने के लिए रणनीति भी बनी। यानी अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाने के लिए रणनीति भी बनी। गुरुवार को इसका आगाज भी हुआ। पहले चक्र में गरीब-गुर्बे ही चपेट में आए। उनके ठेले खोमचे, टीन की चद्दरें, जेसीबी ने उड़ा दीं। शुक्रवार सुबह तक सब कुछ सामान्य था। प्रशासन अपनी रौ में था। सुबह फिर दस्ता निकला और खाकी के साए में अफसरान भी। इस बार भी निशाने पर फिर झोपड़पट्टियां ही आईं। करौंदिया मोहल्ले में छप्पर और भट्ठी ढहाई गई। पर, दोपहर बाद इस अभियान को फिर चलना था लेकिन दस्ता नहीं निकला। क्यूं, किसके दबाव में, किस रणनीति के तहत या फिर कुछ और कारण..। सवाल उठ खड़ा हुआ क्या गरीब-गुर्बे ही प्रशासन को अतिक्रमण किए दिखते हैं। या फिर प्रशासन उन बड़े लोगों की ओर निगाहें डालने की हिमाकत कर सकता है जो सरकारी सड़कों को अपनी संपत्ति बना बैठे हैं।

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