वायु, ध्वनि और जल प्रदूषण के जकड़न में शहर
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सुलतानपुर : डेढ़ लाख की आबादी और आठ किमी की परिधि में फैला शहर वायु, ध्वनि व जलप्रदूषण की जकड़ में है। तमाम निर्देशों के बावजूद जिम्मेदार नगर की आबोहवा को दुरुस्त रखने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहे है। कूड़ा प्रबंधन के कोई इंतजाम ही नहीं हैं, शासकीय नियमों का उल्लंघन कर कचरों को आवासीय कालोनियों के इर्दगिर्द नदी के किनारे व पार्कों में फेंका जाता है और इन्हें वहीं जला दिया जाता है। जिससे जहरीली गैसें हवा में घुल रही हैं, जो इंसानी जीवन के साथ-साथ अन्य जीवों के लिए खतरा बन रही हैं।
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मंचों पर हो रही कवायद
पर्यावरण को निरंतर क्षतिग्रस्त कर रहे प्रदूषण को नियंत्रित करने की कवायदें मंचों तक सिमटी है। इसी का परिणाम है कि यह मध्यम वर्गीय शहर भी लगातार प्रदूषण की गिरफ्त में जा रहा है। वहीं नालों के दूषित पानी से जीवनदायिनी गोमती का प्रदूषण जारी है। पराली और कचरा जलाने का चलन थम नहीं रहा है। कचरा प्रबंधन का इंतजाम नहीं है। ऐसे में बीते पखवारे धुंध के दौरान यहां का एक्यूआइ 176 के स्तर पर पहुंच गया। सामान्य स्थितियों में यह स्तर 160 से 165 रहना चाहिए।
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सड़कों पर बढ़ रहा शोर
बढ़ती आबादी होता शहरीकरण, सड़क पर नित आते नए वाहन से ध्वनि और वायु प्रदूषण हो रहा है। जाम और लगातार बजते हार्न से लोगों का जीना दूभर हो गया है। प्रेशर हॉर्न की तेज ध्वनि सुनने की क्षमता को प्रभावित कर रही है। शहर के अस्पताल, विद्यालय, प्रमुख कार्यालय के आसपास हार्न न बजाने का बोर्ड तक नहीं लगाया गया है। संभागीय परिवहन अधिकारी अयोध्या परिक्षेत्र सुभाष कुशवाहा ने कहा कि साइलेंस जोन पर अमल करना एआरटीओ का दायित्व है।
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सजगता, सहभागिता जरूरी
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण अध्ययन केंद्र के विभागाध्यक्ष डॉ जसवंत सिंह ने कहा कि पर्यावरण को बेहतर रखने के लिए हर व्यक्ति को संवेदनशील बनना होगा। सभी की सजगता और सहभागिता ही संतुलित पर्यावरण का निर्माण कर सकेगी।