चंद्रकांता के प्रणय का गवाह है विजयगढ़ किला

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By JagranEdited By: Publish:Fri, 31 Jul 2020 07:10 PM (IST) Updated:Sat, 01 Aug 2020 06:06 AM (IST)
चंद्रकांता के प्रणय का गवाह है विजयगढ़ किला
चंद्रकांता के प्रणय का गवाह है विजयगढ़ किला

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : समस्तीपुर बिहार में जन्में देवकी नंदन खत्री की उपन्यास चंद्रकांता सोनांचल की वादियों की एक ऐसी कहानी पेश करता है जिसमें यहां के तिलिस्म और खूबसूरती दोनों शामिल हैं। विजयगढ़ जिसके राजा जयसिंह हैं, उनकी मंदाकिनी पुत्री चंद्रकांता और नौगढ़ के राजा सुरेंद्र सिंह के इकलौते पुत्र वीरेंद्र सिंह के बीच प्रणय के अनगिनत किस्से बढ़े ही सलीके से गढ़े गए हैं। रचना की शुरुआत में ही देवकीनंदन ने अपने शब्दों से प्रकृति की गोद में बसे सोनांचल का वर्णन करते हैं, शाम का वक्त है, कुछ-कुछ सूरज दिखाई दे रहा है, सुनसान मैदान में एक पहाड़ी के नीचे दो शख्स वीरेंद्र सिंह और तेज सिंह एक पत्थर की चट्टान पर बैठ कर आपस में बातें कर रहे हैं।'विजयगढ़ कहानी के हर हिस्से में गूंज रहा है। इसके लिए क्रूर सिंह, दोनों ऐयार नाजिम अली और अहमद खां व चपला की चंद्रकांता के इर्दगिर्द घूमती गतिविधियां मुख्य रूप से शामिल है। विजयगढ़ किला अपने समय के सबसे सुरक्षित किलो में शुमार था। इस बात की झलक वीरेंद्र सिंह के परम मित्र तेज सिंह की बातों में दिखता है। एक समय वीरेंद्र सिंह के सवालों के जवाब में कहता है, 'मैं हर तरह से आपको वहाँ ले जा सकता हूँ, मगर एक तो आजकल चंद्रकांता के पिता महाराज जयसिंह ने महल के चारों तरफ सख्त पहरा बैठा रखा है, दूसरे उनके मंत्री का लड़का क्रूर सिंह उस पर आशिक हो रहा है, ऊपर से उसने अपने दोनों ऐयारों को जिनका नाम नाजिम अली और अहमद खाँ है, इस बात की ताकीद करा दी है कि बराबर वे लोग महल की निगहबानी किया करें क्योंकि आपकी मुहब्बत का हाल क्रूर सिंह और उसके ऐयारों को बखूबी मालूम हो गया है।'जर्जर लेकिन विशाल विजयगढ़ किले के भीतर बनी दीवारों पर क्रूर सिंह के घोड़ों के दौड़ने की निशानी है। वे सभी निशान आज भी मौजूद हैं जिसे देवकीनंदन खत्री ने अपनी चंद्रकांता में पिरोया है। किले के ऊपरी हिस्से पर जाते ही सोनभद्र जनपद का बहुत बड़ा हिस्सा नंगी आंखों से सहज ही देखा और निहारा जा सकता है।

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