जिला बनने से पहले सोनभद्र पड़ा था नाम
सोनभद्र नमस्ते ब्रह्मपुत्राय शोणभद्राय ते नम..आग्नेय पुराण के 34वें श्लोक में ब्रह्माजी के पुत्रों में एक शोण नद का उल्लेख मिलता है।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : नमस्ते ब्रह्मपुत्राय शोणभद्राय ते नम:..आग्नेय पुराण के 34वें श्लोक में ब्रह्माजी के पुत्रों में एक शोण नद का उल्लेख मिलता है। इसका विस्तृत विश्लेषण दिवंगत पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त दुद्धी के मो. हनीफ खान शास्त्री ने 1988 में ही किया था। उन्होंने तब विश्लेषण किया था जब सांसद रहे रामप्यारे पनिका ने चार नाम जिले के लिए प्रस्तावित किया था। इसी विश्लेषण के बाद अंतिम रूप से सोनभद्र का नाम पड़ा। चार मार्च 1989 को मीरजापुर से अलग होकर बने सोनभद्र की उम्र 30 साल हो गई। इस बीच जिले ने तमाम उतार-चढ़ाव देखे। लेकिन अफसोस कि सोनभद्र नाम से कोई जगह नहीं है। जिला मुख्यालय का नाम राबर्ट्सगंज भी खटकता है। अब मांग होती है इसका भी नाम सोनभद्र करने की।
चार मार्च को जब सोनांचल के लोग जिले का स्थापना दिवस मना रहे हैं तो जिले के सृजन और नामकरण को लेकर चर्चा होना स्वाभाविक है। इस पर वरिष्ठ पत्रकार भोलानाथ मित्र उस समय की यादें साझा करते हैं। कहते हैं आदिवासी नेता और तत्कालीन लोकसभा सदस्य रामप्यारे पनिका द्वारा सुझाए गए चार नामों में से एक को सिद्धांत रूप में स्वीकार कर तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने चार मार्च 1989 को मीरजापुर के दक्षिणांचल को अलग कर सोनभद्र का सृजन किया था। बताते हैं कि तत्कालीन सांसद ने 14 नवंबर 1988 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सहमति से मुख्यमंत्री को नामकरण के लिए सुझाव ज्ञापन दिया था। उसमें चार नाम जवाहर नगर, सोनगढ़, सोनभद्र और गांधी नगर दिया। उसी समय दुद्धी के मोहम्मद हनीफ खां शास्त्री ने कण्व ऋषि और शकुंतला दुष्यंत के संदर्भ को लेकर शोण नद के परिक्षेत्र के महत्व पर पौराणिक प्रकाश डाला है। जिले के लिए चला था लंबा संघर्ष
मीरजापुर जिले के दक्षिणांचल को अलग कर नया जिला बनाने की आवाज उठाने वालों को लंबा संघर्ष करना पड़ा था। उस समय जिला बनाओ आंदोलन समिति में शामिल रहे वरिष्ठ साहित्यकार अजय शेखर बताते हैं कि योगेश शुक्ल सहित कई को इस लड़ाई में जेल तक जाना पड़ा। जिला बनाने में डा. अर्जुनदास केशरी, मुनीर बख्श आलम, रामनाथ शिवेंद्र व जगदीश पंथी का अहम योगदान रहा। दुल्हन की तरह सजा था शहर
अलग जिले की स्वीकृति मिलने की जानकारी लोगों को थी। जिले से इसकी घोषणा होनी थी इसलिए शहर को दुल्हन की तरफ सजाया गया था। पं. अजय शेखर व भोलानाथ मिश्र बताते हैं कि राबर्ट्सगंज में लोगों की भीड़ जुटने लगी थी। रंग-बिरंगे कागज के पतंग लगाए गए थे। सबको बस इंतजार था कि कब जिले की घोषणा हुई। चार मार्च 1989 को करीब 11 बजे दिन में स्लेटी रंग के हेलीकाफ्टर से मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी उतरे। यहां समारोह हुआ जिले की घोषणा हुई। उनके साथ जिले के प्रथम डीएम सुरेश चंद्र दीक्षित व एसपी रिजवान अहमद भी थे।