गुरु की कृपा से खुलते गए कामयाबी के द्वार

गुरु गोविद दोऊ खड़े काके लागूं पाय..। कबीर ने गुरु की महिमा को दोहे के जरिए बताया। सच भी है गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं। जब ज्ञान नहीं तो जीवन में सफलता नहीं मिल सकती।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 04 Jul 2020 11:46 PM (IST) Updated:Sat, 04 Jul 2020 11:46 PM (IST)
गुरु की कृपा से खुलते गए कामयाबी के द्वार
गुरु की कृपा से खुलते गए कामयाबी के द्वार

जेएनएन, शाहजहांपुर : गुरु गोविद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय..। कबीर ने गुरु की महिमा को दोहे के जरिए बताया। सच भी है गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं। जब ज्ञान नहीं तो जीवन में सफलता नहीं मिल सकती। फिर चाहें शिक्षा हो खेल या फिर अन्य कोई क्षेत्र, गुरु के योगदान को कमतर नहीं आंका जा सकता। यही कारण है कि गुरु को भगवान से ऊपर दर्जा दिया गया है। रविवार को गुरु पूर्णिमा है। ऐसे में कॅरियर में ऊंचाई हासिल करने वाले कुछ लोगों से उनके जीवन में गुरु के महत्व को लेकर चर्चा की तो उन्होंने अपने भावों को कुछ इस तरह व्यक्त किया।

गुरु ने दूर कराई सामाजिक व व्यवहारिक कमियां

गुरु के महत्व को शब्दों में बयां करना बेहद मुश्किल है। क्योंकि गुरु के बिना कुछ भी संभव नहीं है। विद्यालय में जब पढ़ने जाते थे तब पढ़ाई के अलावा सामाजिक, व्यवहारिक व अध्यात्मिक जो कमियां थी उन्हें गुरु ने दूर कराया। जिस वजह से कामयाबी के द्वार खुलते चले गए। पुलिस अधीक्षक के पद तक पहुंचने के बाद भी हमने सीखना बंद नहीं किया है। शंकराचार्य ने चांडाल से प्रभावित होकर उन्हें ही गुरु बना लिया था। क्योंकि वह चांडाल के अध्यात्मिक ज्ञान से प्रभावित हो गए थे।

एस आनंद, एसपी

शिक्षक पिता की प्रेणा से बने विश्वविद्यालय टॉपर

वैसे तो यहां तक पहुंचने के लिए गुरु से मिली हर सीख काम आई। लेकिन जीवन में असल गुरु तो हमारे शिक्षक पिता श्याम किशोर शर्मा ही रहे है। जिन्होंने न सिर्फ एक पिता का धर्म निभाया बल्कि एक शिक्षक होने के नाते बचपन से ही पढ़ाई का स्तर मजबूत करने में सहयोग किया। हाईस्कूल व इंटर में द्वितीय श्रेणी आने के बाद भी दबाव बनाने के बजाय आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। जिस वजह ग्रेजुएशन में विश्वविद्यालय टॉपर रहा। हिदी, अंग्रेजी, संस्कृत व उर्दू चारों विषय में पिता जी की समान पकड़ थी। जिसका लाभ हमें मिला।

संतोष शर्मा, नगर आयुक्त

गुरु की डांट से बदला जीवन

अंडर 16 टीम के लिए जब गोलकीपर के तौर पर चयन हुआ तो मैदान पर कोलकाता के कोच तन्मय बोस से सामना हुआ था। गोल रोकने के लिए जो फुर्ती होनी चाहिए थी वह असहज महसूस करने की वजह से नहीं दिखाई पड़ रही थी। ऐसे में कोच ने सब खिलाड़ियों के सामने ही फटकार लगाना शुरू कर दी। जिससे सपने बिखरते हुए नजर आने लगे। लेकिन कुछ पल बाद वही सर अन्य खिलाड़ियों से अलग लेकर गए और प्यार से समझाया। तब वास्तविक अहसास हुआ कि गुरु अपने शिष्य को यदि डांटता भी है तो उसमे कोई न कोई वजह जरूर होती है। तीन साल उन्होंने मेरे खेल में सुधार किया जिससे सपना साकार करने में मदद मिली।

रवि कुमार, अंतरराष्ट्रीय फुटबाल खिलाड़ी

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