गांव में भी नाउम्मीदी, दोराहे पर जिदगी

भावलखेड़ा का सरही गांव। सब्जी उत्पादन को लेकर न सिर्फ ब्लाक बल्कि जिले में भी पहचाना जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 30 May 2020 11:29 PM (IST) Updated:Sat, 30 May 2020 11:29 PM (IST)
गांव में भी नाउम्मीदी, दोराहे पर जिदगी
गांव में भी नाउम्मीदी, दोराहे पर जिदगी

राम मिश्र, रोजा : भावलखेड़ा का सरही गांव। सब्जी उत्पादन को लेकर न सिर्फ ब्लाक बल्कि जिले में भी पहचाना जाता है। यहां के लोगों की जीविका का मुख्य साधन खेती ही है, लेकिन तमाम ऐसे भी हैं जिनके पास आशियाने के नाम पर फूस का घर है। रोजगार की तलाश में इन्हे दूसरे शहरों व राज्यों का रुख करना पड़ा। कई लोग परिवार के साथ बाहर बस गए। लॉकडाउन लगा तो यहां के करीब 160 लोगों को वापस आना पड़ा, पर यहां हालात वैसे ही हैं, जैसे घर छोड़ते समय थे। वापस जाने पर दोबारा नौकरी मिलेगी या नहीं यह तय नहीं। जो हालात हैं उनमें गांव में गुजर मुमकिन नहीं। ऐसे ही दोराहे पर खड़े प्रवासियों में एक हैं आकाश। जनसेवा केंद्र पर अपने एकाउंट में तनख्वाह आने का इंतजार कर रहे आकाश दिल्ली के राजीव चौक स्थित होटल में करीब दस साल से कुक थे। साढ़े 15 हजार रुपये महीने में मिलते थे। 25 मार्च को होटल पहुंचे तो मालिक ने बताया कि लॉकडाउन लग गया है। जब होटल खुलेगा तब बुला लेंगे। फरवरी की पगार मिली नहीं थी। मार्च तक का हिसाब करने को कहा, जिस पर मालिक ने ठेकेदार से संपर्क करने को कह दिया, जिसने नौकरी लगाई थी। ठेकेदार ने तो कह दिया घर चले जाओ, तनख्वाह खाते में भेज दी जाएगी। सामान किराए के कमरे में बंद कर गांव के ही 15 अन्य लोगों के साथ गाजियाबाद तक पैदल पहुंचे। वहां से ट्रक व ट्रैक्टर ट्राली से लिफ्ट तो मिली, पर शाहजहांपुर की जगह 26 मार्च को लालकुआं पहुंच गए। पुलिस को हालात बताए तो एक ट्रक पर फ्री में बैठा दिया। 27 मार्च को बरेली और वहां से दूसरे वाहन से बरेली मोड़ तक आ गए। रात में ही पैदल गांव पहुंचे, पर असल मुश्किलें अब शुरू हुईं। करीब बीस फिट दायरे में बने घर का आधा हिस्सा गिर चुका है। जगह इतनी कि भाई सुधीर व भाभी ही रह सकते हैं। पिता मुकेश खाली जगह में पन्नी तानकर रह रहे हैं। खेती है नहीं, भाई मजदूरी करते हैं। आकाश को यहां काम भी नहीं मिल रहा। होटल मालिक व ठेकेदार फोन नहीं उठा रहे। आने से पहले तनख्वाह देने के लिए ठेकेदार को जनसेवा केंद्र संचालक का खाता नंबर दिया था, लेकिन अभी तक रुपये नहीं मिले। उनका कहना है कि इन हालात में न तो यहां रुक सकते हैं और न ही वापस जा सकते हैं। घर के बाहर गांव वालों से बात कर रहे छोटेलाल, उनके दो भाइयों समेत पूरा परिवार दो वर्ष से गाजियाबाद में रह रहा है। तीनों भाई राजमिस्त्री हैं। लॉकडाउन में वापस तो आए, लेकिन यहां सिर्फ खेतों में गुड़ाई का काम मिल रहा है वह भी कभी-कभी। जर्जर घर की मरम्मत भी कराना मुश्किल है। नेम कुमार के पिता हरिराम, मां उर्मिला, एक बहन व चार भाई लखनऊ के पास बाराबंकी रोड पर ईंट भट्ठे पर काम करते हैं। बहन राधा की चार जून को शादी होनी थी। लॉकडाउन में ऐसा फंसे कि वापस नहीं आ पा रहे हैं। अब 15 जून को शादी होना तय हुई है, लेकिन कैसे होगी यह समझ नहीं आ रहा। चारपाई पर लेटे विजय वर्मा की पत्नी गंगा देवी काफी समय से बीमार हैं। इलाज में दस बीघा खेत व मकान बिक गया। रोजा के इंडस्ट्रीयल एरिया में मजदूरी कर रहे थे, लॉकडाउन में घर बैठना पड़ा। भाई पृथ्वीराज व अमर सिंह ने रहने व खाने का इंतजाम तो कर दिया है, लेकिन इस व्यवस्था को ज्यादा दिन नहीं चलाया जा सकता।

वर्जन :

गांव में 160 लोग आए हैं। सभी की सूची तैयार करके एसडीएम को भेज दी गई है। जॉब कार्ड व राशन कार्ड बनवाने का प्रयास कर रहे हैं।

किशन पाल, प्रधान

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