..यहां नहीं हो रहा मरीजों का बेहतर इलाज

संतकबीर नगर जिला अस्पताल में मरीजों के इलाज का कोरम पूरा किया जा रहा है। अस्पताल में जीवन रक्षक दवाएं नहीं हैं। मरीजों को मजबूरी में बाहर की दवा लेनी पड़ रही है। हैरत की बात यह है कि पचाय फीसद डाक्टर ही अस्पताल आते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 02 Dec 2020 05:26 PM (IST) Updated:Wed, 02 Dec 2020 05:26 PM (IST)
..यहां नहीं हो रहा मरीजों का बेहतर इलाज
..यहां नहीं हो रहा मरीजों का बेहतर इलाज

संतकबीर नगर: जिला अस्पताल में मरीजों के इलाज का कोरम पूरा किया जा रहा है। अस्पताल में जीवन रक्षक दवाओं का अभाव होने से चिकित्सक बाहर की दवा लिख रहे हैं। इसका फायदा दवा विक्रेता उठा रहे हैं और मरीजों से मनमानी कीमत वसूल रहे हैं।

जिला अस्पताल में तैनात चिकित्सकों में पचास फीसद ही प्रतिदिन आते हैं। सभी चिकित्सकों के न आने से मरीज अब जिला अस्पताल पहुंचने से परहेज कर रहे हैं।

अस्पताल में उपचार कराने आयी हरपुर-बुदहट गांव की निशा ने बताया कि बच्चे को कुत्ता काटने का इंजेक्शन लगवाना था। कर्मियों ने बताया कि अस्पताल में इंजेक्शन नहीं है। दुकान पर लगवा लीजिए। कहा कि बच्चे के शरीर में दर्द है तो डाक्टर ने बताया कि सरकारी दवा नहीं है, बाहर की लिखनी पड़ेगी। मजबूरी में बाहर की दुकान से दवा लेनी पड़ी। बेलहर की अमरावती देवी ने कहा कि पैर में चोट लगी है। कुछ दिनों से दर्द से परेशान हूं। अस्पताल आई तो डाक्टर बाहर की दवा लिखी। दुकान का नाम भी बताया। बघौली की गुड़िया ने बताया कि वह अपने बच्चे को दिखाने आई थीं, लेकिन यहां चिकित्सक ही नहीं मिले। दूसरे डाक्टर को दिखाई तो उन्होंने कहा कि अस्पताल की दवा से कोई फायदा नहीं होगा। बाहर की दवा लेनी पड़ेगी और जांच भी बाहर की कराना होगा। पैसा नहीं था, इसलिए बिना इलाज के ही वापस लौट रही हूं। इसी तरह की पीड़ा धनघटा की सुलेखा देवी, राजवंती, नंदौर की रुबिना खातून, रजिया और सेवाती देवी का भी था। उन्होंने कहा कि वह लोग जिला अस्पताल में इसलिए आईं थीं कि उन्हें दवा निश्शुल्क मिल जाएगी। लेकिन यहां न तो चिकित्सक हैं और न ही दवा मिल रही है। सुबह से लाइन में लगने के बाद भी कोई फायदा नहीं मिल रहा।

24 चिकित्सकों में सिर्फ 12 आते अस्पताल

जिला अस्पताल में कुल 24 चिकित्सकों की तैनाती है। लेकिन अस्पताल ंमें रोज एक दर्जन ही पहुंचते हैं। बाकी के चिकित्सक कभी-कभार ही आते हैं। नाक-कान-गला रोग, चर्म रोग, बाल रोग विशेषज्ञ, स्त्री रोग के साथ ही मानसिक रोग विशेषज्ञ का ओपीडी कक्ष हमेशा बंद रहता है। इन चिकित्सकों के पास इलाज के लिए पहुंचने वाले मरीजों को निराशा ही हाथ लगती है।

----कोट------

अस्पताल में जीवन रक्षक दवाएं होने के बाद भी बाहर की दवा लिखना गलत है। आरोपों की जांच कर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अस्पताल में कुछ दवाएं खत्म हुईं हैं, जिनके लिए शासन को लिखा गया है। बिना बताए गायब रहने वाले चिकित्सकों पर कार्रवाई की जाएगी।

डा. ओपी चतुर्वेदी, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक

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