रायबरेली रेल कोच फैक्ट्री फिर बनी राजनीति का अखाड़ा, इस बार निगमीकरण को बनाया मुद्दा
राजनीति रायबरेली रेल डिब्बा कारखाना के लिए नई बात नहीं लेकिन मंगलवार को कारखाने की नींव रखने वाली सोनिया गांधी ने संसद में यह प्रकरण उठाया तो मुद्दा राष्ट्रीय पटल पर छा गया।
रायबरेली [रसिक द्विवेदी]। आधुनिक रेल डिब्बा कारखाना (आरेडिका) को लेकर इस समय सियासत गर्म है। पक्ष हो या विपक्ष, हर जुबां पर इसी का नाम है। मुद्दा इसके निगमीकरण का है। कहीं विरोध है तो कोई क्षेत्रीय हित की बात कहकर सरकार के साथ खड़ा है। राजनीति आरेडिका के लिए नई बात नहीं, लेकिन मंगलवार को कारखाने की नींव रखने वाली सोनिया गांधी ने संसद में यह प्रकरण उठाया तो मुद्दा राष्ट्रीय पटल पर छा गया।
उधर, रायबरेली की सांसद सोनिया गांधी ने सरकार को घेरा तो इधर, बीते लोकसभा चुनाव में उन्हें टक्कर देने वाले एमएलसी दिनेश सिंह ने सरकार का समर्थन किया। निगमीकरण को क्षेत्रीय लोगों के लिए हितकारी बताया। इस फैक्ट्री को लेकर राजनीति कोई पहली बार नहीं हो रही है। शिलान्यास के पहले ही केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस और राज्य की बसपा सरकार फैक्ट्री को लेकर आमने-सामने आ गईं थीं। मुद्दा जमीन का था।
बड़ा आरोप यह भी था कि सूबे की सरकार चाहती थी कि फैक्ट्री न लगे। जमीन न देने के लिए किसानों पर भारी दबाव बनाया गया, लेकिन किसान चाहते थे कि फैक्ट्री लगे। इसकी खातिर उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। तब कहीं भू अधिग्रहण हुआ। इसके बाद साल 2007 में इसकी शिला रखी गई। बीते लोकसभा चुनाव में भी यह फैक्ट्री मुद्दा रही। यहीं पीएम नरेंद्र मोदी ने सभा की थी। पीएम सबसे ज्यादा इसी पर बोले भी थे। इस तरह आरेडिका का राजनीति से पुराना रिश्ता रहा। समय-समय पर फैक्ट्री इसे लेकर चर्चाओं में रही। इस बार निगमीकरण की पहल मात्र से यह सुर्खियों में आ गई है।
आरेडिका की भौगोलिक स्थिति
आरेडिका में उत्पादन की रफ्तार पर एक नजर
वर्ष : कोच
2011-12 : 18
2012-13 : 70
2013-14 : 130
2014-15 : 140
2015-16 : 285
2016-17 : 576
2017-18 : 711
2018-19 : 1422