शहद ने जीवन में घोला रस, बदल गई आनंद की किस्मत

कभी-कभी खराब परिस्थिति बहुतों के लिए नए अवसर भी साथ लाती है। कुछ ऐसी ही खुशी भूपियामऊ निवासी आनंद कुमार मुसहर के जीवन में भी देखने को मिली। कुछ साल पहले शुरू किए गए शहद के व्यवसाय ने उनके जीवन में ऐसा रस घोला कि उनकी किस्मत ही बदल गई। शुरुआती दौर में उनकी आय 25 हजार वार्षिक थी अब वह बढ़कर चार लाख से अधिक हो गई। कोरोना संक्रमण काल में वह बेरोजगारों के लिए एक मिसाल बन गए हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 19 May 2021 10:44 PM (IST) Updated:Wed, 19 May 2021 10:44 PM (IST)
शहद ने जीवन में घोला रस, बदल गई आनंद की किस्मत
शहद ने जीवन में घोला रस, बदल गई आनंद की किस्मत

रमेश त्रिपाठी, प्रतापगढ़ : कभी-कभी खराब परिस्थिति बहुतों के लिए नए अवसर भी साथ लाती है। कुछ ऐसी ही खुशी भूपियामऊ निवासी आनंद कुमार मुसहर के जीवन में भी देखने को मिली। कुछ साल पहले शुरू किए गए शहद के व्यवसाय ने उनके जीवन में ऐसा रस घोला कि उनकी किस्मत ही बदल गई। शुरुआती दौर में उनकी आय 25 हजार वार्षिक थी, अब वह बढ़कर चार लाख से अधिक हो गई। कोरोना संक्रमण काल में वह बेरोजगारों के लिए एक मिसाल बन गए हैं।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद आनंद कुमार मुसहर ने वर्ष 2007 में मधुमक्खी पालन की शुरुआत की। पहले उन्होंने पांच डिब्बे से मधुमक्खी पालन किया। प्रतिमाह एक डिब्बे से 40 से 50 किलोग्राम शहद निकलती है। यह 120 प्रति किलोग्राम की दर से बिक जाती है। यही शहद फुटकर में 300 रुपये किलो तक बिक जाती है। उस समय उनकी आय साल भर में लगभग 25 हजार थी। अब वह 100 डिब्बे में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं और चार लाख से अधिक वार्षिक आय हो रही है। आनंद डिब्बों से निकलने वाली शहद को कंपनियों को देने के साथ ही डीलरों व फुटकर भी लोगों को बेचते हैं। मधुमक्खी पालन का यह काम अपने जौनपुर निवासी मामा जयराम से सीखा। उनके मामा भी 100 डिब्बे में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। आनंद कुमार बताते हैं कि इम्युनिटी बढ़ाने में शहद काफी फायदेमंद है। इस कोराना काल में शहद की मांग काफी बढ़ गई है। उन्होंने बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवाओं से मधुमक्खी पालन कर अपनी किस्मत चमकाने की सलाह दी है। वह बताते हैं कि इसके साथ कई दूसरे काम भी साथ में किए जा सकते हैं।

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सप्ताह में एक दिन करनी पड़ती है साफ सफाई

मधुमक्खी पालन में सप्ताह में एक दिन डिब्बों की साफ सफाई करनी पड़ती है। आनंद कुमार बताते हैं कि पूर्व में वह शहर के एक प्रमुख चिकित्सक के यहां कार्य करते थे। साथ में मधुमक्खी पालन भी कर रहे थे। शहद तैयार होने के बाद इसके विक्रय में भी कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ती।

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जिले के दस लोग कर रहे मधुमक्खी पालन

जिला उद्यान अधिकारी अनिल दुबे बताते हैं कि इस समय जिले के 10 लोग मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। गत वर्ष पांच लोगों को मधुमक्खी पालन कराने का लक्ष्य मिला था। इसके अंतर्गत दो लाख 20 हजार रुपये 40 फीसद अनुदान पर दिए जाते हैं। इसके साथ 50 बक्से में मधुमक्खी पालन कराया जाता है। उन्होंने बताया कि अभी इस साल का लक्ष्य नहीं मिल सका है।

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महिलाओं की कोशिश से प्रतापगढ़ बनेगा हब

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम)से जुड़कर स्वयं सहायता समूह की महिलाएं बेबी ट्राई साइकिल, आंवले का उत्पाद, बकरी पालन, मछली पालन, मास्क व सैनिटाइजर बना रहीं हैं, वहीं अब कुंडा व कालाकांकर ब्लाक में संचालित समूह की महिलाएं मधुमक्खी पालन करने का रोजगार शुरू करने जा रही हैं। दोनों ब्लाकों से करीब 30 समूह की करीब 350 से अधिक महिलाओं को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। इन महिलाओं को कृषि विज्ञान केंद्र कालाकांकर में प्रशिक्षित किए जाने की तैयारी चल रही है। एनआरएलएम के जिला मिशन प्रबंधक रतन कुमार मिश्रा ने बताया कि समूह की महिलाएं जल्द ही मधुमक्खी पालन का काम शुरू करेंगी। कुछ ही दिन में व्यापक स्तर पर शहद उत्पादन का काम महिलाओं द्वारा शुरू कर दिया जाएगा।

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