यहां बिखरी हैं बापू की यादें
प्रतापगढ़ : धोती लंगोटी के बल पर देश को आजादी दिलाने वाले बापू का नाम आते ही रानीगंज तहसील क्षेत्रवा
प्रतापगढ़ : धोती लंगोटी के बल पर देश को आजादी दिलाने वाले बापू का नाम आते ही रानीगंज तहसील क्षेत्रवासियों को उनकी याद ताजा हो जाती है। बभनमई गांव की चर्चा भी होती है। इस गांव में बापू ने चरखा चलाया था। गांधी जयंती वैसे तो पूरे देश में मनायी जाती है, लेकिन बभनमई में कुछ ज्यादा ही उत्साह रहता है। यहां 1938 में पहली बार गांधी जी आए और डाक बंगला में रुके। गांधी आश्रम में चरखे को अपने हाथों से कात कर लोगों को संदेश दिया था कि स्वदेशी अपनाएं। गांधी जी की याद में महज मिट्टी का चबूतरा उस पर उगे झील झंखाड़ व जर्जर कुआं ही बचा है। प्रतापगढ़-बादशाहपुर राजमार्ग किनारे बभनमई गांव में गांधी जी के नाम से बना डाक बंगला पूरी तरह से समाप्त हो गया है। यहां कुंआ भी जर्जर हो चुका है। चबूतरे का भी अस्तित्व मिट चुका है। सिर्फ मिट्टी ही बची है। 1936 में आचार्य कृपलानी के साले धीरेंद्र भाई की देखरेख में बभनमई गांव में गांधी आश्रम डाक बंगले व चरखे केंद्र का उद्घाटन हुआ। इसका संचालन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं.श्याम नारायण उपाध्याय ने किया था। यहां पर डाक बंगले में देश के कोने कोने से लोग आकर रुकते थे और आंदोलन की रूपरेखा तैयार करते थे। 1938 के करीब महात्मा गांधी बभनमई गांव स्थित डाक बंगला पहुंचे और यहां रुकने के बाद चरखे से कताई कर लोगों को संदेश दिया कि विदेशी कपड़े छोड़ स्वदेशी कपड़े पहने। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. श्याम नारायण उपाध्याय, देवी प्रसाद तिवारी, झूरी शर्मा, गिरिजा रमण शुक्ल सहित लोगों ने चरखे की ट्रे¨नग लेकर लोगों को सिखाया था। गांव के बुजुर्ग समाजसेवी ओमनिरंकार देव उपाध्याय व प्रभाशंकर ओझा, पशुपति उपाध्याय का कहना है कि 1936 में बभनमई गांव में गांधी डाक बंगले व चरखा ट्रे¨नग का उद्घाटन धीरेन्द्र भाई ने किया था। जिले में 45 शाखाएं संचालित थी। ओम ¨नरकार उपाध्याय, पशुपति उपाध्याय, अजय कुमार ओझा, बंटी उपाध्याय सहित लोगों को कहना है कि जहां पर कभी आजादी के पहले चहल पहल थी आज वही वीरान है।