सूने चिरागों को लौ देकर फैला रहीं शिक्षा की रोशनी

नोएडा कोरोना महामारी के दौरान जब सब कुछ थम सा गया था स्कूल-कालेजों में ताले लग गए थे लेकिन ऐसे में भी सुशिक्षित समाज की सोच को सार्थक करते हुए नोएडा की 23 वर्षीय नीशू मिश्रा ने शिक्षा की लौ को मंद नहीं पड़ने दिया।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 25 Dec 2020 09:33 PM (IST) Updated:Fri, 25 Dec 2020 09:33 PM (IST)
सूने चिरागों को लौ देकर फैला रहीं शिक्षा की रोशनी
सूने चिरागों को लौ देकर फैला रहीं शिक्षा की रोशनी

पारुल रांझा, नोएडा: कोरोना महामारी के दौरान जब सब कुछ थम सा गया था, स्कूल-कालेजों में ताले लग गए थे, लेकिन ऐसे में भी सुशिक्षित समाज की सोच को सार्थक करते हुए नोएडा की 23 वर्षीय नीशू मिश्रा ने शिक्षा की लौ को मंद नहीं पड़ने दिया। वह कोरोना महामारी में भी जरूरतमंद बच्चों के लिए ज्ञान की गंगा बहा रही है। सेक्टर-56 की रहने वाली नीशू की उम्र भले ही कम हो लेकिन झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को शिक्षित करने का उनका जज्बा किसी से कम नहीं है। वह सेक्टर-62 बस्ती में रहने वाले बच्चों की टीचर दीदी बन गई हैं। दिन में सेक्टर के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के अलावा स्वयं सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रही हैं। शाम को वह झुग्गी के उन बच्चों को पढ़ाती हैं जो स्कूल नहीं जाते हैं। करीब पचास से अधिक बच्चों को अलग-अलग समय पर वह शिक्षित कर रही हैं। समाज को साक्षर बनाने का बीड़ा उठाने वाली नीशू का सपना गरीबों के खुरदरे आंगन में खुशियों के दीप जलाने का है।

मां से मिली बच्चों को शिक्षित करने की प्रेरणा: नीशू बताती हैं कि हर वर्ग के लिए पढ़ाई बेहद जरूरी है। जब वह छोटी थीं तो उनकी मां जरूरतमंद बच्चों को घर में पढ़ाया करती थीं। उसी दिन से उन्होंने भी ग्रामीण इलाकों व फुटपाथ पर घूम रहे असहाय बच्चों को शिक्षित करने की ठान ली। तीन साल पहले उन्होंने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था। वह अपनी पुरानी किताबों से भी बच्चों को पढ़ाती हैं ताकि इसमें भाषा से लेकर सामान्य ज्ञान के बारे में उन्हें बताया जा सके। सेक्टर के बच्चों से मिली ट्यूशन की फीस इन जरूरतमंद बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए खर्च करती हैं। कोरोना काल में पठन-पाठन के इस कार्य में नियमों की उल्लंघन न हो, इसका भी विशेष ध्यान रखा जाता है।

शिक्षा के साथ उपलब्ध कराती हैं पठन सामग्री: नीशू बताती हैं कि हमें बिना भेदभाव और स्वार्थ के ज्ञान बांटना चाहिए। झुग्गी झोपड़ी में जाकर बच्चों के घर वालों को शिक्षा के प्रति जागरूक करना कठिन था। वह अपने बच्चों से काम कराने को प्राथमिकता देते हैं। इस परिस्थिति में उनको मनाना असंभव जैसा था, लेकिन जागरूकता के बाद बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजने लगे। बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा के साथ किताबें कापी, कलम व पेंसिल आदि सामग्री भी दी जाती है। साथ ही किताबी शिक्षा के साथ बच्चों में नैतिक मूल्यों और संस्कारों की शिक्षा देती हैं। उनका मानना है कि बच्चों में बेसिक शिक्षा का स्तर ही उनको समाज से परिचित कराता है।

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