डॉक्टरों के साथ मारपीट को लेकर आइएमए ¨चतित

बीते वर्ष शहर के कई बड़े निजी अस्पतालों में मरीज की मौत पर डॉक्टर से मारपीट की घटनायें बढ़ी है। जिसको लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने ¨चता व्यक्त की है। आईएमए को लगता है अगर डॉक्टर की लापरवाही से किसी मरीज की जान गई है, तो परिजन इसके लिए कानूनी कार्रवाई का सहारा लें।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 13 Jan 2019 10:31 PM (IST) Updated:Sun, 13 Jan 2019 10:31 PM (IST)
डॉक्टरों के साथ मारपीट को लेकर आइएमए ¨चतित
डॉक्टरों के साथ मारपीट को लेकर आइएमए ¨चतित

जागरण संवाददाता, नोएडा: बीते वर्ष शहर के कई बड़े निजी अस्पतालों में मरीज की मौत पर डॉक्टर से मारपीट की घटनाएं बढ़ी हैं। जिसको लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) ने ¨चता व्यक्त की है। आइएमए को लगता है कि अगर डॉक्टर की लापरवाही से किसी मरीज की जान गई है तो परिजन इसके लिए कानूनी कार्रवाई का सहारा लें।

नोएडा आइएमए के अध्यक्ष डॉ. अर¨वद गर्ग ने बताया कि अस्पताल में मरीज की मौत पर परिजनों के हंगामे से निजी अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टर के प्रति लोगों का भरोसा खत्म हो रहा है जो नहीं होना चाहिए। अगर किसी को लगता है कि अस्पताल और डॉक्टर की लापरवाही से किसी मरीज की जान गई है तो वे इसके लिए अस्पताल प्रशासन के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करें। शहर के कई वरिष्ठ चिकित्सकों को बताया गया कि अगर आपने किसी निजी अस्पताल, नर्सिंग होम या डॉक्टर से इलाज कराया हो और उसके लिए पैसे दिए हों तो आप एक उपभोक्ता हैं। लेकिन अस्पताल में जैसे ही परिजनों को किसी करीबी के मौत की खबर मिलती है वे आपा खो देते हैं और तोड़फोड़ करने लगते हैं। जो नहीं होना चाहिए। बल्कि इसकी शिकायत मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से करें। जो दोषी डॉक्टर, अस्पताल के खिलाफ अपनी आचार संहिता के अनुसार अनुशासनिक कार्रवाई करता है। साथ ही उपभोक्ता कोर्ट से नुकसान की भरपाई, मानसिक कष्ट के लिए मुआवजे और कानूनी खर्च की मांग करें।

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हुड़दंग होने पर नष्ट हो जाते है सारे सबूत:

कानूनी विशेषज्ञों ने बताया कि हुड़दंग में अस्पताल को वे सारे दस्तावेज नष्ट करने का मौका मिल जाता है जिनसे अस्पताल और डॉक्टर की गलती पकड़ी जा सकती थी। जबकि रोजाना की फाइल नो¨टग से पता चलता है कि मरीज को कौन-सी बीमारी थी और क्या इलाज किया गया। इसे'ट्रीटमेंट हिस्ट्री'कहते हैं। अस्पताल का दस्तावेज मानकर इसे मरीज को नहीं दिया जाता। मरीज को केवल डिस्चार्ज समरी दी जाती है। मामला अदालत में आने पर अदालत केस हिस्ट्री अस्पताल से मांगती है। केस दाखिल होने से पहले हंगामा करने पर उन दस्तावेज में फेरबदल की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसीलिए अस्पताल में मरीज की मौत पर उनके परिजन तोड़फोड़ नहीं करें। कानूनी विशेषज्ञों ने बताया कि किसी भी मरीज के परिजनों को ये अधिकार है कि वे इलाज के समय उसके पास रह सकता है। साथ ही ऑपरेशन से पहले भरे जाने वाले फॉर्म के बार में जानकारी ले सकता है। एवं डॉक्टर से एनेस्थीसिया और ऑपरेशन के बाद नो¨टग कॉपी की भी मांग कर सकता है।

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बीते वर्ष की बड़ी घटनाएं- सेक्टर-62 के फोर्टिस अस्पताल में 31 अगस्त को शव के बदले पैसा मांगने पर डॉक्टर से अभद्रता

- फोर्टिस अस्पताल में 18 सितंबर को शव के रुपये मांगने पर स्टाफ से अभद्रता

- सेक्टर-33 के प्रकाश अस्पताल में 26 अक्टूबर को युवक की मौत पर परिजनों का हंगामा

- सेक्टर-34 के मानस अस्पताल में मरीज की मौत पर तीमारदार और डॉक्टर के बीच जमकर हाथापाई

- ग्रेटर नोएडा के यथार्थ अस्पताल में मरीज की मौत पर स्टाफ से मारपीट और कंप्यूटर तोड़े

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निजी अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टर अब खुद ही डिफेंसिव प्रेक्टिस करते हैं। वे किसी भी बीमारी का इलाज शुरू करने से पहले जांच कराने की सलाह देते हैं।

डॉ. अर¨वद गर्ग, अध्यक्ष, आइएमए

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अक्सर निजी अस्पतालों में मरीज की मौत होने पर परिजन डॉक्टर के साथ मारपीट और तोड़फोड़ शुरू कर देते है जो पूरी तरह गैरकानूनी है। अगर किसी को लगता है कि डॉक्टर की लापरवाही से मरीज की जान गई है तो वह कानूनी कार्रवाई करें।

डॉ. गुलाब गुप्ता, वरिष्ठ चिकित्सक, नियो अस्पताल

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