मुजफ्फरनगर दंगा : बर्फ बनकर पिघलने लगे नफरत के शोले, 30 परिवार दुल्हेरा गांव लौटे
पांच साल पहले हुए दंगे में दहके नफरत के शोले अब बर्फ बनकर पिघलने लगे हैं। शुरुआत दुल्हेरा गांव से हुई है। दंगे में घर छोड़ गए 65 परिवारों में से 30 घर लौट आए हैं।
मुजफ्फरनगर (कपिल कुमार)। पांच साल पहले हुए दंगे में दहके नफरत के शोले अब बर्फ बनकर पिघलने लगे हैं। छिन्न-भिन्न हुआ सामाजिक ताना-बाना पुराने स्वरूप में लौट रहा है। शुरुआत दुल्हेरा गांव से हुई है। दंगे में घर छोड़ गए 65 परिवारों में से कोई 30 परिवार घर लौट आए हैं। दो समुदायों के बीच की खाई को पाटने के लिए इंसानियत के कुछ फरिश्ते आगे आए हैं। इनमें से एक हैं गांव के पूर्व प्रधान संजीव चौधरी। उन्होंने पलायन कर गए मुसलिम परिवारों की कमी महसूस की। राहत कैंपों में संपर्क साधे। अन्य शहरों में बस गए शरणार्थियों को ढूंढ़ा। आखिरकार उनके मकसद में छिपी भावना जीती। संजीव के प्रयास को पूरे गांव का समर्थन मिला। अब दंगे के जख्म भूलकर ग्रामीण पहले की तरह मेल-मिलाप से रह रहे हैं।
मुजफ्फरनगर जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूर बसा दुल्हेरा गांव सैकड़ों मील दूर तक बड़ा संदेश दे रहा है। जाट बहुल इस गांव पर पांच साल पहले हिंसा का साया पड़ा था। आठ सितंबर 2013 की सुबह पास के गांव कुटबा में हैवानियत का नंगा नाच हुआ। आठ लोग बेमौत मारे गए। कुटबा गांव यहां से काफी करीब है। दुल्हेरा के चिनाई मिस्त्री रईसुद्दीन की गांव आते समय जंगल में बाइक फूंक दी गई, किसी तरह भागकर जान बचाई। लोग बुरी तरह सहम गए थे। ऐसे में इंसानियत का फरिश्ता बनकर सामने आए ग्राम प्रधान संजीव चौधरी। उन्होंने मुसलिमों को एकत्र किया और अपने घेर में पनाह दी। सबकी सांसें अटकी हुई थीं। इस दौरान आर्मी की एक टुकड़ी गांव पहुंची तो लोगों की जान में जान आई। बाद में इन लोगों को ग्राम प्रधान संजीव ही सुरक्षा के बीच दंगा राहत कैंपों में छोड़कर आए। इसके बाद तमाम प्रयास हुए, लेकिन मुस्लिमों ने साफ कर दिया कि वे अपने गांवों में नहीं जाएंगे। संजीव चौधरी और उनकी टीम ने प्रयास जारी रखे। लोगों से संपर्क किए। एक-एक कर 30 परिवारों को गांव में ले आए हैं। इनमें बाबू लुहार, चिनाई मिस्त्री कालू, मोहम्मद हनीफ आदि शामिल हैं ।
गांव आते ही पहुंच गए बिजली बिल
दंगे के बाद पलायन कर गए लोगों पर बिजली विभाग ने भारी भरकम बिल भेजे हैं। पांच साल से विभाग चुप था, लेकिन अब गांव लौटे कालू पर बिजली का बिल 30 हजार रुपये आया है। इसी तरह मोहम्मद हनीफ पर बिजली का बिल 32 हजार रुपये आया है। इनका कहना है कि वे घर से चले गए थे, उन्होंने बिजली का उपयोग भी नहीं किया। गांव के लोगों ने ऊर्जा निगम से बिलों में रियायत कराने की मांग की है।
मुस्लिम भी हमारे भाई हैं : संजीव
संजीव चौधरी अब पूर्व प्रधान हैं। उनका कहना है कि मुस्लिम भी हमारे भाई हैं, उन्हें गांव लाने के लिए वह पिछले पांच साल से प्रयास कर रहे हैं। जब तक वह सभी परिवारों को नहीं ले आएंगे, चैन से नहीं बैठेंगे।