गुरु ने कुश्ती के साथ जीवन के संघर्ष से लड़ना सिखाया

खेल हो या जिदगी बिना गुरु और मंत्र के कामयाबी नहीं मिलती है। कुश्ती में बुलंदी पर पहुंचने वाली दिव्या काकरान को अखाड़े में दांव-पेंच के साथ जीवन के संघर्ष से लड़ने के लिए गुरु ने ही रास्ता दिखाया।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 04 Jul 2020 11:56 PM (IST) Updated:Sun, 05 Jul 2020 06:07 AM (IST)
गुरु ने कुश्ती के साथ जीवन के संघर्ष से लड़ना सिखाया
गुरु ने कुश्ती के साथ जीवन के संघर्ष से लड़ना सिखाया

मुजफ्फरनगर, जेएनएन। खेल हो या जिदगी बिना गुरु और मंत्र के कामयाबी नहीं मिलती है। कुश्ती में बुलंदी पर पहुंचने वाली दिव्या काकरान को अखाड़े में दांव-पेंच के साथ जीवन के संघर्ष से लड़ने के लिए गुरु ने ही रास्ता दिखाया। गुरु मंत्र की बदौलत दिव्या ने खेल के साथ जीवन की अनेक बाधाओं को अपने कौशल से दूर किया है। वह जिदगी में सबसे पहले गुरु अपने पिता को मानती हैं। उसके बाद खेल की दुनिया में पारंगत करने वाले गुरुवर को स्थान देती हैं।

13 साल की उम्र में लड़ी पहली कुश्ती

दिव्या काकरान बताती हैं कि कुश्ती खेल को लेकर उनके भीतर बचपन से ही रुचि थी। लेकिन परिवार की हालत ऐसी नहीं थी कि इस खेल में पारंगत हो सके। पिता सूरजवीर ने दिव्या की इस इच्छा को डिगने नहीं दिया। शुरुआती दौर में जिदगी के शिक्षक बने उनके पिता ने बेटी को मुकाम तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पहले खेत में अखाड़ा बना कर कुश्ती के बारे में समझाया। इसके साथ ही जीवन में आने वाली मुश्किलों से लड़ने के भी मंत्र दिए। सूरजवीर बताते हैं कि दिव्या में इस खेल की ललक बहुत अधिक थी। ऐसे में वह और उनकी पत्नी तंगहाली से जूझने के बाद भी बेटी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहे। महज 13 वर्ष की उम्र में दिव्या ने बिजनौर क्षेत्र में पहली कुश्ती लड़ी और इसमें जीतकर परिवार का नाम चमकाया।

गुरु विक्रम सिंह ने दिखाया कामयाबी का मार्ग

दिव्या काकरान दिल्ली के प्रेमनाथ कुश्ती अखाड़ा में प्रशिक्षण लेती हैं। दिव्या के अनुसार अपने पिता से सीख मिलने के बाद वह विक्रम सिंह को अपना गुरु मानती हैं। विक्रम सिंह ही हैं जिन्होंने कुश्ती के साथ जीवन की बारीकियों को उन्हें बखूबी सिखाया और समझाया है। गुरु विक्रम सिंह की बदौलत दिव्या ने देश विदेश में अपनी प्रतिभा का डंका बजाया है। कई दिग्गज पहलवानों को भी पटखनी दे चुकी है। गुरु की छाया में रहकर दिव्या ने कड़ी मेहनत की और बुलंदियों को छुआ है। दिव्या ने अंडर 23 एशियन चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। स्पेन धरती पर हुए ग्रैंड प्रिक्स टूर्नामेंट में तिरंगा लहराया।

पिता के आशीष और गुरु छाया में बजाया डंका

दिव्या के कुश्ती खेल में 71 से अधिक पदक हो चुके हैं, जिनमें 15 से ज्यादा में गोल्ड मेडल हैं। एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम में उनकी प्रतिभा का डंका देश विदेश ने देखा है। वह कहती है कि यह सब कुछ पिता के आशीष और गुरु की छाया से ही संभव हो सका है।

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