उत्तराखंड शहीदों के संघर्ष से बदली पहाड़ की तकदीर
योगेश कुमार 'राज', मुजफ्फरनगर : एक अक्टूबर 1994 की वो काली रात आज भी रोंगटे खड़ी कर देती है। उ
योगेश कुमार 'राज', मुजफ्फरनगर :
एक अक्टूबर 1994 की वो काली रात आज भी रोंगटे खड़ी कर देती है। उत्तराखंड की मांग को लेकर जब आंदोलनकारियों का जत्था दिल्ली जाते समय रात में यहां रुका था। तत्कालीन सपा सरकार के इशारे पर आंदोलनकारियों का दमन किया गया। उन पर लाठीचार्ज किया गया। फाय¨रग की गई और महिलाओं की मर्यादा का हनन। उस मनहूस रात ने कई घरों में हमेशा के लिए अंधेरा कर दिया, लेकिन उत्तराखंड के शहीदों के संघर्ष और बलिदान से पहाड़ की तकदीर बदल गई। अब वहां के युवाओं के पास रोजगार है, नेताओं के पास निर्णय लेने की आजादी। आम लोगों के पास अपनी समस्या को लेकर कहने का अधिकार रखने वाली सरकार। आज का दिन जहां एक ओर उनके जख्मों को नासूर बनाता है, वहीं दूसरी ओर उन्हें विकास के मैदान में परवाज करने के लिए असीमित आकाश भी।
उम्र के अंतिम दौर में पहुंच चुके और शहीद स्तम्भ के लिए जमीन दान करने वाले एवं वर्तमान में उत्तराखंड शहीद स्मारक के केयरटेकर रामपुर निवासी पंडित महावीर शर्मा ने जागरण के साथ बातचीत में अपने दर्द और बलिदान के बदले मिले सुखद अहसास को साझा किया। बकौल महावीर शर्मा एक अक्टूबर 1994 की रात में आंदोलनकारी दिल्ली जाते समय यहां रुके थे। प्रदेश में मुलायम ¨सह की सरकार थी। सरकार के इशारे पर पुलिस-प्रशासन और सरकार के लोगों ने आंदोलनकारियों का दमन किया। आंदोलनकारियों को घेर लिया गया। इसके बाद लाठी-चार्ज हुआ और गोलियां बरसाई गईं। इसी दौरान जत्थे में शामिल महिलाओं की मर्यादा को रौंदा गया। सूर्यप्रकाश, मदनमोहन ममगाई, ब्रेलमति चौहान, अंशा धनाई, गिरीश भद्री, राकेश देवरानी, राजेश नेगी शहीद हुए और सैकड़ों घायल हो गए। उस बलिदान ने उत्तराखंड के कई घरों में हमेशा के लिए अंधेरा कर दिया, लेकिन उन्हीं की शहादत पर उत्तराखंड बना। वर्ष 2003 में निर्वाचित सरकार के पहले मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने यहां पर शहीद पार्क की नींव रखी। यहां सबसे पहले महावीर ¨सह ने अपनी जमीन दान दी। उसी जमीन पर आज उत्तराखंड के शहीदों का बलिदान चमक रहा है और बता रहा है कि बलिदान व्यर्थ नहीं जाता।
इन्सर्ट
आएंगे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ¨सह
उत्तराखंड गठन के बाद से ही हर साल यहां पर दो अक्टूबर को मुख्यमंत्री आते हैं। इस बार यहां पर तीन अलग-अलग कार्यक्रम होंगे। एक कार्यक्रम एक अक्टूबर को हो। दो अक्टूबर को एक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री उत्तराखंड त्रिवेंद्र ¨सह होंगे तथा दूसरा कार्यक्रम उत्तराखंड क्रांतिदल के लोग करेंगे। यहां पर निर्मित पुस्तकालय और संग्राहलय अभी विकसित होने की प्रक्रिया में हैं।
नहीं मिला इंसाफ
उत्तराखंड आंदोलन के दौरान शहीद हुए सात लोगों का मुकदमा मुजफ्फरनगर कोर्ट में चल रहा है। 23 साल बीत गए। कई बार सरकारें बदली और कई सीएम भी आए और चले गए। गवाही, बयान और मुकदमे में तारीख पर तारीख। उत्तराखंड तो मिल गया और वह विकास की गति पर भी दौड़ रहा है, लेकिन इस आंदोलन में शहीद हुए लोगों के परिजनों को अभी भी इंसाफ का इंतजार है।