रामपुर में चांदी के कलश में दफन हैं राष्ट्रपिता बापू की अस्थियां, महात्‍मा गांधी का रामपुर से रहा अटूट र‍िश्‍ता

समाधि स्‍थल बेहद खूबसूरत है। जो भी इधर से जो गुजरता है वह इसकी खूबसूरती को निहारता रहता है। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व राज्यपाल राम नाईक भी यहां आ चुके हैं। सपा शासनकाल में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी यहां आए थे।

By Narendra KumarEdited By: Publish:Fri, 02 Oct 2020 01:30 PM (IST) Updated:Fri, 02 Oct 2020 01:30 PM (IST)
रामपुर में चांदी के कलश में दफन हैं राष्ट्रपिता बापू की अस्थियां, महात्‍मा गांधी का रामपुर से रहा अटूट र‍िश्‍ता
रामपुर में इसी जगह पर चांदी के कलश में दफन हैं राष्ट्रपिता बापू की अस्थियां। जागरण

रामपुर (मुस्लेमीन)। दिल्ली ही नहीं, बल्कि रामपुर में भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि है। इसमें बापू की अस्थियां दफन हैं। राष्ट्रपिता की जब हत्या हुई थी, तब रामपुर में नवाबों का राज था। रियासत के मुख्यमंत्री भी थे। नवाब रामपुर ने अपने मुख्यमंत्री को बापू की अस्थियां लेने के लिए स्पेशल ट्रेन से दिल्ली भेजा था। रामपुर लाने के बाद अस्थियां चांदी के कलश में रखकर दफन कर दी गईं।

राष्ट्रपिता का रामपुर से अटूट रिश्ता रहा। वह कई बार यहां आए। उन्होंने रामपुर नवाब से भी मुलाकात की। तब रामपुर रियासत में यह परंपरा थी कि लोग टोपी लगाकर ही नवाब के सामने पेश होते थे। बापू के लिए महान क्रांतिकारी मौलाना मुहम्मद अली जौहर की मां बी अम्मा ने खुद टोपी सिलकर दी। यही टोपी बाद में गांधी टोपी के नाम से मशहूर हुई और देशभर में स्वत्रंता सेनानियों ने इसी टोपी को पहनकर आजादी कीं जंग लगी। गांधी जी की जब हत्या हुई तब रामपुर नवाबों की रियासत था। दरअसल, रामपुर 30 जून 1949 को आजाद हुआ था।

खुद नवाब ने विसर्जित की अस्थियां

रामपुर का इतिहास लिखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता शौकत अली खां बताते हैं कि मुलाकात के बाद महात्मा गांधी के नवाब खानदान से अच्छे रिश्ते कायम हो गए। गांधी जी की अस्थियां रामपुर लाने के लिए नवाब रजा अली खां ने रियासत के मुख्यमंत्री कर्नल वशीर हुसैन जैदी को अपने मंत्रियों व दरबारी पंडितों के साथ दिल्ली भेजा था। अष्ठ धातु के कलश में अस्थि यहां लाई गईं, जिन्हें रजा इंटर कालेज के मैदान में जनता के दर्शन के लिए रखा गया। इस दौरान उनके दर्शन के लिए भारी भीड़ जमा हुई। इसके बाद नवाब ने कुछ अस्थियां कोसी नदी में विसर्जित कीं। इस कार्य के लिए कोसी में दो नाव चली थीं, एक नाव में नवाब रजा अली खां और उनके मुख्यमंत्री व दरबारी पंडित सवार हुए थे, जबकि दूसरी नाव में अधिकारी सवार थे। कुछ अस्थियां चांदी के कैप्सूल में रखकर दफना दी गईं। नवाब ने खुद अपने हाथ से यह काम किया और फिर यहीं पर गांधी समाधि बना दी गई।

संगमरमर से बनी है समाधि

सपा शासनकाल में करीब 22 करोड़ की लागत से इसका सुंदरीकरण कराया गया। इसके पास चार करोड़ की लागत से इंडिया गेट की तरह खूबसूरत दो भव्य द्वार बनवाए। संगमरमर से बनी यह समाधि बेहद खूबसूरत है। इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। 

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