रोजी-रोटी के दर्द से जूझ रहे प्रवासी श्रमिक

मुरादाबाद लॉकडाउन में दूसरे राज्यों से आए प्रवासी श्रमिकों का जीवनयापन करना कठिन।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 26 May 2020 02:54 AM (IST) Updated:Tue, 26 May 2020 06:00 AM (IST)
रोजी-रोटी के दर्द से जूझ रहे प्रवासी श्रमिक
रोजी-रोटी के दर्द से जूझ रहे प्रवासी श्रमिक

मुरादाबाद: लॉकडाउन में दूसरे राज्यों से आए प्रवासी श्रमिकों का जीवनयापन करना कठिन होता जा रहा है। क्वारंटाइन का समय पूरा होने के बाद प्रवासी श्रमिक गांव में रोजगार के लिए भटक रहे हैं। राज्य सरकार घर में रोजगार देने के लिए चाहें कितने ही दावे करें,लेकिन हकीकत यही है कि गांव में अभी तक रोजगार का सृजन नहीं हो पाया है। गांव में पहले से ही रहने वाले मनरेगा श्रमिकों को सौ दिनों का रोजगार मिलना मुश्किल है। ऐसे में प्रवासी श्रमिक अपने परिवार का पालन-पोषण कैसे करें यह उनकी सबसे बड़ी समस्या है। दैनिक जागरण ने प्रवासी श्रमिकों से जाकर उनका हाल-चाल जाना। सरकार जो दावा प्रवासी श्रमिकों के लिए कर रही है,जमीनी तस्वीर बिल्कुल अलग है।

मुरादाबाद जनपद के देहात विधानसभा क्षेत्र के गांव इस्लाम नगर और कुंदरकी विधानसभा क्षेत्र के गांव देवापुर में आए प्रवासी श्रमिकों को गांव में रोजगार नहीं मिल रहा है। इस्लाम नगर में प्रधान पति संतराम ने बताया कि उनके गांव में दिल्ली के साथ ही अन्य राज्यों से लगभग 15 प्रवासी मजदूर आए थे। क्वारंटाइन के बाद उनके लिए गांव में रोजगार देना मुश्किल है। ऐसे में यह प्रवासी मजदूर किसानों के खेतों में काम करके परिवार का भरण-पोषण करने में जुट गए हैं। गांव में करीब चार सौ लोगों के पास मनरेगा जॉब कार्ड है। ऐसे में पहले जॉब कार्ड धारकों को काम देना जरूरी है। बिना जॉब कार्ड के प्रवासी श्रमिकों को भी काम नहीं दिया जा सकता है। हालांकि जो दूसरे राज्यों से श्रमिक आए हैं,उनके जॉब कार्ड बनाने का प्रयास किया जा रहा है।

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रोजगार तो दूर की बात राशन तक नहीं मिला

कुंदरकी विधानसभा के मूढ़ापांड़े ब्लाक में देवापुर गांव में दूसरे राज्यों से लगभग 40 प्रवासी श्रमिक आए है। यह श्रमिक हरियाणा,उत्तराखंड,हिमाचलके साथ ही अन्य दूसरे राज्यों से आए हैं। लॉकडाउन में अपने घर तक पहुंचने के बाद क्वारंटाइन का समय सभी श्रमिकों ने पूरा किया है। लेकिन गांव के प्रवासी श्रमिक रोजगार के साथ ही राशन न देने की शिकायत की है। हिमाचल प्रदेश आए प्रवासी श्रमिक चंद्रपाल सैनी ने बताया कि गांव में रोजगार की बात तो बहुत दूर की है,यहां राशन भी पर्याप्त मात्रा में नहीं उपलब्ध कराया जा रहा है। प्रवासी श्रमिकों को राशन देने के निर्देश सरकार ने दिए हैं, राशन कार्ड होने के बाद भी हमें कोटेदार पूरा राशन नहीं देता है। दूसरे प्रवासी श्रमिकों ने बताया कि अगर जल्द श्रमिकों को रोजगार और राशन की व्यवस्था नहीं कराई गई,तो परिवार को भरपेट भोजन कराने में भी परेशानी सामने आएगी। लॉकडाउन से पहले उत्तराखंड में मजदूरी करता था। लॉकडाउन में काम मिलना बंद हो गया था। जिसके चलते घर आ गया था। लेकिन अभी तक यहां हमें कोई रोजगार नहीं मिला।

विजय सैनी,प्रवासी श्रमिक,देवापुर गांव

हरियाणा बीते कई सालों से काम कर रहा था। लॉकडाउन में घर वापस आ गया था। लेकिन यहां रहकर परिवार का पालना मुश्किल है।

सुरेश कुमार,प्रवासी श्रमिक,देवापुर गांव

गांव में रोजगार करना और काम मिलना मुश्किल है। सीमित संसाधन में काम मिलना मुश्किल है। भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हूं।

गोपाल,प्रवासी श्रमिक,देवापुर गांव हिमाचल प्रदेश में मजदूरी करके परिवार को पालता था। लेकिन लॉकडाउन के चलते सभी काम-धंधा बंद हो गया है। खेतों में मजदूरी का काम करके समय काटा जा रहा है।

चंद्रपाल,प्रवासी श्रमिक,देवापुर गांव

गांव में सभी को रोजगार देना मुश्किल है। बाहर से आए श्रमिकों के जॉब कार्ड बनाने का काम किया जा रहा है। बिना जॉब कार्ड के मनरेगा में भी काम नहीं दिया जा सकता।

संतराम,प्रधान पति,इस्लाम नगर

प्रवासी श्रमिक खेतों में काम कर रहे हैं। जो अभी तक बाहर काम की तलाश में गए थे,वह सभी अब खेती करके फसल उगाने का काम कर रहे हैं।

करण सिंह,किसान,इस्लाम नगर मनरेगा में हमें सौ दिन का सालभर में काम मिलना मुश्किल है। गांव में इतना काम ही नहीं होता है। ऐसे प्रवासियों को कैसे काम कराया जाएगा।

भीमसेन, मनरेगा मजदूर, इस्लाम नगर

गांव में पहले खेती करने से भी बचते थे। लेकिन जो लोग पहले बाहर गए थे,वही अब गांव में आकर खेतों में काम मांग रहे हैं।

जबर सिंह, किसान, इस्लाम नगर

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