कोरोना में चुनाव प्रचार के बदले तरीके से कारोबारियों को नुकसान, होर्डिंग-बैनर बनाने वालों का कारोबार हुआ शून्य

Businessmen suffer losses by change in election campaign दो दशक पहले कान फोड़ू प्रचार पर चुनाव आयोग की सख्ती से लेकर इस कोरोना काल तक राजनीतिक प्रचार पूरी तरह शांत हो गया है। राजनीतिक दलों ने प्रत्याशी घोषित करने शुरू कर दिए हैं।

By Samanvay PandeyEdited By: Publish:Mon, 17 Jan 2022 10:29 AM (IST) Updated:Mon, 17 Jan 2022 10:29 AM (IST)
कोरोना में चुनाव प्रचार के बदले तरीके से कारोबारियों को नुकसान, होर्डिंग-बैनर बनाने वालों का कारोबार हुआ शून्य
दो दशक पहले चुनावी सीजन में एक कारोबारी कर लेता था 25 से 30 रुपये तक का अतिरिक्त कारोबार

मुरादाबाद, जेएनएन। Businessmen suffer losses by change in election campaign : दो दशक पहले कान फोड़ू प्रचार पर चुनाव आयोग की सख्ती से लेकर इस कोरोना काल तक राजनीतिक प्रचार पूरी तरह शांत हो गया है। राजनीतिक दलों ने प्रत्याशी घोषित करने शुरू कर दिए हैं। लेकिन, प्रिंटिंग कारोबारियों का काम इन दिनों शून्य है। चुनावी माहौल से हटकर बात करें तो सामान्य दिनों में तमाम संस्थाएं फ्लेक्सी, बैनर, पम्फलेट प्रिंट कराती थीं। लेकिन, आचार संहिता लगने से इनके भी फ्लेक्सी, बैनर नगर निगम ने उतार लिए।

जिससे चुनावी सीजन को प्रिटिंग स्वामी अब आफ सीजन मानकर चल रहे हैं। कोचिंग, व्यापारी समेत अन्य संगठनों से मिलने वाला काम भी ठप है। वर्ष 2012 तक निर्वाचन आयोग की गाइड लाइन के तहत भी एक प्रत्याशी से पांच से छह लाख रुपये का काम मिल जाता था। जिससे सभी प्रत्याशियों का मिलाकर 25 से 30 लाख रुपये केवल चुनाव प्रचार सामग्री से कमा लेते थे। लेकिन, अब चुनाव आयोग की सख्ती और कोरोना के कारण रैलियों पर रोक से कारोबार शून्य है। प्रिंटिंग प्रेस स्वामियों की मानें तो इस बार मतदान आते-आते एक लाख रुपये तक का कारोबार भी हो जाए तो गनीमत है। कोरोना के कारण रैलियां बंद हैं, प्रत्याशी भी आचार संहिता लगने के बाद घोषित हुए हैं।

महीनोंं पहले घोषित हो जाते थे प्रत्याशीः पहले जब निर्वाचन आयोग की सख्ती नहीं थी, तब रात दिन फ्लेक्टसी, बैनर, पम्फलेट और होर्डिंग्स बनाने का काम होता था। प्रेस में कर्मचारी रात को वही ओवर टाइम करके अतिरिक्त रुपये कमा लेते थे। प्रिटिंग स्वामी सोने व खाने तक का इंतजाम करते थे। एक-एक प्रत्याशी कम से कम दस-दस हजार बैनर, फ्लेक्सी तैयार कराता था। पम्फलेट तो लाखों में छपते थे। लेकिन, अब वह दिन तो नहीं लौटने वाले लेकिन, चुनाव के नियमों के तहत भी जो प्रचार सामग्री छाप सकते हैं, वह भी अभी जिला निर्वाचन अधिकारी की बैठक से पहले नहीं छाप रहे हैं।

लैपटाप की बिक्री में आई तेजीः आचार संहिता लगने के बाद लैपटाप की बिक्री में करीब दस फीसद की बिक्री बढ़ी है। कारण आनलाइन चुनाव प्रचार के लिए प्रत्याशी, राजनीतिक दलों के अन्य पदाधिकारी यह खरीद रहे हैं। जिससे क्षेत्र के लोगों से आनलाइन बात करके दस-दस मिनट भी वर्चुअल संवाद करेंगे तो प्रचार जारी रहेगा। सुपर बाजार की बात करें तो सामान्य दिनों में यहां से एक दिन में थोक व फुटकर में करीब 50 से 55 लैपटाप व प्रिंटर की खरीद हो रही थी। लेकिन, दिनों करीब 70 से 75 तक बिक्री हुई है। अब बिक्री विधान सभा चुनाव के कारण ही मानी जा रही है।

लैपटाप कारोबारी कौशल चौहान ने बताया कि रैलियों पर रोक से लैपटाप व प्रिटिंग की बिक्री बढ़ी है। इसका कारण रैलियां भौतिक रूप से बंद होने के कारण अब वर्चुअल प्रचार करने पर जोर है। प्रत्याशियों से लेकर राजनीतिक दलों को कई-कई लैपटाप की इन दिनों जरूरत पड़ेगी। जिससे दस फीसद तक बिक्री इस कारण बढ़ना माना जा रहा है। प्रिंटिंग कारोबारी हेमंत यादव ने बताया कि अब तो 99 फीसद कारोबार प्रिटिंग प्रेस का चुनाव के दिनों में ठप हो गया है। शिखर से शून्य की ओर कारोबार है। चुनाव से पहले सामान्य दिनों में अच्छा काम चलता है। लेकिन, दिनों यह काम भी बहुत कम मिल रहा है। कारण, चुनाव प्रचार सामग्री के साथ संस्थाओं को अपने फ्लेक्सी और बैनर उतारे जाने का डर रहता है।

कारोबारी सार्थक का कहना है कि अब तो चुनाव का काम बंद ही हो गया है। अभी तक एक भी आर्डर किसी प्रत्याशी से नहीं मिला है। मतदान आते-आते एक लाख रुपये तक का काम भी बमुश्किल मिलेगा। पार्टी कार्यालयों तक ही चुनाव आयोग की गाइड लाइन के अनुसार प्रचार रह गया है। अब तो हम अपना आफ सीजन मानकर चल रहे हैं।

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