जीडीपी की चिंता, पर जीईपी की चर्चा तक नहीं: अनिल जोशी

पद्मभूषण से सम्मानित पर्यावरणविद् डा. अनिल जोशी का कहना है कि देश में जीडीपी की चिंता है पर जीईपी की नहीं।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 22 Mar 2021 09:15 PM (IST) Updated:Mon, 22 Mar 2021 09:15 PM (IST)
जीडीपी की चिंता, पर जीईपी की चर्चा तक नहीं: अनिल जोशी
जीडीपी की चिंता, पर जीईपी की चर्चा तक नहीं: अनिल जोशी

मेरठ, जेएनएन। पद्मभूषण से सम्मानित पर्यावरणविद् डा. अनिल जोशी का कहना है कि देश में जीडीपी को लेकर चिता दिखती है। चर्चा भी होती है, लेकिन जीईपी पर कोई चर्चा नहीं करता। अब समय है जब हर किसी को जीईपी यानी ग्रास एनवायरनमेंट प्रोडक्ट के लिए सूचक बनाना चाहिए और देखना चाहिए कि कितना पानी बढ़ा, कितना जंगल बढ़ा, कितनी हवा साफ है, कितनी मिट्टी है। वाटर प्यूरीफायर का व्यापार 33 अरब 30 करोड़ के आसपास का है, जो अगले चार-पांच सालों में 59 अरब तक हो सकता है। पानी की बोतल का व्यापार 104 अरब तक पहुंच गया है। आज एक मिनट में 10 लाख पानी की बोतलें बिक जाती हैं। इससे जीडीपी तो बढ़ती है, लेकिन जब पानी बढ़ता या घटता है तो वह जीडीपी में नहीं दिखता। भूमिगत जल घटता है तो जीडीपी में नहीं दिखाई देता है, इसीलिए जीईपी की चिता करना आवश्यक है।

प्रकृति का बाजारीकरण दूसरा सबसे बड़ा संकट

डा. अनिल जोशी ने कहा कि प्रकृति का बाजारीकरण दूसरा सबसे बड़ा संकट देखने को मिल रहा है। पानी का स्रोत तालाब, झरने, नदियों के लिए भी वर्षा जल है। इसका कोई विकल्प नहीं। मेरठ में आरजी पीजी कालेज में विश्व जल दिवस पर आयोजित सेमिनार चल चेतना में छात्राओं को संबोधित करने पहुंचे डा. अनिल जोशी ने कहा कि 30 से 40 फीसद गांव में महिलाओं को घरों से दूर जाकर पानी लाना पड़ता है। करीब 60 फीसद गांव के बच्चों को उस समय घर में पानी लाकर रखना पड़ता है, जब शहरों के बच्चे स्कूल में पढ़ाई कर रहे होते हैं। पढ़ाई पैकेज के लिए होती है, प्रकृति की चिता नहीं होती। जब प्रकृति का दोहन बढ़ेगा तो उसका नुकसान उठाना पड़ेगा। केदारनाथ और चमोली जैसी प्राकृतिक आपदाएं उसी के संकेत हैं।

जो प्रकृति के निकट हैं, उन पर कोरोना का असर नहीं

पर्यावरणविद् डा. जोशी ने कहा कि कोरोना वायरस प्रकृति का प्रकोप है, जिसने मनुष्य को मुंह दिखाने के लायक भी नहीं छोड़ा। सभी मास्क लगाए घूम रहे हैं। बड़े व अमीर संसाधन संपन्न देशों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। जो प्रकृति से जुड़े रहे उन्हें कोरोना वायरस ने बहुत ज्यादा परेशान नहीं किया। उन्होंने कहा कि प्रकृति ही प्रभु है। दोनों में कोई अंतर नहीं है। आप जिस भी धर्म के हों, पूजा करने से उतना लाभ नहीं मिलेगा जितना प्रकृति को प्रणाम कर उसका आदर करने से मिलेगा।

कार्यक्रम में जागरूक नागरिक एसोसिएशन के महासचिव गिरीश शुक्ला ने बताया कि तीन सौ वर्गमीटर के मकान में वर्षा जल संरक्षण जरूरी है। ऐसा होने लगे तो हम करोड़ों लीटर जल हर बारिश में बचा सकेंगे। कालेज की प्राचार्य डा. दीपशिखा ने सभी का आभार प्रकट किया।

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