Tokyo Olympics: अमरीश के प्रशिक्षण में अविनाश ने मिटाया 69 सालों का सूखा, अब टोक्यो ओलिंपिक में दिखाएंगे दम

मेरठ पांडवनगर के रहने वाले कैप्टन अमरीश कुमार अधाना भी टोक्यो ओलिंपिक में एथलीट अविनाश सांवले के कोच बनकर जा रहे हैं। अविनाश तीन हजार मीटर स्टीपल चेज में हिस्सा लेंगे। वर्ष 1952 के बाद पहली बार कोई भारतीय धावक इस इवेंट में हिस्सा ले रहा है।

By Himanshu DwivediEdited By: Publish:Sun, 18 Jul 2021 01:42 PM (IST) Updated:Sun, 18 Jul 2021 03:40 PM (IST)
Tokyo Olympics: अमरीश के प्रशिक्षण में अविनाश ने मिटाया 69 सालों का सूखा, अब टोक्यो ओलिंपिक में दिखाएंगे दम
अमरीश अविनाश के कोच बनकर टोक्‍यों जा रहे हैं।

मेरठ, (अमित तिवारी)। पांडवनगर के रहने वाले कैप्टन अमरीश कुमार अधाना भी टोक्यो ओलिंपिक में एथलीट अविनाश सांवले के कोच बनकर जा रहे हैं। अविनाश तीन हजार मीटर स्टीपल चेज में हिस्सा लेंगे। वर्ष 1952 के बाद पहली बार कोई भारतीय धावक इस इवेंट में हिस्सा ले रहा है। अमरीश के प्रशिक्षण में अविनाश ने 37 साल पुराना रिकार्ड तोड़कर ओलिंपिक कोटा हासिल किया है। मार्च में पटियाला में हुए नेशनल फेडरेशन कप में अविनाश ने तीन हजार मीटर स्टीपल चेज रिकार्ड 8:20:20 मिनट में पूरी की थी। ओलिंपिक में इस इवेंट के लिए एंट्री स्टैंडर्ड 8:22:00 मिनट का है। पिछले दो साल में छह बार नेशनल रिकार्ड बनाने वाले अविनाश पहले भारतीय बन गए हैं। अमरीश 23 जुलाई को अविनाश के साथ टोक्यो के लिए रवाना होंगे।

लंबी है सफल प्रशिक्षुओं की फेहरिस्त

अमरीश ने पांच व 10 हजार मीटर में 2008 बीजिंग ओलिंपिक गेम्स में हिस्सा लेने वाले धावक सुरेंद्र सिंह, मैराथन ओलिंपियन नितेंद्र सिंह रावत, साउथ एशियन गोल्ड मेडलिस्ट ओम प्रकाश, तीन हजार मीटर व मैराथन धावक इलम सिंह आदि को प्रशिक्षण दिया है। वर्ष 2015 में अमरीश को तीनों सेनाओं का चीफ कोच नियुक्त किया गया। वर्ष 2018 में अमरीश के मार्गदर्शन में मंजीत ने एशियन गेम्स में 36 साल बाद स्वर्ण पदक जीता था। इनके अलावा अविनाश सांवले, शंकर लाल स्वामी, जय वीर, राकेश स्वामी और मेरठ की पारुल चौधरी भी अमरीश के मार्गदर्शन में ही प्रशिक्षण ले रही हैं। 2019 में एशियन चैंपियनशिप दोहा में अविनाश ने रजत जीता और पारुल ने पांच हजार मीटर में कांस्य जीता था।

व्यक्तिगत उपलब्धि से मिली मदद

सेना में खेलकूद में सफलता के जरिए सैनिकों को प्रमोशन जल्दी दिए जाते हैं। अमरीश के पदकों ने ही उन्हें सिपाही से सेना में कैप्टन बनाया। वर्ष 1993 के ओपन नेशनल में अमरीश ने क्रास कंट्री में स्वर्ण पदक जीता। प्रतियोगिता अजमेर में हुई थी। वर्ष 1994 में वल्र्ड क्रास कंट्री के लिए भारतीय टीम के साथ हंगरी के बुडापेस्ट में खेलने गए। 1996 में वल्र्ड चैंपियनशिप डेनमार्क कोपनहेगन में हिस्सा लिया। 1997 में वल्र्ड क्रास कंट्री चैंपियनशिप इटली में हिस्सा लिया। उसी साल साउथ एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 3000 मीटर स्टीपल चेज में स्वर्ण पदक जीता। 1997 में ही यूरोप सर्किट कंपटीशन में तीन हजार मीटर स्टीपल चेज में रजत व पांच हजार मीटर में कांस्य जीता। 1999 सैफ गेम्स काठमांडू नेपाल में 3000 मीटर स्टीपल चेज में स्वर्ण जीता। 2000 में वल्र्ड क्रास कंट्री पुर्तगाल में हिस्सा लिया। अमरीश ने तीन, पांच, 10 हजार मीटर व क्रास कंट्री में आठ राष्ट्रीय स्वर्ण पदक भी जीते हैं। सर्विसेज में 12 स्वर्ण पदक जीते हैं। वर्ष 2002 में संसद पर हुए हमले के बाद सेना द्वारा वापस बुलाने पर खेल बंद हो गया था।

मिशन ओलिंपिक का हिस्सा हैं अमरीश

व्यक्तिगत खेल एवं कोचिंग उपलब्धियों से प्रमोशन पाकर भारतीय सेना में सिपाही से कैप्टन तक का सफर तय कर अमरीश वर्तमान में भारतीय टीम के कोच हैं। उन्हें भारतीय टीम में वर्ष 2017 में शामिल किया गया। वह तीन हजार, पांच हजार, 10 हजार और क्रास कंट्री धावकों को प्रशिक्षण देते हैं। अमरीश ने 2003 में एनआइएस कोर्स पूरा कर वर्ष 2004 में जाट रेजिमेंटल सेंटर बरेली में प्रशिक्षण देना शुरू किया। क्रास कंट्री, लांग व मिडिल डिस्टेंस में अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए अमरीश को वर्ष 2005 में सेना ने अपने मिशन ओलिंपिक गेम्स आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट पुणो में प्रशिक्षण की जिम्मेदारी दी।

जहां भर्ती हुए, उसी मैदान पर खेल की शुरुआत

अमरीश वर्ष 1990 में सेना भर्ती कार्यालय मेरठ के जरिए ही सेना में भर्ती हुए। सेना की इंटर यूनिट क्रास कंट्री में 1200 लोगों में प्रथम रहे। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद जम्मू-कश्मीर में बढ़ी आतंकी गतिविधियों के खिलाफ पुंछ के मोर्चे पर भेजे गए। करीब 10 महीने बाद 15वीं जाट बटालियन के साथ अमरीश 1992 में भगत लाइंस पहुंचे। मेरठ में ही काली पल्टन के पीछे मैदान पर दौड़कर आगे बढ़े। 

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