हिंसा के बाद: चंद घंटों के बवाल ने तोड़ दिया वर्षो का विश्वास Meerut News

विश्वास बनने में सालों लगते हैं लेकिन टूटता चंद लम्हों में है। शुक्रवार की छह घंटे की हिंसा ने भी कुछ ऐसा ही किया। वर्षो के विश्वास पर हिंसा की लपटें भारी पड़ीं।

By Taruna TayalEdited By: Publish:Sun, 22 Dec 2019 05:38 PM (IST) Updated:Sun, 22 Dec 2019 05:38 PM (IST)
हिंसा के बाद: चंद घंटों के बवाल ने तोड़ दिया वर्षो का विश्वास Meerut News
हिंसा के बाद: चंद घंटों के बवाल ने तोड़ दिया वर्षो का विश्वास Meerut News

मेरठ, [रवि प्रकाश तिवारी]। विश्वास बनने में सालों लगते हैं, लेकिन टूटता चंद लम्हों में है। शुक्रवार की छह घंटे की हिंसा ने भी कुछ ऐसा ही किया। वर्षो के विश्वास पर हिंसा की लपटें भारी पड़ीं और शहर दो हिस्सों में साफ बंटा नजर आया। इसका इल्म भी जिम्मेदार लोगों को है, यही वजह है कि जैसे-तैसे कांफीडेंस बिल्डिंग यानी विश्वास बहाली का दौर भी शुरू किया गया है। अब यह टूटी विश्वास की डोर को कब तक जोड़ पाएगा, यह समय ही बताएगा।

शहर के जो इलाके हिंसा प्रभावित थे, उनमें भी सुबह से ही बाजार बंदी रही और लोग गलियों, मोहल्लों तक सिमटे रहे। उनके चेहरे का भाव बता रहा था कि वे आशंकित हैं। ¨हसा की आग में कहीं उनका कारोबार राख न हो जाए, इस डर से वे दुकान-व्यापार पर तालाबंदी किए रहे। कुछ ऐसे भी रहे जो रोजाना सुबह काम पर निकलते थे, वे भी नहीं निकले। ऐसे में केवल हिंसाग्रस्‍त क्षेत्र नहीं, बल्कि शहर के दूसरे हिस्से भी प्रभावित रहे जहां सबकुछ सामान्य था। कामगारों के न पहुंचने पर कई दुकानें नहीं खुली। कारखानों में काम बंद रहा। निर्माण कार्य ठप रहा।

हांडी के चावल की तरह ही एक-आध उदाहरण लिए जाएं तो साईंपुरम, मोहकमपु, उद्योगपुरम जैसे औद्योगिक क्षेत्र में कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ। नूरनगर, इस्लामाबाद, जाकिर कालोनी, लिसाड़ीगेट, करीमनगर की लेबर नहीं आयी। फैक्ट्री मालिकों ने फोन किया तो किसी ने बाहर होने का बहाना कर टाल दिया तो किसी ने हालात ठीक न होने की बात कहकर माफी मांग ली। साईंपुरम इंडस्टियल एसोसिएशन के उपाध्यक्ष संजय गुप्ता कहते हैं कि हमारी फैक्ट्री में कारीगर समय के पाबंद हैं। लेकिन सुबह जब नहीं आए तो बात की। उन्होंने शहर में माहौल खराब होने की आशंका जताई। मोहकमपुर के मनोज माहेश्वरी का भी यही कहना था। उनके यहां भी कामगार नहीं पहुंचे, जिससे उत्पादन प्रभावित हुआ।

आबूलेन तो समय पर खुला, लेकिन कई दुकानों पर सेल्समैन न होने की वजह से कारोबार यहां भी प्रभावित रहा। आबूलेन व्यापार संघ के संयुक्त सचिव राजबीर सिंह से जब बाजार के हालात पर पूछा गया तो बोले, काफी कारीगर, सेल्समैन नहीं आए हैं। वजह पूछने पर कहते हैं, माहौल खराब है.. कौन निकले। सूत्रों के अनुसार तो इंटरनेट बंदी और मेरठ के हालात को देखते हुए कुछ मोबाइल कंपनियों ने दुकानों पर काम करने वाले अपने सेल्समैन की छुट्टी तक कर दी।

दूसरी तस्वीर, खत्ता रोड, ट्यूबवेल तिराहा, जाकिर कालोनी, कसाई रोड की रही। यहां जमकर बवाल कटा था। बीच के डिवाइडर का खत्म हो जाना और आगजनी की तस्वीरें शुक्रवार के हालात बयां करने को काफी थे। यहां कुछ युवा मोहल्लों में एकजुट खड़े थे। यहां का रास्ता ऐहतियान पुलिस ने रोक भी दिया था। बावजूद इसके अगर कोई मुख्य मार्ग से भी निकल रहा था तो कुछ युवाओं के तने चेहरे, घूरती आंखें माहौल को खौफनाक बना रही थीं।

इधर, पुलिस-प्रशासन ने भी पिछले दिनों मुस्लिम समाज के कुछ नामचीन चेहरों से अमन की अपील कराई और उसे तमाम सोशल माध्यमों पर प्रसारित किया। वाट्सएप, ट्वीटर, फेसबकु समेत तमाम माध्यमों पर इनके बयान वायरल कर प्रशासन मान बैठा था कि पिछले तीन मसलों की तरह इस बार भी बात बन जाएगी, लेकिन यह अपील किसी काम न आयी। यहां भी विश्वास टूटा। जब आभाष हुआ तो अब सोशल मीडिया पर इनके सारे पोस्ट डिलीट कराए जा रहे हैं। उन अपीलकर्ताओं को भी छांटा जा रहा है जो नाम के लिए अमन की अपील करते रहे और दूसरी ओर सीएए के विरोध को हवा भी देते रहे। इन्हें अब कानून के शिकंजे में जकड़ने की भी तैयारी है।

उग्र प्रदर्शन के बाद हुई हिंसा में शहर जख्मी हो गया है। घाव साफ-साफ देखे जा सकते हैं। समय के साथ घाव भरता है, इस बार भी भर जाएगा लेकिन सवाल जरूर छूट जाएगा कि चंद उपद्रवियों ने भीड़ को अपने चंगुल में फंसा लिया और हमारा तंत्र जुड़े हुए लोगों को साथ नहीं रख पाया, समझा पाया। 

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