बाजार में ही फूंक दिया था बगावत का बिगुल
ब्रितानी फौजी छावनी सदर बाजार पहुंचे हुए थे। अफवाह फैली कि ये फौजी भारतीय सिपाहियों को कब्जे में लेने आए हैं बस फिर क्या था बाजार के लोगों ने ब्रितानियों पर हमले शुरू कर दिया।
मेरठ, रवि प्रकाश तिवारी। रविवार का दिन था, शाम लगभग साढ़े पांच बज रहे थे। बड़ी संख्या में ब्रितानी फौजी छावनी के आबू नाले के पार से सदर बाजार पहुंचे हुए थे। कोई खरीदारी में व्यस्त था तो कोई कुछ और काम में। तभी एक अफवाह फैली कि ब्रितानी रेजीमेंट भारतीय सिपाहियों को कब्जे में लेने के मकसद से निकल पड़ी हैं। पल भर में यह अफवाह आग की तरह पूरे क्षेत्र में फैल गई। बस क्या था..सदर बाजार के लोगों ने ब्रितानियों पर हमले शुरू कर दिया। भीड़ भड़क चुकी थी। चुन-चुनकर अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा जाने लगा। क्या अफसर क्या सिपाही, हर एक अंग्रेज भारतीयों के निशाने पर था। यह सारी बातें रिकॉर्डस में भी दर्ज है। कई जगह तो भीड़ की अगुवाई सरकारी पोशाक में कैंट बोर्ड के चपरासियों ने भी किया। हो-हल्ला मचा तो सदर कोतवाली में तैनात भारतीय पुलिस सिपाही भी नंगी तलवार लिए भीड़ की अगुवाई करते हुए दौड़ पड़े। बगावत का यह आलम देख बाजार में मौजूद हर अंग्रेज अपने सुरक्षित ठिकानों की ओर दौड़ पड़े। आगे-आगे अंग्रेज, पीछे-पीछे क्रांतिवीर। पहले स्वतंत्रता संग्राम का यही आगाज था।
तब वेस्ट एंड रोड पर भी खूब हलचल मची थी
1857 में वेस्ट एंड रोड के दोनों किनारों पर भारतीय सिपाहियों के रेजीमेंट के अंग्रेज अफसरों के बंगले हुआ करते थे। जैसे आज बाजार से कई छोटी गलियां इस सड़क को जोड़ती है, यह तस्वीर लगभग उस समय भी ऐसी ही थी। मई की भीषण गर्मी की वजह से चर्च सेवाएं बंद कर दी गई थीं, लिहाजा 10 मई, 1857 की शाम को मेरठ छावनी के दूसरे हिस्से, जहां केवल अंग्रेजी अफसरों की बसावट थी वहां के लोग भी वेस्ट एंड रोड पर घूमने-फिरने के लिए निकले थे। तभी शाम को सदर बाजार में बगावत की चिंगारी फूटी और बड़ी संख्या में अग्रेज परिवार क्रांतिकारियों की चपेट में आ गए।
आंखो देखा हाल
कई लोग जो उस समय यहां फंस गए थे, उनमें से दो महिलाओं ने आंखों देखा हाल बयां किया है। एक तीसरी भारतीय अश्वारोही सेना के अंग्रेज अफसर कैप्टन क्रेगी की पत्नी और दूसरी लेफ्टिनेंट मैकेंजी की बहन थी। वे लिखती हैं कि जैसे ही माहौल बदला हुआ समझ में आया तो उनके कोचवान ने उनकी बग्गी उनके बंगले की ओर मोड़ा जो कि वेस्ट एंड रोड के दक्षिणी छोर पर था। इतने में उन्हें सदर बाजार की एक गली से दौड़ता हुआ ड्रैगून गार्ड का एक सैनिक भागता हुआ दिखा। महिलाओं ने यह देख अपने कोचवान को बग्गी धीमी करने के लिए कहा ताकि वह सैनिक भी चढ़ जाए और उसकी जान बच जाए। इतने में भीड़ भी इतनी करीब आ चुकी थी कि उनकी नंगी तलवारें गाड़ी की म्यान को भी काट सकती थीं।
तब वेस्ट एंड रोड पर भी खूब हलचल मची थी
1857 में वेस्ट एंड रोड के दोनों किनारों पर भारतीय सिपाहियों के रेजीमेंट के अंग्रेज अफसरों के बंगले हुआ करते थे। जैसे आज बाजार से कई छोटी गलियां इस सड़क को जोड़ती है, यह तस्वीर लगभग उस समय भी ऐसी ही थी। मई की भीषण गर्मी की वजह से चर्च सेवाएं बंद कर दी गई थीं, लिहाजा 10 मई, 1857 की शाम को मेरठ छावनी के दूसरे हिस्से, जहां केवल अंग्रेजी अफसरों की बसावट थी वहां के लोग भी वेस्ट एंड रोड पर घूमने-फिरने के लिए निकले थे। तभी शाम को सदर बाजार में बगावत की चिंगारी फूटी और बड़ी संख्या में अग्रेज परिवार क्रांतिकारियों की चपेट में आ गए।
आंखो देखा हाल
कई लोग जो उस समय यहां फंस गए थे, उनमें से दो महिलाओं ने आंखों देखा हाल बयां किया है। एक तीसरी भारतीय अश्वारोही सेना के अंग्रेज अफसर कैप्टन क्रेगी की पत्नी और दूसरी लेफ्टिनेंट मैकेंजी की बहन थी। वे लिखती हैं कि जैसे ही माहौल बदला हुआ समझ में आया तो उनके कोचवान ने उनकी बग्गी उनके बंगले की ओर मोड़ा जो कि वेस्ट एंड रोड के दक्षिणी छोर पर था। इतने में उन्हें सदर बाजार की एक गली से दौड़ता हुआ ड्रैगून गार्ड का एक सैनिक भागता हुआ दिखा। महिलाओं ने यह देख अपने कोचवान को बग्गी धीमी करने के लिए कहा ताकि वह सैनिक भी चढ़ जाए और उसकी जान बच जाए। इतने में भीड़ भी इतनी करीब आ चुकी थी कि उनकी नंगी तलवारें गाड़ी की म्यान को भी काट सकती थीं।