पछुआ हवा: प्लाज्मा देने में कांपे कोरोना योद्धा, वायरस से आजादी ही असली जंग Meerut News

एक वायरस ने दुनिया पर कई माह से ग्रहण लगा रखा है। कोरोना ने होली का रंग फीका किया तो आजादी के जश्न में रोड़ा लगा दिया।पहली बार 15 अगस्त को सड़कों पर ऐसा सन्नाटा नजर आया।

By Prem BhattEdited By: Publish:Mon, 17 Aug 2020 12:30 PM (IST) Updated:Mon, 17 Aug 2020 05:34 PM (IST)
पछुआ हवा: प्लाज्मा देने में कांपे कोरोना योद्धा, वायरस से आजादी ही असली जंग Meerut News
पछुआ हवा: प्लाज्मा देने में कांपे कोरोना योद्धा, वायरस से आजादी ही असली जंग Meerut News

मेरठ, [संतोष शुक्ल]। कोरोना से जंग जीतकर बाहर निकले मरीजों और इलाज में जुटे डाक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को कोरोना योद्धा का दर्जा दिया गया। सैकड़ों मरीज ठीक हुए। हालांकि अब, डाक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ भी वायरस की चपेट में आ रहे हैं। ज्यादातर ठीक होकर बाहर आए, लेकिन प्लाज्मा देने को लेकर ठिठक गए। नई दिल्ली सरकार ने प्जाज्मा बैंक खोला। वहां ठीक हो चुके सैकड़ों मरीज प्लाज्मा डोनेट कर दूसरे मरीजों की जान बचाने में लगे हैं। मेरठ मेडिकल कालेज में भी प्लाज्मा थेरपी को हरी झंडी मिल गई है। प्रशासन ने ठीक हो चुके ऐसे 209 लोगों की सूची बनाई, जिनका प्लाज्मा गंभीर मरीजों को चढ़ाकर उनकी प्रतिरोधक क्षमता को तत्काल बढ़ाया जा सकता था। उम्मीद थी कि ठीक हो चुके लोग दूसरों का जीवन बचाने खुद आगे आएंगे, लेकिन उनका योद्धा धराशायी हो गया, जबकि वो दूसरों की जिंदगी बचा सकते थे।

गरज-गरज कर निकल गए बदरा

लाकडाउन के बाद प्रकृति निखर सी गई थी। हवा में विषाक्त गैसों और कणों की मात्रा घटने से पर्यावरण साफ हो गया। विशेषज्ञों का आकलन था कि इस बार सावन और भादो में मेघों की गरज बरस नए रिकार्ड कायम करेगी। नई दिल्ली तक जमकर बारिश हुई, लेकिन अब तक मेरठ के बादलों में मेघों की आवारगी ही नजर आई है। जून और जुलाई माह में पिछले वर्षों की तुलना में कम बारिश से जहां किसानों में बेचैनी है, वहीं पर्यावरण विशेषज्ञ इसे प्रकृति का कोई बड़ा संकेत मानते हैं। गत दो महीनों में पिछले वर्ष की तुलना में सौ मिमी कम बारिश आगाह करती है कि प्रकृति अब भी झूमकर मेघ मल्हार गाने से हिचक रही है। तीज और झूलों का मौसम भी कुछ झुलसते हुए गुजरा है। ये बात और है कि जरा सी बारिश से सड़क पर उफन पडऩे वाले नाले शांत हैं।

कोरोना से आजादी ही असली जंग

एक वायरस ने दुनिया पर कई माह से ग्रहण लगा रखा है। कोरोना ने होली का रंग फीका किया तो आजादी के जश्न में रोड़ा लगा दिया। क्रांति के शहर में कदाचित पहली बार 15 अगस्त को सड़कों पर ऐसा सन्नाटा नजर आया। पार्कों में भीड़ नहीं थी और कालेजों में जश्न महज एक औपचारिकता के रूप में मना। ऐसा नहीं कि जश्न-ए-आजादी को लेकर जोश और जज्बों की तरंगें कमजोर पडऩे लगी हैं, बल्कि कोरोना वायरस ने दुनिया को कैद कर लिया है। अब तक बेरोजगारी, भुखमरी, अशिक्षा, सांप्रदायिकता और कुपोषण जैसी बीमारियों से आजादी का संकल्प लिया जा रहा था, लेकिन अब सबसे पहले कोरोना से मुक्ति जरूरी हो गई है, अन्यथा सभी संकल्प बेमानी हो जाएंगे। विशेषज्ञों की टीमें टीका बनाकर इस वायरस की काट खोज रही हैं। संक्रमण से मुक्ति के बाद ही अब जीवनधारा सुलभता के साथ बह पाएगी।

क्रिकेटरों की काशी है अपना मेरठ

15 अगस्त को टीम इंडिया के दो जांबाज सितारों ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया। महेंद्र सिंह धौनी और सुरेश रैना अपने-अपने फन के माहिर खिलाड़ी हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भारत के लिए ठोस पारियां खेलीं। वो अपने हुनर का श्रेय मेरठ को देते हैं, जिसे सुनकर कई बार खेल पंडित भी हैरान रह जाते हैं। दुनिया में क्रिकेट कहीं भी खेला जाए, और स्टेडियम कितना भी महान प्रदर्शन का गवाह बने, मेरठ का जिक्र लाजिमी बन जाता है। धौनी ने मेरठ की कंपनी एसएस के बल्ले से यादगार पारियां खेलीं। विश्व कप जीतने के बाद धौनी बल्ला बनाने वालों को धन्यवाद देने मेरठ आए थे। सुरेश रैना ने एसजी के बल्ले से आजीवन खेला। एक माह पहले रैना आइपीएल के लिए बल्ले ले गए। चेतन चौहान ने भी जिंदगी की पारी को अलविदा कह दिया, जो मेरठ के बल्लों के मुरीद थे।

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