उच्च शिक्षा में शोध को मिलेगा बढ़ावा: कुलपति

नई शिक्षा नीति से उच शिक्षा की गुणवत्ता के साथ शोध की गुणवत्ता भी बढ़ेगी।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 30 Jul 2020 07:00 AM (IST) Updated:Thu, 30 Jul 2020 07:00 AM (IST)
उच्च शिक्षा में शोध को मिलेगा बढ़ावा: कुलपति
उच्च शिक्षा में शोध को मिलेगा बढ़ावा: कुलपति

जेएनएन, मेरठ। नई शिक्षा नीति से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के साथ शोध की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। उच्च शिक्षा में शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया को इसमें पारदर्शी बनाया गया है। एमफिल को खत्म करके उसकी जगह पीएचडी के स्तरों का उन्ययन करना महत्वपूर्ण बदलाव होगा। यह कहना है चौ. चरण सिंह विवि के कुलपति प्रो. एनके तनेजा का।

नई शिक्षा नीति के कैबिनेट में पास होने के बाद उन्होंने बताया विवि में एमफिल का पाठ्यक्रम संचालित है, उसे वह 2015 से कहते आए हैं कि इसका कोई मतलब नहीं है। एमफिल न तो पीएचडी है और नहीं एमए। इसे बंद करना उच्च शिक्षा के हित में है। उच्च शिक्षा में मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम भी छात्रों के लिए उपयोगी होगा। चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम में अध्ययन करने वाला छात्र अगर बीच में पढ़ाई छोड़ भी देता है तो उसे सर्टिफिकेट या डिप्लोमा मिलेगा। उच्च शिक्षा में ड्राप आउट की समस्या इससे दूर होगी। प्रो. तनेजा ने बताया कि शोध क्षेत्र में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना के माध्यम से शोध को बढ़ावा मिलेगा। भारतीय भाषाओं, कलाओं और संस्कृत का समावेश सराहनीय है। चार वर्षीय अभिनव पाठ्यक्रम जिसके साथ शोध के अंकित होगा। विश्वविद्यालय नई शिक्षा नीति के हिसाब से खुद में बदलाव कर उच्च शिक्षा में एक श्रेष्ठ संस्थान बनने की कोशिश करेगा।

अपनी भाषा को महत्व

चौ. चरण सिंह विवि में अंग्रेजी के एसोसिएट प्रोफेसर विकास शर्मा का कहना है कि नई शिक्षा नीति में मातृभाषा को महत्व दिया गया है। इससे शिक्षा में मौलिक शोध को बढ़ावा मिलेगा। उच्च शिक्षा में एमफिल को खत्म करना सराहनीय कदम है।

पाठ्यक्रम मिलते ही तैयार हो जाएंगी पुस्तकें

जेएनएन, मेरठ। स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा में मेरठ के प्रकाशकों की पुस्तकें चलती हैं, लंबे समय से नई शिक्षा नीति को लेकर प्रकाशक भी टकटकी लगाए हुए थे। कैबिनेट की मुहर लगने के बाद प्रकाशक भी अपनी तैयारी में जुट गए हैं। उनका कहना है कि पाठ्यक्रम जारी होने के बाद पुस्तकों के प्रकाशन में देरी नहीं होगी। नई शिक्षा नीति के इंतजार में बहुत से प्रकाशक पहले से ही पुराने पाठ्यक्रम की किताबों का प्रकाशन कम कर दिया था।

मेरठ में ढाई सौ से अधिक प्रकाशक

मेरठ में 250 से अधिक प्रकाशक हैं। प्रिटिग प्रेसों की संख्या सौ से अधिक है। एक हजार से अधिक लेखक और संपादक किताबों के लेखन में जुटे हैं। करीब एक लाख टन प्रतिवर्ष यहां किताबों के प्रकाशन में कागज का खर्च होता है। कारोबार के हिसाब से देखें तो 1500 करोड़ प्रकाशन और स्टेशनरी का काम है।

नई शिक्षा नीति पर ये बोले प्रकाशक

नई शिक्षा नीति में क्या-क्या बदलाव किया गया है उसकी जिस तरह से गाइडलाइन आएगी, उसके हिसाब से हम परिवर्तन करने को तैयार हैं। मौजूदा पाठ्यक्रम केवल छात्रों को डिग्री देने वाला है। इससे ज्ञान नहीं मिल रहा है। युवाओं में आत्मविश्वास की कमी है। नई शिक्षा नीति में जिस तरह से प्रावधान दिख रहे हैं, उससे लगता है कि यह सभी छात्रों के लिए कारगर होगी। नई शिक्षा नीति के जो सिलेबस बनेंगे वह युवाओं को काबिल बनाने वाले होंगे ऐसी उम्मीद है। नई शिक्षा नीति में सेमेस्टर आधारित शिक्षा उच्च शिक्षा में लाने की बात की गई है। उसके हिसाब से प्रारूप देखने के बाद पुस्तकों के प्रकाशन की भी तैयारी की जाएगी।

मनोज बाटला, चेयरमैन, जीआर बाटला एंड संस नई शिक्षा नीति कैबिनेट में पास हुई है। अभी इसके प्रारूप का पता नहीं है। नई शिक्षा नीति को लेकर अभी पाठ्यक्रम बनाया जाएगा। वर्ष 2021 तक तो संभवत: मौजूदा पाठ्यक्रम ही चलेगा। नई शिक्षा नीति आधारित पाठ्यक्रम 2022-23 से लागू किया जा सकता है। इसके हिसाब से अभी प्रकाशन के लिए समय है। कोविड की वजह से स्कूल, कॉलेज बंद होने की वजह से प्रकाशन पर प्रतिकूल असर पड़ा है। स्कूल, कॉलेज खुलने के बाद स्थिति सामान्य होने की उम्मीद है।

अजय रस्तोगी, चेयरमैन, चित्रा प्रकाशन

नई शिक्षा नीति का स्वागत है। जो बदलाव किए गए हैं वह बेहतर हैं। अभी नई शिक्षा नीति के कैरकुलम का इंतजार है। इसमें क्या क्या बदलाव है, जिसके हिसाब से पुस्तकों को तैयार किया जाना है। उसके बाद ही पता चल पाएगा। पुस्तकों को तैयार करने में किसी भी तरह के देरी नहीं होगी। इसके लिए शिक्षक बोर्ड पूरी तरह से तैयार है।

सौरभ जैन, चेयरमैन, विद्या प्रकाशन

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