देवबंद में जमीयत सम्मेलन : ज्ञानवापी पर प्रस्ताव, मोहतमिम बोले-विवाद खड़ा करने से देश में अमन और शांति को खतरा
Jamiat Conference Deoband सहारनपुर के देवबंद में जमीयत सम्मेलन में आज ज्ञानवापी पर प्रस्ताव रखा गया। देश के हालात और मुस्लिम समस्याओं को लेकर जमीयत का अधिवेशन दूसरे दिन भी जारी है। इस सम्मेलन में तीन हजार उलमा शामिल हुए हैं।
सहारनपुर, जागरण संवाददाता। सहारनपुर के देवबंद में जमीयत सम्मेलन के दूसरे दिन जमीयत उलेमा ए हिंद के इजलास में दूसरे दिन काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की ईदगाह के संबंध में अहम प्रस्ताव पारित किए गए। दारुल उलूम के नायब मोहतमिम मुफ्ती राशिद आजमी ने प्रस्ताव पर सहमति जताई। उन्होंने कहा कि देश की आजादी में जमीयत का अहम योगदान रहा है।
ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह के संबंध में यह है प्रस्ताव
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की यह बैठक प्राचीन इबादतगाहों पर बार-बार विवाद खड़ा कर के देश में अमन व शांति को खराब करने वाली शक्तियों और उनको समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों के रवैये से गहरी नाराजगी जाहिर करती है। बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद,मथुरा की एतिहासिक ईदगाह और दीगर मस्जिदों के खिलाफ़ इस समय ऐसे अभियान जारी हैं, जिससे देश में अमन शांति और उसकी गरिमा और अखंडता को नुकसान पहुंचा है। अब इन विवादों को उठा कर साम्प्रदायिक टकराव और बहुसंख्यक समुदाय के वर्चस्व की नकारात्मक राजनीति के लिए अवसर निकाले जा रहे हैं। हालांकि यह स्पष्ट है कि पुराने विवादों को जीवित रखने और इतिहास की कथित ज़्यादतियों और गलतियों को सुधारने के नाम पर चलाए जाने वाले आंदोलनों से देश का कोई फ़ायदा नहीं होगा।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की भी अनदेखी
खेद है कि इस संबंध में बनारस और मथुरा की निचली अदालतों के आदेशों से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली है और ‘पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) एक्ट 1991’ की स्पष्ट अवहेलना हुई है जिस के तहत संसद से यह तय हो चुका है कि 15 अगस्त 1947 को जिस इबादतगाह की जो हैसियत थी वह उसी तरह बरक़रार रहेगी। निचली अदालतों ने बाबरी मस्जिद के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की भी अनदेखी की है, जिसमें अन्य इबादतगाहों की स्थिति की सुरक्षा के लिए इस अधिनियम का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।
गड़े मुर्दों को उखाडने से बचना चाहिए
जमीयत उलेमा-ए-हिंद सत्ता में बैठे लोगों को बता देना चाहती है कि इतिहास के मतभेदों को बार बार जीवित करना देश में शांति और सद्भाव के लिए हरगिज़ उचित नहीं है। खुद सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद फैसले में 'पूजा स्थल क़ानून 1991 एक्ट 42' को संविधान के मूल ढाचे की असली आत्मा बताया है। इसमें यह संदेश मौजूद है कि सरकार, राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को इस तरह के मामलों में अतीत के गड़े मुर्दों को उखाडने से बचना चाहिए, तभी संविधान का अनुपालन करने की शपथों और वचनों का पालन होगा, नहीं तो यह संविधान के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात होगा।
इबादतगाहों पर ये बोले
इस दौरान कहा कि जिस समय देश पर अंग्रेज काबिज हुए उस समय लग रहा था कि गोरे सभी इबादतगाहों को खत्म कर देंगे। लेकिन न तो उस समय इबादतगाहों का कुछ बिगड़ सका और न ही आज धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि जो लोग इबादतगाहों को खत्म करने की जहनियत रखते हैं। उनके घरों को अल्लाह खुद खाक में मिला देगा। बोलें कि हमारी इबादतगाहों को न कोई खत्म कर सका है और न ही आगे कर पाएगा।
कॉमन सिविल कोड पर आया प्रस्ताव
कॉमन सिविल कोड के खिलाफ भी सम्मेलन में प्रस्ताव रखा गया। जिसका समर्थन सांसद मौलाना बदरूद्दीन अजमल ने किया। अजमल ने भी देश के मौजूदा हालात पर चिंता जाहिर करते हुए जमीयत के कार्यों की प्रशंसा की। कार्यक्रम में दारुल उलूम वक्त के महत्व मौलाना सुफियान कासमी ने भी विचार रखें।
तीन हजार उलेमा सम्मेलन में शामिल
जमीयत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में देश भर से आए करीब तीन हजार उलेमा व जमीयत प्रतिनिधि शामिल हैं। दूसरे दिन भी विभिन्न प्रांतों से आए अध्यक्षों ने मौजूदा हालात और मुस्लिम उत्थान को लेकर कई प्रस्ताव रखे और इस्लाम के खिलाफ लगातार हो रहे दुष्प्रचार पर चिंता जताई।
सम्मेलन में अभी तक ये रखे गए प्रस्ताव
देश में नफ़रत के बढ़ते हुए दुषप्रचार को रोकने के उपायों पर विचार, इस्लामोफ़ोबिया की रोक थाम के विषय में प्रस्ताव, अल्पसंख्यकों के शैक्षिक और आर्थिक अधिकारों पर विचार, मुस्लिम वक्फ संपत्तियों के संबंध में प्रस्ताव, सद्भावना मंच को मजबूत करने पर विचार, सोशल मीडिया पर ऐसे संक्षिप्त संदेश पोस्ट करें जो इस्लाम के गुणों और मुसलमानों के सही पक्ष को उजागर करें, फलिस्तीन और इस्लामी जगत के संबंध में प्रस्ताव, पर्यावरण संरक्षण से संबंधित प्रस्ताव समेत मुस्लिम उत्थान को लेकर कई प्रस्ताव रखे गए।