ऐ मां तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी

मां के प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती। जन्नत से आगे जाने की कभी अभिलाषा नहीं होती कुदरत भी एक रूप है मां का जन्नत की ताजी हवा से सुंदर तो देवों की भाषा भी नहीं होती।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 10 May 2020 10:00 AM (IST) Updated:Sun, 10 May 2020 10:00 AM (IST)
ऐ मां तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी
ऐ मां तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी

मेरठ, जेएनएन। मां के प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती।

जन्नत से आगे जाने की कभी अभिलाषा नहीं होती,

कुदरत भी एक रूप है मां का,

जन्नत की ताजी हवा से सुंदर तो देवों की भाषा भी नहीं होती।

मां की तारीफ में कुछ भी लिखा व सुना जाए, वह कम है। 10 मई को अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस है। कोरोना त्रासदी और लॉकडाउन के चलते ज्यादातर लोग परिवार में ही समय बिता रहे हैं। दैनिक जागरण के 'मां तू कितनी अच्छी है..' अभियान के माध्यम से लोगों ने मां के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। मैं अभी कहीं नहीं जा रही, तू परीक्षा देकर आ

मा सिर्फ जीवन ही नहीं देती, जीवन को दिशा भी देती हैं। गणित शिक्षक शरत रंजन गुप्ता राजस्थान में तैनात हैं और लॉकडाउन के दौरान घर आए हुए हैं। फुर्सत मिली तो बीते दिनों की यादें ताजा हो उठीं। वह बताते हैं कि बात पुरानी है। मां काफी बीमार थीं और अस्पताल में भर्ती करवाया था। उन्हीं दिनों मुझे बीकानेर एमए मनोविज्ञान की परीक्षा देने जाना था। मां की नाजुक हालत देखकर मैंने परीक्षा न देने का फैसला किया। मां को इस बात का अहसास हुआ तो उन्होंने पास बुलाकर कहा कि तू परीक्षा देने जा, मेरी चिंता मत कर। मैं अभी कहीं नहीं जाने वाली। मैंने परीक्षा दी और सफल भी रहा। जब मैं परीक्षा देकर लौटा तो मां की हालत गंभीर हो चुकी थी। वह अपनी अंतिम सांस गिन रही थीं। सब कुछ जानते हुए भी मां ने मुझे परीक्षा के लिए भेजा। जैसे उनकी सांसें मेरी इस परीक्षा में ही अटकी हुई हों।

-शरत रंजन गुप्ता, शिवाजी रोड मरते-मरते भी खिला गई खाना

मां का स्वर्गवास हुए दस वर्ष हो चुके हैं। आज भी यह बात दिमाग में है कि आखिरी सांस तक उन्हें मेरे खाने का ध्यान रहा। आखिरी क्षणों में उनकी तबीयत काफी खराब हो चुकी थी। उन्हें बोलने में भी परेशानी हो रही थी। परिवार के सभी सदस्य जान चुके थे कि अब किसी भी पल मां हमारा साथ छोड़कर जाने वाली हैं। उन्होंने आखिरी बार मेरी ओर देखा और कहा कि भैया खाना नहीं खाया तो खा लें। इतना कहते ही उनकी सांसों की डोर टूट गई।

-प्रमोद कुमार तायल, फूलबाग कॉलोनी मां की क्रीम में आती है उनकी खुशबू

मां आज भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जब भी मुझे मां की याद आती है, उनकी क्रीम की खुशबू से उनके होने का अहसास कर लेता हूं। आज के समय में इस बात पर विश्वास करना मुश्किल होगा। मेरी मां जिस क्रीम का इस्तेमाल करती थीं, मैंने उसे आज भी सहेज कर रखा है। जब भी मुझे उनकी याद आती है। मैं उसे लगाता भी हूं और उसकी खुशबू का अहसास भी करता हूं। इससे मुझे उनके पास होने का अहसास होता है।

-गिरिजेश कुमार अग्रवाल, विवेक विहार

अपने शब्दों में अपनी रचनाएं

जिसने दी है जिंदगी और चलना सिखाया है, वो मा मेरी उस भगवान का साया है.. मां सिर्फ एक शब्द नहीं बेटी के लिए उसकी पूरी दुनिया है। मैं और मेरी दोनों बहनें सरकारी विभागों में कार्यरत हैं। मां ने बेटा नहीं होने का मलाल नहीं किया। हमें अपने पैरों पर खड़ा किया। आज हम जो भी हैं, मां की बदौलत ही हैं।

-ईशु गुप्ता, श्रद्धापुरी

-मौका मिला है लिखने का तो कायनात लिखती हूं, जो तेरे बारे में ना लिखूं तो क्या खाक लिखती हूं। पापा की लाड़ली होने की वजह से मां को कभी मैंने अपना फेवरेट नहीं कहा, लेकिन लॉकडाउन ने मुझे मां के करीब कर दिया है। अब मैं उन्हें पूरे दिन घर पर काम करते हुए देख रही हूं। इन दिनों मुझे अहसास हुआ कि सुबह उठकर योग करना हो या फिर ऑनलाइन डांस क्लास मां कैसे मेरी छोटी से छोटी बात की परवाह करती हैं। अब मैं मां का प्यार और उनकी फीलिंग समझने लगी हूं। अब वह मेरे लिए सबसे खास और महत्वपूर्ण हैं।

-प्रेरणा श्रवण मां तेरे आंचल में मैं छिप जाती थी, जब कभी गम से मैं भर जाती थी, वो सुकून मिल जाता था। जो जन्नत का अहसास दिलाता था। आके तेरी गोद में सारा में सारा जहां मेरा बन जाता था। जब तू साथ होती है तो मीलों का सफर यूं ही कट जाता है। मां सिर्फ एक नाम नहीं बच्चों के लिए वह अहसास है, जिसकी गोद में वह जीवन का हर दुख भूल जाते हैं। एक मां ही है जो मेरे दिल के सबसे करीब है। मां के प्यार का कर्ज कोई भी नहीं उतार सकता है।

-नैना जैन

मां ये सब कैसे कर पाती हैं

थकती नहीं है दिनभर काम करती नजर आती है,

मां मानो जैसे रोबोट को टक्कर देना चाहती है।

दुनियाभर की रस्में भी वो सारी निभाती हैं, मां न जाने ये सब कैसे कर पाती हैं।

मैं भूखा रहूं तो मां को नींद नहीं आती है,

मेरी हर परेशानी वो चेहरे से पढ़ पाती है।

मेरे आगे अपना दुख-दर्द सब भूल जाती हैं,

मां न जाने ये सब कैसे कर पाती हैं।

-अर्पित वर्मा

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