हाकी व‌र्ल्ड कप में अचूक रहा है मेरठ का पेनाल्टी कार्नर

एक जमाना ऐसा था, जब दद्दा ध्यानचंद ने 1947-48 में मेरठ में जापान को अकेले हराकर दुनिया को भारतीय हाकी की ताकत से रूबरू कराया। मेरठ की माटी में हाकी की विश्वस्तरीय नर्सरी रोप दी।

By Edited By: Publish:Wed, 28 Nov 2018 03:00 AM (IST) Updated:Wed, 28 Nov 2018 03:00 AM (IST)
हाकी व‌र्ल्ड कप में अचूक रहा है मेरठ का पेनाल्टी कार्नर
हाकी व‌र्ल्ड कप में अचूक रहा है मेरठ का पेनाल्टी कार्नर
मेरठ, जेएनएन। एक जमाना ऐसा था, जब दद्दा ध्यानचंद ने 1947-48 में मेरठ में जापान को अकेले हराकर दुनिया को भारतीय हाकी की ताकत से रूबरू कराया। मेरठ की माटी में हाकी की विश्वस्तरीय नर्सरी रोप दी। वक्त के साथ हाकी ने बेशक चमक खो दी, किंतु व‌र्ल्ड कप के बहाने दिग्गज खिलाड़ियों को पुराने दिन याद आ गए हैं। अस्सी के दशक में भारतीय टीम की रीढ़ रहा मेरठ अब टीम यूपी से भी बाहर है। हालांकि व‌र्ल्ड कप को लेकर मेरठ की यादें स्वर्णिम रही हैं। एमपी सिंह, रोमियो जेम्स एवं विवेक सिंह जैसे ओलंपिक एवं दिग्गज व‌र्ल्ड कप भी खेले। हालांकि भारत महज 1975 में व‌र्ल्ड कप जीत सका।
जब मेरठ से चुनी गई थी टीम
इंडिया भुवनेश्वर में बुधवार से शुरू हो रहे हाकी व‌र्ल्ड कप को लेकर देश में एक बार फिर राष्ट्रीय खेल का पारा चढ़ा है। भले ही इसमें क्रिकेट जैसा जादू नहीं, किंतु हाकी इंडिया ने टीम को नई ताकत अवश्य दी है। इस बीच मेरठ में हाकी के दिग्गजों के बीच व‌र्ल्ड कप को लेकर चर्चा तेज हो गई है। उनका कहना है कि अस्सी के दशक में जूनियर इंडिया की पूरी टीम मेरठ से चुनी गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर के आधा दर्जन खिलाड़ी एवं कोच देश की हाकी के मार्गदर्शक बने। तमाम स्कूलों एवं क्लबों में हाकी की नर्सरियां नजर आती थीं, जो वक्त के साथ मुरझा गई।

दद्दा ने रोपी थी नर्सरी
पूर्व अंतरराष्ट्रीय कोच सुशील शर्मा दद्दा ध्यानचंद के साथ झांसी एवं मेरठ में रह चुके हैं। वह बताते हैं कि 1947-48 में जापान की टीम भारत आई। उन दिनों जापान का मुकाबला मेरठ से हुआ, जिसमें अकेले दद्दा के आगे जापानी टीम नाचती रह गई। उन्होंने आधा दर्जन से ज्यादा गोल अकेले दागा। उनके पुत्र अशोक कुमार का भी जन्म मेरठ में हुआ, जो 1980 मास्को ओलंपिक की स्वर्ण विजेता टीम के कप्तान रहे। अर्जुन अवार्डी एमपी सिंह ने 1986 सियोल हाकी व‌र्ल्ड कप खेला। उन्हें दुनिया के सबसे बेहतरीन पेनाल्टी कार्नर विशेषज्ञों में माना जाता था। उनके साथ मेरठ हास्टल के विवेक सिंह ने व‌र्ल्ड कप में भारत के लिए स्टिक संभाला। ओलंपिक तक मेरठ गोलकीपर रोमियो जेम्स ने 1988 ओलंपिक समेत तमाम अंतरराष्ट्रीय मैच खेला। मेरठ के फुट बैक खिलाड़ी प्रमोद बाटला ने एशियाड में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने बाद में मेरठ में हाकी अकेडमी भी शुरू की। अंतिम बार मेरठ के विकास शर्मा ने भारत के लिए अजलान शाह में सेंटर हाफ की पोजीशन संभाला। विकास भले ही लंबे समय तक टीम इंडिया के सदस्य नहीं रह पाए, किंतु वह एशियन चैंपियन ट्राफी का स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम की अहम कड़ी थे। प्रवीण शर्मा ने भी देश के लिए टेस्ट मैच खेला।

कोच भी बेमिसाल थे...
अंतरराष्ट्रीय हाकी रेफरी वीरेंद्र सिंह का कहना है कि मेरठ में स्पो‌र्ट्स हास्टल रहने के दौरान तमाम गुणी कोच भी थे। ललित भट्ट, सुशील शर्मा व मोहम्मद जावेद मेरठ में रहे, जबकि नरसिंह प्रताप सिंह एवं राम अवतार मिश्र लखनऊ में कोच रहे। इस दौरान भारतीय हाकी में तमाम बेहतरीन खिलाड़ी उभरे। 10 साल से कोई बड़ा टूर्नामेंट नहीं विशेषज्ञों को मलाल है कि मेरठ में हाकी की एसोसिएशन बंद पड़ी है। अंतिम बार 2006 में विवि के कोच रहे सत्यपाल के नाम पर राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धा आयोजित की गई, जिसमें पीएनबी, ओएनजीसी जैसी टीमें खेलने पहुंचीं। अब यहां कोई लीग एवं मैच नहीं होता। अस्सी एवं नब्बे की दशक में क्लब, लीग, स्कूलों की टीमें एवं स्पो‌र्ट्स हास्टल से बेहतरीन माहौल बनता था। मोदी गोल्ड कप के रूप में बेहतरीन स्पर्धा आयोजित होती थी। उधर, मेरठ में पंडित सोहनलाल की हाकी देश विदेश में मशहूर हुई, किंतु ग्रेफाइट का दौर आने के साथ ही जालंधर हावी हो गया।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
मेरठ ने भारत को कई बेहतरीन हाकी खिलाड़ी दिए। अर्जुन अवार्डी सियोल व‌र्ल्ड कप में स्टार खिलाड़ी के रूप में खेले। मेरठ हास्टल के विवेक सिंह भी इस टीम की अहम कड़ी थे। तमाम अन्य स्टार खिलाड़ी भी निकले। अब तो नए खिलाड़ियों को मैच ही नहीं मिल पाते हैं। वीरेंद्र सिंह, मैनेजर अंपायर, हाकी इंडिया
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