सहयोग की बैट्री लगी तो मोबाइल हुई पाठशाला, इस तरह शुरू हुई स्‍लम बस्‍ती में आनलाइन क्‍लास

सहारनपुर में गरीब बच्चों को एक अपील पर मिले 23 पुराने मोबाइल फोन। इन्हें ठीक करा बच्चों को दे दिया गया। सहयोग की बैट्री लगते ही उनकी पाठशाला गुलजार हो गई। आनलाइन क्लास में आ रही थी बाधा अब राह हुई आसान।

By Taruna TayalEdited By: Publish:Thu, 15 Oct 2020 06:00 AM (IST) Updated:Thu, 15 Oct 2020 08:36 AM (IST)
सहयोग की बैट्री लगी तो मोबाइल हुई पाठशाला, इस तरह शुरू हुई स्‍लम बस्‍ती में आनलाइन क्‍लास
सहारनपुर में गरीब बच्चों को एक अपील पर मिले 23 पुराने मोबाइल फोन।

सहारनपुर, [मनोज मिश्रा]। प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं हुआ करती। हां, यदि मदद के हाथ बढ़ जाएं तो रास्ता थोड़ा आसान जरूर हो जाता है। स्लम बस्ती के इन बच्चों को भी कोरोना काल में आनलाइन पढ़ाई करनी थी लेकिन रोड़ा था एंड्रायड फोन का। एक अपील हुई तो मदद के लिए लोग बढ़े और देखते ही देखते 23 पुराने एंड्रायड फोन का इंतजाम हो गया। इन्हें ठीक करा बच्चों को दे दिया गया। सहयोग की बैट्री लगते ही उनकी पाठशाला गुलजार हो गई। यह सब संभव हुआ कूड़ा बीनने वाले बच्चों को कोहिनूर बनाने में जुटे अजय ङ्क्षसघल के प्रयासों से। इनमें से कई होनहार शहर के नामचीन स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैैं।

स्लम में रहने वाले बच्चों की मदद का विचार अजय सिंघल  के दिमाग में वर्ष 2010 में आया। आगाज हुआ एक ब्लॉग से। इंदिरा कालोनी में मात्र 32 बच्चों के साथ उड़ान बाल एवं प्रौढ़ शिक्षा केंद्र शुरू हुआ। अब इसमें 235 बच्चे हैं। 70 प्रतिशत से ज्यादा लड़कियां। संस्था के संस्थापक अजय सिंघल की मेहनत और प्रयासों का ही नतीजा है कि 72 गरीब बच्चे शिक्षा के अधिकार के तहत शहर के प्रतिष्ठित स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं। कोरोना काल में स्कूल बंद होने पर आनलाइन शिक्षा का सिलसिला शुरू हुआ तो ये बच्चे निराश हो गए। पढ़ाई में पिछडऩे लगे तो अजय ने सोशल मीडिया पर उन्हें पुराने एंड्रायड मोबाइल मदद स्वरूप देने की अपील की। लोगों ने 23 मोबाइल हैंडसेट दे दिए। इन्हें बाजार में ठीक कराया और बच्चों को दे दिया गया। अब उनकी शिक्षा की रुकी हुई गाड़ी फिर दौडऩे लगी है।

शाम को दो घंटे क्लास

बच्चों का काम बाधित न हो, इसके लिए इंदिरा कालोनी में चल रही उड़ान कक्षा में शाम चार से छह बजे तक दो घंटे की क्लास चलती है। एमसीए की पढ़ाई करने वाले अजय कहते हैं, पढ़ाने का जुनून था, जिसकी वजह से उड़ान संस्था बनाई। अब उनके पास पढ़ाने के लिए पांच से ज्यादा का स्टाफ है। देखरेख के लिए भी अलग से स्टाफ रखा हुआ है। मदद करने के लिए शहर के कई लोग संस्था से जुड़े हैं। कोई आर्थिक सहायता करता है तो कोई बच्चों के लिए किताब-कापी, पेन, पेंसिल की व्यवस्था करता है। उनका उद्देश्य इन बच्चों का भविष्य उज्जवल करना है।

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