घोसी लोकसभा में दिग्गजों को भी देखना पड़ा हार का मुंह, अलग है यहां के मतदाताओं का मिजाज

Lok Sabha Election घोसी लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं का मिजाज कुछ अलग है। कभी मुद्दों व लहरों पर मतदान किया तो कभी किसी को सबक सिखाने को। वामपंथ के लिए केरल रही घोसी में झारखंडेय राय को भी शिकस्त मिली है ताे विकास के पर्याय रहे कल्पनाथ राय को 1989 में ही प्रथम बार जीत का स्वाद मिला। यहां से 2014 में दारा सिंह चौहान को भी हार मिली थी।

By Jaiprakash Nishad Edited By: Abhishek Pandey Publish:Fri, 12 Apr 2024 06:27 PM (IST) Updated:Fri, 12 Apr 2024 06:27 PM (IST)
घोसी लोकसभा में दिग्गजों को भी देखना पड़ा हार का मुंह, अलग है यहां के मतदाताओं का मिजाज
घोसी लोकसभा में दिग्गजों को भी देखना पड़ा हार का मुंह

संवाद सूत्र, घोसी (मऊ)। घोसी लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं का मिजाज कुछ अलग है। कभी मुद्दों व लहरों पर मतदान किया तो कभी किसी को सबक सिखाने को। वामपंथ के लिए केरल रही घोसी में झारखंडेय राय को भी शिकस्त मिली है ताे विकास के पर्याय रहे कल्पनाथ राय को 1989 में ही प्रथम बार जीत का स्वाद मिला। हालांकि 1989 में विकास के नाम पर कल्पनाथ राय को चुना तो उनके जीवित रहते बस विकास का ही मुद्दा सफल रहा।

विकास के इस मुद्दे ने जातिवाद से लेकर संप्रदायवाद तक हर वाद को निगल लिया। आजाद भारत के प्रथम आम चुनाव में घोसी से नाटे कद के पंडित अलगू राय शास्त्री ने अपने व्यक्तित्व के चलते मतदाताओं की आंखों के नूर बने। 1957 में उमराव सिंह ने कांग्रेस की लोकप्रियता के बूते तिरंगा फहराया।

1962 से यहां जयबहादुर सिंह व झारखंडे राय का चुनाव निशान हंसिया बाली घर-घर तक पहुंच गया। घोसी में वामपंथियों ने लाल झंडा गाड़ दिया। पर 1977 में आई जनता पार्टी की आंधी में दिग्गज झारखंडेय राय को शिवराम राय ने शिकस्त दे दी, हालांकि अगले ही मध्यावधि चुनाव में वर्ष 1980 में झारखंडे राय ने गढ़ वापस ले लिया। बात करें विकास पुरूष के रूप में जाने जाने वाले कल्पनाथ राय की तो वह प्रथम बार सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में 1967 में मैदान में उतरे पर वामपंथी जयबहादुर सिंह से परास्त हो गए।

पूर्व मंत्री कल्पनाथ राय ने 1973 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण किया व प्रथम बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में 1980 मैदान में उतरे पर कम्युनिस्ट पार्टी के झारखंडेय राय ने पराजित कर दिया। हालांकि बाद में उन्हें राज्यसभा के सदस्य के रूप में चुना गया। जनपद के सृजक कल्पनाथ राय ने 1989 एवं 1991 में तिरंगा लहरा कर अपनी विजय पताका फहराया। इसके बाद तो यहां दल गौण और विकास के रथ पर सवार कल्पनाथ राय प्रमुख हो गए।

1996 में निर्दल और 1998 में समता पार्टी से चुनाव जीत वह घोसी के अपराजेय नेता ही नहीं बने वरन 1998 में कांग्रेस के दिग्गज पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रजीत यादव को 14 हजार से भी कम मतों पर ला खड़ा कर दिया। इस लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं ने कम्युनिस्ट पार्टी के दिग्गज नेता राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान को भी वर्ष 1991 से अनवरत पराजय का स्वाद चखाया है।

यहां से 2009 के लोकसभा चुनाव में बलिया के ही पूर्व विधायक राम इकबाल सिंह भाजपा प्रत्याशी के रूप में जी-तोड़ मेहनत के बावजूद चौथे स्थान तक पहुंचे। बहुजन समाज पार्टी के नेता सदन के रूप में दारा सिंह चौहान भी वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर आ गए।

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