जोगनियां बन आयौ छलिया नंदकिशोर

बरसाना(मथुरा) ब्रजेश्वरी के दर्शन को कान्हा बेचैन हैं। सखियों का पहरा और लोकलाज। नट

By JagranEdited By: Publish:Fri, 28 Aug 2020 10:54 PM (IST) Updated:Sat, 29 Aug 2020 06:10 AM (IST)
जोगनियां बन आयौ छलिया नंदकिशोर
जोगनियां बन आयौ छलिया नंदकिशोर

संवाद सूत्र, बरसाना(मथुरा): ब्रजेश्वरी के दर्शन को कान्हा बेचैन हैं। सखियों का पहरा और लोकलाज। नटवर ने जोगन रुप धरा। मुकुट, मुरली छोड़ ओढ़ ली धोती। भाग्य बांचने जा पहुंचे राधा के द्वार। लीलाधर की चतुराई ज्यादा समय छुपी नहीं रही। पहचान लिया तो बोले-प्रिय तुम बिन चैन कहां।

बूढ़ी लीला महोत्सव में शुक्रवार को जोगिन लीला को जीवंत किया गया। विलासगढ़ पहाड़ी स्थित निम्बार्की संत हंसदास और उनके शिष्य बंशीदास की साधना स्थली पर स्वामी विरजन चिकसौली के कलाकारों ने जोगिन लीला खेली। विलासगढ़ की इसी पहाड़ी पर कभी राधारानी का महल था। कलाकारों ने राधा-कृष्ण और सखियों का रूप धरकर लीला को जीवंत किया। मयूर लीला और युगल नृत्य देख ग्रामीण भी भाव विभोर हो गए।

कन्हैया ने करीब साढ़े पांच हजार साल पहले राधा से मिलन को जोगिन का रुप धरा खा। ब्रजवासी राधा-कृष्ण के अटूट प्रेम की ये लीलाएं आज भी जीवंत किए हैं। शुक्रवार को जोगिन लीला हुई,तो माहौल राधे कृष्ण के जयघोष से गूंज उठा। भगवान का झूला भी झुलाया गया। कथा कहती है..

ब्रजाचार्य पीठ के प्रवक्ता घनश्याम भंट्ट बताते हैं कि कन्हैया एक बार राधा से मिलने महल पहुंचे। उन्हें दरवाजे पर ही रोक दिया गया। मिलन को व्याकुल छलिया ने जोगिन का भेष बना लिया। दरवाजे पर पहुंचा आवाज लगाई कि कोई अपने ग्रह नक्षत्र दिखवा ले। जोगिन की आवाज सुन राधारानी की प्रधान सखियां ललिता और विशाखा उन्हें महल के अंदर ले गईं। श्रीकृष्ण राधारानी के हाथ की भाग्य रेखा देख बोले, तुम्हारा विवाह नंद के लाला से होगा। बस उनकी चतुराई राधारानी ने पहचान ली। राधारानी श्रीकृष्ण से पूछती हैं ये रूप तुमने क्यों धरा, जवाब मिला, प्राण प्रिय यह रूप मैंने आपके दर्शन को धारण किया है। 'बरसाना में वर्षों तक तपस्या करने वाले संत हंसदास ने अपनी पुस्तक में इस लीला का जिक्र किया है। ब्रजवासी कन्हैया की सभी लीलाओं से प्रेम करते हैं। उन्हें आज भी संजोया जा रहा है।'

- स्वामी विरजन, चिकसौली

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