रंग बिरंगे स्टार्क के रंग में रंगा जोधपुर झाल

स्टार्क की चार प्रजातियों की फैमिली ने झाल पर डाल लिया है डेराभोजन की पर्याप्त मात्रा व सुरक्षित स्थान होने से प्रवासी पक्षियों को भी भा रहा झाल

By JagranEdited By: Publish:Fri, 04 Jun 2021 06:54 AM (IST) Updated:Fri, 04 Jun 2021 06:54 AM (IST)
रंग बिरंगे स्टार्क के रंग में रंगा जोधपुर झाल
रंग बिरंगे स्टार्क के रंग में रंगा जोधपुर झाल

जागरण संवाददाता, मथुरा: फरह क्षेत्र का जोधपुर झाल इन दिनों रंग-बिरंगे रंग में रंगा है। यहां कम गहरा पानी, घास का मैदान, नहरों का जाल, कृषि भूमि और पेड़ से हरियाली होने की वजह से स्टार्क फैमिली के पक्षियों को भा रहा है। झाल पर पक्षियों को भरपूर मात्रा में भोजन भी मिल रहा है। इसके चलते यहां एक-दो नहीं बल्कि स्टार्क फैमिली की चार प्रजातियों ने अपना आशियाना बना लिया है।

जोधपुर झाल देश-विदेशी पक्षियों के लिए एक नया ठिकाना बनकर उभर रहा है। यहां अलग-अलग समय पर दो दर्जन से अधिक प्रजाति के पक्षी देखने को मिलते हैं। वन अधिकारियों का कहना है कि इन दिनों जोधपुर झाल पर स्टार्क की चार प्रजातियों को देखा जा सकता है। इनमें पेंटेड स्टार्क, ब्लैक नेक्ड स्टार्क, बूली नेक्ड स्टार्क और ओपन बिल स्टार्क शामिल हैं। उन्होंने बताया कि यूं तो भारत में स्टार्क की आठ प्रजातियां देखने को मिलती हैं। जिसमें छह आवासीय तथा दो प्रवासी (व्हाइट स्टार्क और ब्लैक स्टार्क) हैं। झाल के संरक्षण से बढ़ रही स्टार्क की जनसंख्या : बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष तथा पक्षी विशेषज्ञ डा. केपी सिंह ने बताया कि जोधपुर झाल का हेविटाट स्टार्क फैमिली की इन चार प्रजातियों के अनुकूल है। यह चारों प्रजातियां पूरे साल यहां दिखती हैं। झाल पर कुछ आई लैंड बनाकर व देसी बबूल के पेड़ लगाए जाएंगे, जिससे पेंटेड स्टार्क की संख्या में वृद्धि हो सकती है और इनके प्रजनन स्थल बनने की संभावना बनेगी। जोधपुर झाल पर बूली-नेक्ड स्टार्क प्रजनन करता है। पिछले दिनों झाल के संरक्षण को लेकर कार्य किया गया है, जिससे यहां स्टार्क के साथ अन्य प्रजाति के पक्षी भी देखे जा रहे हैं। परजीवी संक्रमण को रोकता है ओपनबिल स्टार्क :विशेषज्ञों का कहना है कि ओपनबिल स्टार्क प्लेटी हेल्मिथस संघ के परजीवियों से होने वाली बीमारियों को नियंत्रित करता है। इन परजीवियों का वाहक घोंघा (मोलस्क) होता है, जिसके द्वारा खेतों में काम करने वाले मनुष्यों और जलाशयों व चारागाहों में चरने व पानी पीने वाले वाले पशुओं को यह परजीवी संक्रमित कर देता है। इससे मनुष्य व उनके पालतू जानवरों में बुखार, यकृत की बीमारी पित्ताशय की पथरी, स्नोफीलियां, डायरिया, डिसेंट्री आदि पेट से संबंधित बीमारी हो जाती हैं।

chat bot
आपका साथी