नियमों का हवाला दे विनाश को पाल रहे
विलायती बबूल या जूली फ्लोरा मानव से लेकर देसी प्रजातियों तक के लिए काल बनी
योगेश जादौन, मथुरा: एक समय मिंट्टी के कटान को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर उगाई गई वनस्पति अब उसकी ही दुश्मन बन गई है। इसे विलायती बबूल या जूली फ्लोरा के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यह मानव से लेकर देसी प्रजातियों तक के लिए काल बन चुका है। देशभर में इसके खिलाफ अभियान चल रहा है, वहीं जिले में इसकी बेतहाशा वृद्धि हो रही है। यह देसी वनस्पति की वृद्धि में भी बाधक है।
भारतीय वन्य जीव संस्थान भी विलायती बबूल को नुकसानदायक मान चुका है। तमिलनाडु की सरकार ने इसे उखाड़ फेंका। भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय पार्क में पक्षियों के लिए जानलेवा होने पर इसका एक बड़े क्षेत्र से सफाया किया जा चुका है। मथुरा की जमीन भी विलायती बबूल के चलते संकटों से जूझ रही है। इसके सफाये में वन्य विभाग की अनुमति और टीटीजेड क्षेत्र होने से एनजीटी के नियम बाधा बने हुए हैं। भारतीय वन्य जीव संस्थान ने भी माना हानिकारक
उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद के उपाध्यक्ष शैलजाकांत ने भारतीय वन्य जीव संस्थान को साल की शुरुआत में पत्र लिखा था। डीन जीएस रावत ने स्वीकार किया कि यह वनस्पति किसी लिहाज से बेहतर नहीं। वन विभाग को विश्वास में लेकर इसे हटा सकते हैं। ऐसा करते समय अन्य वनस्पति को नुकसान न पहुंचे।
-क्या हैं नुकसान-
- यह भूमिगत जलस्तर को गिराता है। पशु और पक्षियों के लिए भी नुकसानदायक है।
- इसकी पत्तियां ऐसे वैक्टीरिया पैदा करती है जो मिंट्टी के लिए हानिकारक हैं।
- पशुओं खासकर बकरी के दांत और जबड़े को नुकसान पहुंचता है। ''केंद्र से लेकर राज्य तक वन विभाग को कई पत्र लिखे हैं, लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला है। यह गोवर्धन पर्वत को कृष्णकालीन स्वरूप देने में न केवल बाधक है बल्कि देसी पौधे उगाने की राह में भी बाधा है।''
- नगेंद्र प्रताप ¨सह, सीईओ, उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद