थाती की तरह सहेजी सप्तऋषि की अनमोल माटी

रैना पालीवाल, मथुरा टीलों का धनी है जनरलगंज। यहां पंच टीलों की श्रृंखला है। अब तक आपको तीन टीलो

By JagranEdited By: Publish:Sun, 16 Apr 2017 05:20 PM (IST) Updated:Sun, 16 Apr 2017 05:20 PM (IST)
थाती की तरह सहेजी सप्तऋषि की अनमोल माटी
थाती की तरह सहेजी सप्तऋषि की अनमोल माटी

रैना पालीवाल, मथुरा

टीलों का धनी है जनरलगंज। यहां पंच टीलों की श्रृंखला है। अब तक आपको तीन टीलों से मिलवा चुके हैं। अब ले चलते हैं 'सप्तऋषि' की ओर। इसकी अनमोल माटी को सेवायत ने थाती की तरह सहेजा है। टीले के प्राचीन स्वरूप को बचाने के लिए वह स्वयं मिट्टी की दीवार बनाने में जुटे हैं। हरियाली से इसका श्रृंगार करने की कोशिश भी कर रहे हैं।

सप्तऋषि टीले के आसपास की पहचान इसी नाम से है। कॉलोनी को सप्तऋषि नगर कहा जाता है। कुछ सीढि़यां चढ़ने के बाद मिट्टी का एक खंड नजर आता है जिसके आसपास जाल लगाया गया है। मिट्टी में आज भी भस्म नजर आती है। यहां से आगे बढ़कर सबसे ऊपर प्राचीन मंदिर में सप्तऋषि जमदग्नि, विश्वामित्र, अत्रि, भारद्वाज, कश्यप, वशिष्ठ, गौतम और वशिष्ठ पत्नी अरुंधती की मूर्तियां सुशोभित हैं। भादो में ऋषि पंचमी को टीले पर मेला लगता है।

सेवायत देवेंद्र दास ने बताया कि टीला 400-500 गज में फैला है। कुछ हिस्से पर अतिक्रमण हो गया। उसे नहीं रोक सके लेकिन इसके एक विशेष खंड को संभाल कर रखा है। उसके चारों ओर जाल लगवा रखा है। चौरासी कोस व पंचकोसीय यात्रा यहां आती है। श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए प्राचीन स्वरूप तो रहे। एक मिट्टी की दीवार बना रहा हूं। पौधरोपण भी करेंगे। लोग जुड़ेंगे तो स्थान भी बचेगा।

इस टीले का पौराणिक महत्व है। कंस के अत्याचारों से त्राहिमाम धरती पर भगवान के अवतरण के लिए सप्तऋषियों ने आकाशमंडल से यहां आकर तप और यज्ञ किया। यहां की भस्मीभूत मिट्टी दर्शनार्थी माथे पर लगाते हैं। इस क्षेत्र को आदि वैकुंठ तीर्थ भी कहते हैं। नीचे सप्तऋषि कूप है। पंचकोसीय यात्रा में महिलाएं उसमें स्नान करती थीं। पानी न होने की वजह से 20-25 साल पहले यह परंपरा खत्म हो गई।

बस्ती के बीच में सिमटे बलि

इस टीले से कुछ दूर स्थित बलि टीले पर बस्ती बस गई है। पिछले हिस्से में टीले का अवशेष है। एक दशक पहले उसे भी खोदकर कुछ हिस्सा नष्ट कर दिया गया। मकानों के बीच में एक मंदिर है। यहां बलि, शुक्राचार्य और वामनदेव की मूर्तियां हैं। शांति 40 साल से मंदिर की सेवा कर रही हैं। कहती हैं, हम लोग किसी को कैसे रोकें। वामन द्वादशी को यहां मेला लगता है। इस स्थान पर विरोचन पुत्र बलि ने वामनदेव की आराधना की थी। अगर टीले के पिछले हिस्से में सीढि़यां बनवा दी जाएं तो सीधा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।

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