Maharajganj Lok Sabha Seat: यहां अभिशाप बना नेपाल का पानी, सिल्ट से पटे हैं खेत; विस्थापन का दंश झेलते हैं लोग

नेपाल से आने वाले रेतयुक्त पानी के चलते सैकड़ों एकड़ खेत में रेत की मोटी परत बिछ गई है। जिससे यहां फसल उगाना मुश्किल हो गया है। चुनाव में यह समस्या चर्चा में आती जरूर है लेकिन कई दशक बीत जाने के बाद भी इसका कोई स्थाई समाधान नहीं ढूंढा जा सका है। नेपाल से आने वाले पानी से हो रहे नुकसान पर केंद्रित महराजगंज से विश्वदीपक त्रिपाठी की रिपोर्ट....

By Jagran NewsEdited By: Vivek Shukla Publish:Thu, 18 Apr 2024 12:00 PM (IST) Updated:Thu, 18 Apr 2024 12:00 PM (IST)
Maharajganj Lok Sabha Seat: यहां अभिशाप बना नेपाल का पानी, सिल्ट से पटे हैं खेत; विस्थापन का दंश झेलते हैं लोग
वनटांगिया गांवों में महीनों तक जमा रहता है बाढ़ का पानी

महराजगंज के लोगों के लिए नेपाल से आने वाला पानी अब अभिशाप बन गया है। वर्षा काल में यहां के 300 गांव बाढ़ से प्रभावित होते हैं। गंडक, राप्ती, रोहिन व उनकी सहायक नदी-नालों का जल स्तर बढ़ने से हर साल सैकड़ों एकड़ फसल तो जलमग्न होती ही है, खेतों में शिल्ट जमा होने से बाद में भी खेती प्रभावित रहती है। 20 से अधिक गांवों के लोग दो महीने के लिए विस्थापन का दंश भी झेलते हैं।

नेपाल के रूपन्देही व नवलपरासी जिले से सटे महराजगंज में बहने वाले नदी-नाले पड़ोसी देश से होकर यहां प्रवेश करते हैं। यदि गंडक नदी पर बने बाल्मीकिनगर बैराज को छोड़ दें तो किसी भी नदी के वेग को नियंत्रित करने की कोई प्रणाली नेपाल या भारतीय क्षेत्र में स्थापित नहीं हुई है। जिले के नौतनवा व निचलौल तहसील क्षेत्र के अधिकांश गांव बाढ़ की समस्या से जूझते हैं।

गंडक के पूरब बसे शिकारपुर, सोहगीबरवा व भोथहा ग्राम पंचायतों का तो सबसे बुरा हाल होता है। दो महीने तक यह गांव टापू में तब्दील रहते हैं। यहां के 25 हजार ग्रामीणों का बाहरी दुनिया से संपर्क पूरी तरीके से कट जाता है। नदी के वेग के चलते उनका घर से निकलना मुश्किल होता है।

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यहां की दुश्वारी का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सोहगीबरवा से सटे सुस्ता क्षेत्र में बाढ़ में फंसे ग्रामीणों को प्रशासन ने चार वर्ष पूर्व हेलीकाप्टर भेज रेस्क्यू किया था। जंगल के बीच बसे जिले के 18 वनटांगिया गांवों में बाढ़ का पानी महीनों तक जमा रहता है। ऐसे में बीमारी या आकस्मिक सेवा के लिए भी ग्रामीणों का जंगल से बाहर निकलना मुश्किल रहता है।

कई बार समय से इलाज न मिलने से ग्रामीण काल के गाल में समा जाते हैं। 1998 की बाढ़ में धानी विकास खंड के ग्राम चौका के टोला कोमर के 150 घर राप्ती नदी में विलीन हो गए थे। लंबे समय तक ग्रामीण गोरखपुर के विश्रामपुर चौराहे पर रहे। पांच वर्ष पूर्व सिद्धार्थनगर जिले की ओर नया गांव बसा जीवन यापन कर रहे हैं।

महराजगंज जनपद में बहने वाली प्रमुख नदियां

राप्ती

गंडक

रोहिन

झरही

चंदन

प्यास

डंडा

महाव नाला

13 वर्ष में 53 स्थानों पर टूटा महाव, सिल्ट से पटे हैं खेत

महाव नाले में आने वाली सिल्ट जिले के किसानों के लिए मुसीबत बन गई है। भारतीय सीमा क्षेत्र में 23 किलोमीटर बहने वाला यह नाला मधवलिया व उत्तरी चौक रेंज के घने जंगल से होते हुए करौता गांव के समीप बघेला नाले में मिल जाता है।

स्थिति यह है कि बीते 13 वर्षों में यह नाला 53 स्थानों पर टूटकर तबाही मचा चुका है। पानी के साथ आने वाली रेत के चलते क्षेत्र के किसानों के लिए अब फसल उगाना भी मुश्किल है। जिन खेतों में पहले फसल लहलहाती थी, अब उनमें से अधिकांश खेत बंजर हो गए हैं। विशुनपुरा, जरही, तरैनी, खैरहवा दुबे से जुड़े खेत में दो से तीन फीट ऊंची रेत की परत जमी है।

नेपाल से आ रहा प्रदूषित जल, ग्रामीण परेशान

डंडा व रोहिन नदी में नेपाल से बहकर आ रहा प्रदूषित जल भारतीय क्षेत्र के लोगों के लिए मुसीबत बना है। कभी इन नदियों से तराई क्षेत्र में खेत की सिंचाई होती थी लेकिन प्रदूषित जल के चलते दोनों नदियों का पानी किसी उपयोग के लायक नहीं रह गया है।

लोग इन नदियों में अपने पशुओं को पानी पिलाने व नहलाने से भी परहेज कर रहे हैं। सोहगीबरवा वन्यजीव प्रभाग में रह रहे वन्यजीवों पर भी जहरीले पानी का असर है। हाल के दिनों में रोहिन नदी में मगरमच्छ व मछलियां मृत मिली थी। इनके मृत्यु का कारण जहरीला पानी ही बताया गया था।

भैरहवा मेडिकल कालेज से निकलने वाला अपशिष्ट तो डंडा नदी में ही गिरकर भारतीय क्षेत्र में पहुंच रहा है। नदियों के प्रदूषण का यह मुद्दा इंडो- नेपाल ज्वाइंट कमेटी आफ फ्लड मैनेजमेंट की बैठक में भी उठ चुका है।

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विशुनपुरा निवासी दृग नरायण चौधरी बताते हैं कि नाले की सिल्ट से उपजाऊ खेत बर्बाद हो गए हैं। सिल्ट हटाकर फिर से फसल उगाने लायक बनाने में लागत बढ़ती जा रही है। खेत में बोई गई गेहूं की फसल को बचाने के लिए कई बार सिंचाई करनी पड़ी। नाले के किनारे बांध बनाने के लिए प्रशासन को पहल करनी चाहिए।

विशुनपुरा निवासी ऋषभदेव चौधरी ने बताया कि महाव समस्या का स्थाई समाधान नहीं होने से वर्षा के समय में नाला तटवर्ती गांव के किसानों के लिए मुसीबत बन जाता है। खेत में सिल्ट जमा होने से फसल उगाना संभव नहीं हो पा रहा है। स्थाई समाधान के लिए हर चुनाव में बात उठती है, लेकिन यहां के किसानों को अब तक छलावा ही मिला है।

महराजगंज जिलाधिकारी अनुनय झा ने बताया कि बाढ़ से बचाव के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है। जहां तक महाव नाले की बात है तो उस संबंध में सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता को समय से पूर्व बंधे की मरम्मत व नाले की सिल्ट सफाई के निर्देश दिए गए हैं।

महराजगंज में नदियों की लंबाई किलोमीटर में

रोहिनी- 100

बड़ी गंडक- 5

छोटी गंडक- 100

राप्‍ती-11

अन्य नदियां- 124

सभी नदियां-350

तटबंध- 187

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