उत्तर प्रदेश के 27 जिलों में जल संकट...और धीरे-धीरे बढ़ रहा दायरा

विख्यात पर्यावरण कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह ने कहा कि नदी मां है और मां को मैला ढोने वाली मालगाड़ी मत बनाइए। रिवर और सीवर को अलग-अलग किया जाना चाहिए।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Mon, 22 Apr 2019 11:45 PM (IST) Updated:Tue, 23 Apr 2019 07:51 AM (IST)
उत्तर प्रदेश के 27 जिलों में जल संकट...और धीरे-धीरे बढ़ रहा दायरा
उत्तर प्रदेश के 27 जिलों में जल संकट...और धीरे-धीरे बढ़ रहा दायरा

लखनऊ, जेएनएन। जल पुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरण कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह ने कहा है कि 'भारत के 17 राज्यों के 365 जिले पानी के संकट से ग्रस्त हैं और इनमें उत्तर प्रदेश के 27 जिले शामिल हैं। यह समस्या अब बुंदेलखंड से निकलकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की ओर फैल रही है और बागपत जैसे जिले भी बेपानी हो गए हैं। उत्तर प्रदेश की नदियां नाला बन गई हैं, क्योंकि सभी शहर नदियों में कचरा डालते हैं। नदी मां है और मां को मैला ढोने वाली मालगाड़ी मत बनाइए। रिवर और सीवर को अलग-अलग किया जाना चाहिए।' 

सोमवार को लखनऊ प्रेस क्लब में राजेंद्र सिंह जल जन जोड़ों अभियान एवं जल बिरादरी द्वारा जारी 'भारत की जनता का चुनाव घोषणा पत्र, राजनीतिक दलों की प्रतिबद्धताएं एवं वर्तमान संदर्भ' का लोकार्पण करने के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उनसे पहले अभियान के संयोजक संजय सिंह ने प्रतिबद्धता पत्र की भूमिका रखी।

राजेंद्र सिंह ने कहा राजनीतिक दलों ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस संकट के हल के लिए कार्यक्रम घोषित नहीं किये हैं, जबकि नदियों के नाम पर गंदे जल के नाले बहते हैं जिनसे भूजल के भंडार दूषित हो गए हैं। भूजल के दो तिहाई भंडार खाली हो गए और इनमें भी प्रतिवर्ष तीन मीटर जल स्तर गहराता जा रहा है। गंगा सद्भावना यात्रा और अविरल गंगा यात्रा में जो मुद्दे निकलकर आये उनको जल बिरादरी और जल जन जोड़ो अभियान ने संग्रह करके प्रतिबद्धता पत्र तैयार किया है। मकसद यही है कि भारतीय राजनीति में मानवता और प्रकृति का बराबर सम्मान होना चाहिए।

राजेंद्र सिंह ने बताया कि उनके प्रयास से देश में 12 नदियां पुनर्जीवित हुई हैं लेकिन, जब यह पूछा गया कि इसमें उप्र की कौन सी नदी है तो उनके पास एक भी नाम नहीं था। बताया कि महोबा की चंद्रावत और झांसी की लखीरी नदी के लिए उन्होंने काम किया लेकिन, परिणाम नहीं मिला क्योंकि उप्र के लोग बातें बहुत करते हैं मगर काम नहीं करते। उन्होंने कहा कि फिर भी मेरे अंदर आशाओं के बीज हैं और मैं उस बीज को हरे पेड़ बनते देख रहा हूं। भले भारत के नेताओं की आंख का पानी सूख गया लेकिन, लोगों की आंख का पानी बचा है। राजेंद्र ने कहा कि पानी का कार्य पैसे से करो तो भ्रष्टाचार बढ़ेगा इसलिए लोगों के अहसास को जगाना होगा और पुण्य मानकर इस दिशा में काम करना होगा।

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