सहारनपुर विवादः फसाद नहीं अब सुकून चाहते हैं लोग

तनाव में जी रहे दलित और ठाकुर समाज के लोग अब सुकून चाहते हैं। प्रशासन की ढिलाई को लेकर लोगों में गुस्सा जरूर है परंतु फसाद किसी सूरत में बढ़ाने के पक्षधर नहीं।

By Ashish MishraEdited By: Publish:Tue, 30 May 2017 04:07 PM (IST) Updated:Tue, 30 May 2017 04:07 PM (IST)
सहारनपुर विवादः फसाद नहीं अब सुकून चाहते हैं लोग
सहारनपुर विवादः फसाद नहीं अब सुकून चाहते हैं लोग

सहारनपुर [अवनीश त्यागी]। तीन सप्ताह से तनाव में जी रहे दलित और ठाकुर समाज के लोग अब सुकून चाहते हैं। प्रशासन की ढिलाई को लेकर लोगों में गुस्सा जरूर है परंतु फसाद किसी सूरत में बढ़ाने के पक्षधर नहीं। उनको शिकायत है तो बयानबाजी करके माहौल को बिगाडऩे वालों से। बाहरी नेताओं की आवाजाही उन्हें चुभती है। शब्बीरपुर ही नहीं, दलित-ठाकुर की मिश्रित आबादी वाले अन्य गांवों के लोग भी झगड़ा कतई नहीं चाहते।


शब्बीरपुर से लगभग 18 किलोमीटर दूर स्थित गांव भायला को लें। लगभग पांच हजार आबादी वाले इस गांव में 70 फीसद आबादी ठाकुरों की है तो 20 प्रतिशत दलित भी यहां बसते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से बड़ी संख्या में पुलिस कर्मी यहां तैनात हैं परंतु वो इधर-उधर आराम करते दिखते हैं। रविवार की रात हुई बारिश के कारण जिस तरह तपिश कम हुई है, वैसे ही माहौल के तनाव में भी कमी है।

डिग्री कालेज के निकट घेरे में बैठे लोग मीडिया के रवैये को लेकर नाराजगी जताते है। पशुओं के लिए चारा लेकर लौटे सुखबीर सिंह कहते हैं कि भड़काऊ बयानबाजी बंद हो जाए तो जिंदगी पुराने ढर्रे पर लौट आएगी। सुरेंद्र शर्मा एक कदम आगे की सुनाते हैं। उनका कहना है, अब कुछ नहीं होगा क्योंकि दोनों पक्षों को एक-दूसरे की जरूरत है, आपसी मेल मिलाप बिना बात नहीं बनेगी। गांव में अंबेडकर जयंती मनाने में जिस तरह ठाकुर समाज के लोग हिस्सा लेते रहे और ट्रैक्टर ट्राली मुहैया कराते रहे, वह कभी बंद नहीं होगा।


वहीं दलित समाज के सुमेर सिंह का भी कहना है कि शब्बीरपुर की घटना सबक है। टकराव से दोनों पक्षों को नुकसान पहुंचा, पीढिय़ों का बना आपसी भरोसा वापस लौटाने की कोशिशें होनी चाहिए। पूर्व मंत्री स्व. राजेंद्र सिंह राणा का पैतृक गांव भायला वह है, जहां करीब चार वर्ष पहले टकराव के हालात बने थे परंतु बुजुर्गों के हस्तक्षेप से माहौल सामान्य रहा। डिग्री कालेज के प्रबंधक श्याम सिंह रावत को अपनों से कोई खतरा नहीं लगता परंतु बाहरी लोगों के भड़काऊ रवैये पर एतराज है।


पड़ोसी प्रदेशों के नेताओं की आवाजाही रोकें : शब्बीरपुर प्रकरण को लेकर स्थानीय नेताओं से अधिक पड़ोसी राज्यों के नेताओं की रुचि बढऩे से स्थानीय जनता आशंकित है। भीम आर्मी के जेएनयू कनेक्शन को गंभीर मान रहे ग्राम बास्तम के युवा दलित अमित का कहना है कि तथ्यों को गलत तरीके से प्रचारित करने से सहारनपुर की छवि खराब हो रही है।

वहीं दलित सेना में सक्रिय रहे जगराम निमेष का आरोप है कि दलित उत्पीडऩ के बहाने चंदा बटोरने वाले गिरोह भी सक्रिय हो चुके हैं। दिल्ली के दलित समर्थकों का दखल बढऩे से ठाकुरों को एतराज है तो उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाले ठाकुर बिरादरी के एक नेता की सक्रियता से दलित समुदाय चिढ़ता है। एडवोकेट अमित सागर का कहना है कि माहौल सामान्य हो रहा है तो बाहरी लोगों का दूर रहना ही बेहतर होगा।


निकाय चुनाव को तैयार हो रही जमीन : शब्बीरपुर कांड को तूल दिए जाने को नगरीय निकाय चुनाव से भी जोड़ा जा रहा है। दो बड़े चुनावों में मात खाए दल और नेता निकाय चुनाव में जीत की चाहत से माहौल में जहर खोल रहे है। यह चिंता जाहिर करते हुए दूधली गांव के प्रधान कुलदीप सैनी का कहना है कि सड़क दूधली में 20 अप्रैल को अंबेडकर की शोभायात्रा के विवाद में भीम आर्मी का मौन भी जांच का बिंदु है।

लगातार चुनाव में हार रहे एक स्थानीय विवादित नेता की भूमिका भी संदिग्ध रही है, चूंकि अब निकाय चुनाव सिर पर हैं तो वोटबैंक की सियासत माहौल बिगाड़ रही है। सामाजिक कार्यकर्ता सईद सलमानी का कहना है कि इस बार जिस तरह पुराने सियासी घराने हाशिए पर पहुंचे हैं, उनकी छटपटाहट भी अमन के लिए खतरा बनी है। वहीं बजरंग दल के विकास त्यागी का कहना है कि सहारनपुर में पहली बार नगर निगम चुनाव होगा तो सियासी गोटियां बिछाने का काम जातीय टकराव के जरिये कराया जा रहा है। 

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