बार-बार मोबाइल से सेल्फी लेने की ललक बनी भयावह, सेल्फाटिस बीमारी से घिर रहे लोग Lucknow News

पीजीआइ लखनऊ रोजाना सेल्फाटिस के इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास पहुंच रहे चार से पांच मरीज।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Sat, 02 Nov 2019 08:05 PM (IST) Updated:Wed, 06 Nov 2019 08:39 AM (IST)
बार-बार मोबाइल से सेल्फी लेने की ललक बनी भयावह, सेल्फाटिस बीमारी से घिर रहे लोग Lucknow News
बार-बार मोबाइल से सेल्फी लेने की ललक बनी भयावह, सेल्फाटिस बीमारी से घिर रहे लोग Lucknow News

लखनऊ [अनुज शुक्ल]। सेल्फी...। सहेजने हो खास पल या छाना हो सोशल मीडिया पर। वाकई, तकनीक की दुनिया में जरिया इससे बढिय़ा कोई नहीं। जब और जहां चाहा, अपनों के दिल में दस्तक दे दी। कामकाज के लिहाज से देखें तो सहूलियत भी बेशुमार लेकिन, अफसोस...। शौक से शुरू हुआ सेल्फी का सिलसिला इस कदर जुनून बनकर दिमाग पर हावी हुआ है कि सनक का भयावह रूप बन बैठा। आलम यह है, लखनऊ स्थित संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) में गंभीर मानसिक बीमारी बन रहे शौक से छुटकारे के लिए रोजाना चार-से पांच मरीज पहुंच रहे हैं। लोगों को दीन-दुनिया से विरक्त कर घर-घर पनप रही इस बीमारी को डॉक्टरों ने नाम दिया है-सेल्फाटिस। यानी आप भी रोजाना तीन से चार सेल्फी खींचने के लिए खिंचे चले जाते हैं तो जान लीजिए, कहीं न कहीं 'बीमार' हैं...।   

खास बात यह कि पीजीआइ पहुंच रहे मरीजों में मुश्किल इतनी भर नहीं है। पीजीआइ की बाल रोग विशेषज्ञ व किशोरावस्था काउंसलर डॉ. पियाली भट्टाचार्या के इलाज में जो नतीजे सामने आए उनके मुताबिक, खुश होने का खास अवसर छोड़ दें, अकेले बैठे हों या शरीक हों किसी के गम में। काम में व्यस्त हों या कर रहे हों पेट पूजा। लोग फोन उठाकर धड़ाधड़ क्लिक शुरू कर देते हैं। उसके तुरंत बाद खींचे गए फोटो को सोशल मीडिया पर अपलोड करने की धुन और फिर उनपर लाइक के इंतजार की ललक में डूब जाते हैं। अगर किसी कारणवश, उनके शेयर किए फोटो को लोगों ने कम पंसद किया, कमेंट्स कम आए तो उन्हें बेहद नागवार गुजरता है। 

सेल्फाटिस का असर 

 पोस्ट पर रिएक्शन न मिलने डिप्रेशन का शिकार हुए   खासतौर से युवा उम्मीद के मुताबिक रिएक्शन से मिलने से परेशान हुए   रातों की नींद छिन गई, कार्यक्षमता भी गई घट   सामाजिक को नजरअंदाज किया, परिवार से कटे-कटे रहने लगे, अपने में ही अलग मोबाइल में रहते व्यस्त 

क्या है सेल्फाइटिस 

नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने इस हालात की सबसे पहले पहचान की। हर दिन अपनी सेल्फी लेकर कम से कम पांच से छह बार सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले खासतौर से सेल्फाइटिस से पीडि़त माने जाते हैं। 

सेल्फाइटिस डिसऑर्डर के तीन स्तर

 दिन में तीन से ज्यादा सेल्फी लेना, लेकिन पोस्ट न करना।  सेल्फी सोशल मीडिया पर पोस्ट करना  हर समय सोशल मीडिया पर अपनी सेल्फी पोस्ट करना।

हर दस सेकंड में एक हजार सेल्फी 

शोध के मुताबिक, इंस्टाग्राम पर हर 10 सेकंड में 1,000 सेल्फीज पोस्ट की जाती हैं। हर दिन 93 मिलियन सेल्फी होती हैं, जो फिल्म की 2,583,333 रोल का प्रतिनिधित्व करती हैं। 20 में से 19 किशोर सेल्फी लेते हैं। 

यह सेल्फी नहीं, किल्फी 

कुछ दिन पहले एम्स दिल्ली के शोधकर्ताओं ने भी शोध में पाया था कि 2011 से 17 के बीच 259 में से लगभग आधे लोग भारत में सेल्फी के चक्कर में मारे गए। इसके बाद सभी शहरों में खतरनाक स्थानों को नो-सेल्फी जोन के रूप में चिह्नित किया है। खतरनाक तरीके से सेल्फी लेने को केल्फी नाम दिया।

यह एप आपको करेगी आगाह

Saftie नामक ऐप, सेल्फी लेने वाले को एक चेतावनी भेजता है। यदि वे एक लोकप्रिय फोटो स्पॉट के पास हैं, जो खतरनाक प्वाइंट हैं। 

क्या कहते हैं विशेषज्ञ ? पीजीआइ की बाल रोग विशेषज्ञ व किशोरावस्था काउंसलर डॉ. पियाली भट्टाचार्या ने बताया कि हालात भयावह हैं। हमारे पास मोबाइल एडिक्शन के कई मरीज आ रहे हैं। ज्यादा सेल्फी लेने और गेम का जुनून इसका मुख्य कारण है।  केजीएमयू के मनोरोग विशेषज्ञ व टेक्नोलॉजी एडिक्शन एक्सपर्ट डॉ. आदर्श त्रिपाठी ने कहा कि यह व्यापक पैमाने पर सामाजिक व्यवहार में बदलाव का वक्त है। पहले लोग व्यक्तिगत बातें छिपाकर रखते थे। अब उन्हें खुलकर शेयर करने में भरोसा कर रहे हैं। यहां तक कि लोग हनीमून टूर भी सोशल मीडिया पर शेयर करने में गुरेज नहीं करते। मोबाइल कंपनी और सोशल मीडिया भी सेल्फी के नए-नए टूल्स प्रमोट कर रहे हैं। जिस कारण लोग इसके प्रति आकर्षित हो रहे हैं। कई बार कुछ युवाओं में सेल्फ कंट्रोलिंग की कमी होती है, जिससे वे सेल्फी के इतने आदी हो जाते हैं कि खतरनाक जगहों पर भी फोटो खींचते हैं। सेल्फी का शौक गंभीर बीमारी का रूप ले रहा है।

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