भारत-पाक युद्ध में लड़ने वाले प्रयागराज के पूर्व सैनिक को 29 साल बाद मिला न्‍याय, सेना को देना होगा दिव्यांगता पेंशन; जानिए क्‍या है मामला

सशस्त्र बल अधिकरण की लखनऊ पीठ ने वयोवृद्ध पूर्व सैनिक सच्चिदानंद शुक्ल को दिव्यांगता पेंशन जारी करने के आदेश सेना मुख्यालय को दिए हैं। आदेश का अनुपालन न करने पर सेना को आठ प्रतिशत ब्याज भी देना होगा।

By Rafiya NazEdited By: Publish:Mon, 06 Sep 2021 03:05 PM (IST) Updated:Mon, 06 Sep 2021 03:05 PM (IST)
भारत-पाक युद्ध में लड़ने वाले प्रयागराज के पूर्व सैनिक को 29 साल बाद मिला न्‍याय, सेना को देना होगा दिव्यांगता पेंशन; जानिए क्‍या है मामला
29 साल बाद मिला प्रयागराज के 81 साल के पूर्व सैनिक को न्याय।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। सन 1965 के भारत पाक युद्ध में दुश्मन से मोर्चा लेने वाले एक पूर्व सैनिक को 81 वर्ष की उम्र में 29 साल के संघर्ष के बाद न्याय मिल गया। सशस्त्र बल अधिकरण की लखनऊ पीठ ने वयोवृद्ध पूर्व सैनिक को दिव्यांगता पेंशन जारी करने के आदेश सेना मुख्यालय को दिए हैं। आदेश का अनुपालन न करने पर सेना को आठ प्रतिशत ब्याज भी देना होगा।

यह है मामला: देवरिया निवासी सच्चिदानंद शुक्ल सन 1963 में सेना में भर्ती हुए थे। उन्होंने सन 1965 का युद्ध भी लड़ा और 16 वर्ष देश की सेवा करके 1979 में सेवानिवृत्त हो गए। सेना से सेवानिवृत्त होने वाले पूर्व सैनिकों को रक्षा सुरक्षा कोर दोबारा भर्ती करती है। सच्चिदानंद शुक्ल ने भी 1983 में रक्षा सुरक्षा कोर में भर्ती होकर अपनी सेवाएं दी। करीब नौ वर्ष के सेवाकाल के बाद 1992 में सच्चिदानंद शुक्ल मानसिक रूप से बीमार हो गए। सेना ने एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया। बोर्ड की संस्तुति के बाद सच्चिदानंद शुक्ल को बिना दिव्यांगता पेंशन दिए हुए घर भेज दिया गया। सच्चिदानंद शुक्ल ने ऑन डयूटी बीमार होने पर नियमानुसार दिव्यांगता पेंशन दिए जाने की मांग को लेकर रक्षा मंत्रालय और भारत सरकार को कई बार पत्र लिखा। अपनी यूनिट के अभिलेख रिकॉर्ड से भी संपर्क किया। लेकिन उनके पत्रों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। चलने में अक्षम सच्चिदानंद शुक्ल ने वर्ष 2019 में सशस्त्र बल अधिकरण की लखनऊ बेंच में अधिवक्ता विजय कुमार पांडेय के माध्यम से वाद दायर किया। अधिकरण के न्यायिक सदस्य सेवानिवृत्त न्यायाधीश उमेश चन्द्र श्रीवास्तव और प्रशासनिक सदस्य अभय रघुनाथ कार्वे की खंडपीठ के समक्ष अधिवक्ता विजय पांडेय ने दलील दी कि इतनी लंबी सेवा में बीमारी का होना स्वयं में एक प्रमाण है कि इसके लिए सैन्य सेवा उत्तरदायी है। दूसरा स्पेशलिस्ट मेडिकल टीम ने ऐसा कोई साक्ष्य सेना के समर्थन में नहीं प्रस्तुत किया है जिससे यह साबित हो सके कि इसका संबध आनुवंशिकता या वादी की लापरवाही से हो। इस पर भारत सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि इस बीमारी का पता मेडिकल एक्जामिनेशन से नहीं लगाया जा सकता क्योंकि यह एक आनुवांशिक मानसिक बीमारी है, इसलिए इस वाद को जुर्माने के साथ खारिज किया जाए।

खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद अपने आदेश में कहा कि बीमारी का लंबी सैन्य सेवा के बाद होना, उसके बारे में मेडिकल बोर्ड को कोई स्पष्ट जवाब न होना यह साबित करता है कि इस बीमारी के लिए सेना उत्तरदायी है । वह चार महीने के अंदर वादी को दिव्यांगता पेंशन दे, यदि सरकार नियत समय में ऐसा नहीं करती तो उसे आठ प्रतिशत व्याज भी वादी को देना होगा। साथ में नए सिरे से वादी का मेडिकल परीक्षण कराकर आगे की पेंशन भी सरकार तय करेगी।

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