मैनपुरी निवासी लेखिका गीतांजलि श्री ने रचा इतिहास, अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय महिला

International Booker Prize Winner Geetanjali Shree गीतांजलि श्री की रेत समाधि हिंदी की पहली कृति है जो बुकर प्राइज के लिए पहले चरण से नामिक हुई और फिर इसको बुकर प्राइज जीतने का गौरव भी मिला। इससे तो दिल्ली के राजकमल प्रकाशन का भी नाम अंतरराष्ट्रीय जगत पर चमका।

By Dharmendra PandeyEdited By: Publish:Fri, 27 May 2022 10:19 AM (IST) Updated:Fri, 27 May 2022 12:02 PM (IST)
मैनपुरी निवासी लेखिका गीतांजलि श्री ने रचा इतिहास, अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय महिला
International Booker Prize Writer From Mainpuri Geetanjali Shree

लखनऊ, जेएनएन। मैनपुरी की मूल निवासी लेखिका गीतांजलि श्री ने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार -2022 जीत प्रदेश को गौरवांवित करने के साथ ही इतिहास रचा है। अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय महिला गीताजलि श्री को उनके उपन्यास 'रेत समाधि' (टूंब आफ सैंड) के लिए अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। मैनपुरी की मूल निवासी गीतांजलि श्री फिलहाल दिल्ली में रहती है।

गीतांजलि श्री करीब तीन दशक से लेखन के कार्य में लगी है। 30 वर्ष की इस तपस्या के दौरान उनका पहला उपन्यास 'माई' था। इसके बाद 'हमारा शहर उस बरस' प्रकाशित हुआ। दोनों उपन्यास का प्रकाशन नब्बे के दशक में हुआ। इसके बाद 'तिरोहित' और 'खाली जगह' भी प्रकाशित हुए। इस दौरान गीतांजलि श्री ने कई कहानी संग्रह भी लिखे।

Take a look at the moment Geetanjali Shree and @shreedaisy found out that they had won the #2022InternationalBooker Prize! Find out more about ‘Tomb of Sand’ here: https://t.co/VBBrTmfNIH@TiltedAxisPress #TranslatedFiction pic.twitter.com/YGJDgMLD6G

— The Booker Prizes (@TheBookerPrizes) May 26, 2022

उनका उपन्यास 'रेत समाधि' विश्व की उन 13 श्रेष्ठ कृतियों में शामिल था जिनका नामांकन बुकर पुस्कार के लिए किया गया था। गीतांजलि श्री की 'रेत समाधि' हिंदी की पहली कृति है जो बुकर प्राइज के लिए पहले चरण से नामिक हुई और फिर इसको बुकर प्राइज जीतने का गौरव भी मिला। इससे तो दिल्ली के राजकमल प्रकाशन का भी नाम अंतरराष्ट्रीय जगत पर चमका है। 

गीतांजलि श्री मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की रहने वाली हैं। उनके पिता सिविल सेवा में थे, जिस वजह से उनकी परवरिश उत्तर प्रदेश के कई शहरों में हुई इस दौरान उन्होंने पाया कि हिंदी में बच्चों के पास पढ़ने के लिए किताबें ही नहीं है, जिसकी वजह से उनका रूझान हिंदी लेखनी की ओर हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई। उन्होंने बाद में दिल्ली के लेडी श्रीराम कालेज से स्नातक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए किया। गीतांजलि थियेटर के लिए भी लिखती हैं, फेलोशिप, रेजिडेंसी, लेक्चर आदि के लिए देश-विदेश की यात्राएं करती हैं। 

गीतांजलि श्री के 'रेत समाधि' उपन्यास का मुकाबला पांच अन्य किताबों से था। उनका उपन्यास के अंग्रेजी अनुवाद 'टूंब आफ सैंड' की अनुवादक डेजी रॉकवेल है। करीब 50 लाख रूपये कीमत के इस पुरस्कार के लिए इस पुरस्कार की राशि लेखिका और अनुवादक के बीच बराबर-बराबर बांटी जायेगी।

चुपचाप और एकांत में रहने वाली लेखिका गीतांजलि श्री ने बुकर प्राइज जीतने के बाद कहा कि मैने कभी बुकर प्राइज जीतने की कल्पना नहीं की थी। कभी सोचा ही नहीं कि मैं यह भी कर सकती हूं। यह एक बहुत बड़ा पुरस्कार है। इसको पाने के बाद मैं हैरान, प्रसन्न, सम्मानित, विनम्र और गौरवांवित महसूस कर रही हूं। मैं यह सम्मान पाकर पूरी तरह से अभिभूत हूं। उन्होंने कहा कि मैने कभी बुकर पुरस्कार पाने का सपना नही देखा था। यह सम्मान मेरे लिए गर्व की बात है। गीतांजली श्री ने कहा कि मेरे और इस किताब के पीछे हिंदी और अन्य दक्षिण एशियाई भाषाओं के कुछ बेहतरीन लेखकों को जानने के लिए विश्व साहित्य अधिक समृद्ध होगा।

प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली किसी भी भारतीय भाषा की यह पहली पुस्तक बन गई है। गीतांजलि श्री की पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद डेजी राकवेल ने किया है। उनका उपान्यास टूंब आफ सैंड, भारत के विभाजन से जुड़ी पारिवारिक गाथा है, जो अपने पति की मृत्यु के बाद एक 80 साल की महिला का अनुकरण करती हैं। उनकी रचनाओं का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच जर्मन सहित कई विदेशी भाषाओं में हुआ है। गीतांजलि श्री का उपन्यास 'माई' का अंग्रेजी अनुवाद प्रतिष्ठित 'क्रॉसवर्ड अवार्ड' के लिए भी नामांकित हो चुका है। उनके लेखन शिल्प को हिंदी साहित्य में दुर्लभ माना जाता है।

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