समय रहते ग्लूकोमा के इलाज से बचाई जा सकती है आंखों की रोशनी

यह बीमारी कुछ हद तक आनुवांशिक होती है। इसलिए परिवार में अगर किसी को ग्लूकोमा है तो आंखों की जांच नियमित रूप से करवाते रहना चाहिए।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Tue, 26 Mar 2019 05:59 PM (IST) Updated:Wed, 27 Mar 2019 08:46 AM (IST)
समय रहते ग्लूकोमा के इलाज से बचाई जा सकती है आंखों की रोशनी
समय रहते ग्लूकोमा के इलाज से बचाई जा सकती है आंखों की रोशनी

लखनऊ, जेएनएन। ग्लूकोमा एक बेहद गंभीर बीमारी है। इसमें आंख का प्रेशर बढऩे लगता है। जिसकी वजह से धीरे-धीरे आंख की रोशनी भी चली जाती है। जब तक मरीज इस बीमारी को समझ पाता है तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है। पूरे विश्व में अंधेपन का यह एक प्रमुख कारण है। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, केवल इसे बढऩे से रोका जा सकता है। वहीं बच्चों में यह बीमारी जन्मजात हो सकती है। इससे बचने के लिए लक्षणों पहचान बेहद जरूरी है।  केजीएमयू के नेत्र रोग विभाग के डॉ.संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि अमूमन इस बीमारी के लक्षण 40 वर्ष के बाद दिखते हैं, लेकिन बच्चों में यह जन्मजात होते हैं। 

बच्चों में पहचान

बच्चों में ग्लूकोमा जन्मजात होता है। इसमें बच्चे की आंखों की पुतली का आकार बढऩे लगता है। आंखें आसामान्य रूप से बड़ी दिखने लगती है। इस बीमारी की खास पहचान है कि बच्चे की आंखें बुल्स आई की तरह लगने लगती है।

वक्त रहते सर्जरी जरूरी

अगर बच्चों में इस बीमारी के लक्षण दिखें तो छह माह या साल भर के भीतर इसका ऑपरेशन करवा लेना चाहिए। ऐसा न करने पर बच्चे की आंख की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है। इस बीमारी का इलाज नहीं है केवल इसे बढऩे से रोका जा सकता है। एक बार आंख की रोशनी चली गई तो दोबारा नहीं आ सकती है। इसलिए जल्द से जल्द ऑपरेशन करवाकर बची हुई आई साइट को बचाया जा सकता है।

क्या होता है ग्लूकोमा

ग्लूकोमा को आम भाषा में काला मोतिया भी कहा जाता है। हमारी आंख एक गुब्बारे की तरह होती है जिसके भीतर एक तरल पदार्थ भरा होता है। आंखों का यह तरल पदार्थ लगातार आंखों के अंदर बनता रहता है और बाहर निकलता रहता है। इस तरल पदार्थ के पैदा होने और बाहर निकलने की इस प्रक्रिया में जब कभी दिक्कत आती है तो आंखों में दबाव बढ़ जाता है। आंखों पर बढ़ा दबाव इन ऑप्टिक नर्व को डैमेज करने लगता है और आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है। अगर इसके शुरूआती लक्षणों का पता न चले तो आदमी अंधा हो सकता है।

ग्लूकोमा दो प्रकार के होते हैं

प्राइमरी ओपेन एंगल ग्लूककोमा(पीओएजी) : आंखों के बढ़े प्रेशर की वजह से ऑप्टिक नर्व में सिकुडऩ होने लगती है। जिससे नजर खराब होती है तो उसे ओपन ऐंगल ग्लूकोमा कहा जाता है। इसमें धीरे-धीरे नजर कमजोर होती जाती है। इसमें मरीज को पहले किनारे से धुंधला दिखता है बाद में सामने की विजन खराब हो जाती है। लक्षण का सही समय पर पता चल जाए तो 80 से 90 प्रतिशत तक का डैमेज रोका जा सकता है।

प्राइमरीज क्लोज एंगल ग्लूलकोमा(पीएनएजी) : इस प्रकार के ग्लूकोमा में एक्वस ह्यूमर (एक प्रकार का तरल पदार्थ जो आंखों को पोषण देता है) का प्रवाह रुक जाता है। इसके बाहर निकलने के रास्ते ब्लॉक हो जाते हैं। इसमें मरीज को तेज सिरदर्द, दिखाई देना बंद होना, आंखें लाल होना, उल्टी और चक्कर आना, धुंधलापन आने की शिकायत होती है। यदि इस समय लापरवाही बरती जाए तो एंगल्स पूरी तरह से बंद हो जाते हैं। शुरुआत में सोने से सिर दर्द ठीक हो जाता है जिसकी वजह से मरीज लापरवाही कर जाते हैं।

ग्लूकोमा के लक्षण चश्मे के नंबर में बार-बार बदलाव। पूरे दिन के काम के बाद शाम को आंख में या सिर में दर्द होना। बल्ब के चारों तरफ इंद्रधनुषी रंग दिखाई देना। अंधेरे कमरे में आने पर चीजों पर फोकस करने में परेशानी होना। साइड विजन को नुकसान होना और बाकी विजन नॉर्मल बनी रहती हैं।

किसे हो सकता है ग्लूकोमा परिवार में किसी को ग्लूकोमा हुआ हो 40 साल की उम्र के बाद 

जांच और उपचार

ग्लूकोमा होने पर आई प्रेशर टोनोमेट्री, विजुअल फील्ड चार्टिंग और ऑप्टिक डिस्क फोटोग्राफी या ऑप्टिकल कोहरेंस टोमोग्राफी होती है। यह सभी जांच केजीएमयू और पीजीआइ में उपलब्ध है। पीएनएजी में एक्वस फ्ल्यूड को बाहर जाने के लिए रास्ता बना दिया जाता है। इसमें लेजर एरोडोटमी की जाती है। वहीं पीओएजी में ऑपरेशन करके इंटरनल एरोडोट्मी से इंटरनल सर्कुलेशन को ठीक किया जाता है। इसके अलावा मेडिसिन से कंट्रोल किया जाता है।

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