High Court News: दुराचार-हत्या में फांसी की सजा पाया युवक बरी, कोर्ट ने व‍िवेचक पर की ये ट‍िप्‍पणी

बाराबंकी के एक गांव में 12 साल की नाबालिग लड़की का शव गांव की बगिया में मिला था। पिता ने उसी दिन 30 मार्च 2013 को घटना की प्राथमिकी दर्ज कराई थी। आरोप‍ित युवक को अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम बाराबंकी ने 29 अगस्त 2014 को फांसी की सजा सुनाई थी।

By Anurag GuptaEdited By: Publish:Fri, 04 Jun 2021 10:12 AM (IST) Updated:Fri, 04 Jun 2021 10:12 AM (IST)
High Court News: दुराचार-हत्या में फांसी की सजा पाया युवक बरी, कोर्ट ने व‍िवेचक पर की ये ट‍िप्‍पणी
कोर्ट की ट‍िप्‍पणी, विवेचक को मामले में डीएन जांच करानी चाहिए थी, किंतु उसने ऐसा न करके बड़ी गलती की।

लखनऊ, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक युवक को नाबालिग लड़की से दुराचार करने व बाद में उसकी गला घोंटकर हत्या करने के मामले में सात साल पहले सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि करने से इंकार करते हुए युवक को बुधवार को बरी कर दिया। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ युवक की अपील मंजूर करते हुए कोर्ट ने कहा कि अभियोजन अपना केस संदेह से परे नहीं साबित कर पाया। कोर्ट ने कहा कि वह इस बात से सचेत है कि इस मामले में बारह साल की नाबालिग के साथ यह घटना घटी किन्तु अभियोजन के साक्ष्यों से अपीलकर्ता युवक द्वारा यह कृत्य किए जाने की पुष्टि नही होती। युवक अप्रैल 2013 से जेल में है।

यह फैसला जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस राजीव सिंह की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग से सुनाया। पीठ ने 25 मार्च 2021 को सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। पीठ ने अपने फैसले में विवेचना में की गई कई गल्तियों को उजागर किया। विचारण जज ने जिस प्रकार से विचारण किया व फैसला सुनाया उस पर भी कोर्ट ने तंज कसा।

बाराबंकी के देवा थानाक्षेत्र एक गांव में 12 साल की नाबालिग लड़की घर से बाहर गई थी। वह वापस नहीं आई तो घरवालों ने उसे ढूढ़ा। उसकी लाश गांव की ही एक बगिया में मिली। पिता ने उसी दिन 30 मार्च 2013 को घटना की प्राथमिकी दर्ज कराई। बाद में गांव के ही तीन लोगों की गवाही पर अपीलकर्ता उभान यादव उर्फ अभय कुमार यादव को आरोपित बनाकर पुलिस ने उसके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल कर दिया। अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम बाराबंकी ने 29 अगस्त 2014 को युवक को फांसी की सजा सुना दी थी। युवक को संदेह का लाभ देते हुए कोर्ट ने कहा कि अभियोजन ने जिन तीन परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को पेश किया कि उन्होंने युवक को बगिया से आते हुए देखा था, उनके बयानों में भिन्नता है। विवेचक को मामले में डीएन जांच करानी चाहिए थी किंतु उसने ऐसा न करके बड़ी गलती की। 

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