किसी के लिए 'कबीर' तो किसी के लिए महज 'राहगीर'..

राजस्थान के सुनील कुमार गुर्जर 'राहगीर' म्यूजिकल जर्नी के जरिए कर रहे जागरूक, अब तक लिखे 400 से अधिक गीत, कविताएं, कहानियां व दो नावेल

By JagranEdited By: Publish:Fri, 16 Feb 2018 05:17 PM (IST) Updated:Fri, 16 Feb 2018 05:17 PM (IST)
किसी के लिए 'कबीर' तो किसी के लिए महज 'राहगीर'..
किसी के लिए 'कबीर' तो किसी के लिए महज 'राहगीर'..

लखनऊ (जागरण संवाददाता)। कभी रूढि़यों पर कटाक्ष तो कभी देशभक्ति के रंग में डूबे सुर, कभी मोहब्बत के नगमे तो कभी महाराणा प्रताप के शौर्य की गाथा। कदम जहां रुक जाते महफिल वहीं सज जाती है। कोई उन्हें 'कबीर' कहता तो कोई मुसाफिर। मगर, वो 'राहगीर' कहलाना पसंद करते हैं। जी हां, राजस्थान के सीकर शहर के निवासी सुनील कुमार गुर्जर उर्फ 'राहगीर' एक ऐसी ही म्यूजिकल सोलो जर्नी पर निकले हैं। जिसका मकसद संगीत के जरिए न केवल लोगों को खुशी देना बल्कि सामाजिक मुद्दों पर जागरूक करना भी है। जिसमें युवाओं का उन्हें खूब साथ मिल रहा है। नौ राज्यों का सफर तय करते हुए गुरुवार को वह लखनऊ शहर के मेहमान बने। इस मौके पर दैनिक जागरण कार्यालय पहुंचकर उन्होंने साझा किए अपने अनुभव।

दिल की सुनी और निकल पड़ा घर से

'राहगीर' कहते हैं, अक्सर लोग कहते हैं कि मुझे बचपन से फलां चीज का शौक था इसलिए मैं यह बन गया। मगर, मुझे न तो संगीत का शौक था और न ही लिखने का। यह शौक तो डेढ़ साल पहले मेरे भीतर जागा। 2014 में इंजीनिय¨रग करने के बाद पुणे में डेढ़ साल नौकरी की। जब लिखने का शौक जागा तो मैंने नौकरी छोड़ दी। जब लोगों ने मेरी आवाज की तारीफ की तो मैं लाइव परफार्म करने लगा। फिर दिल ने कहा कि संगीत के जरिए लोगों तक मैं अपनी बात पहुंचाऊं और निकल पड़ा सफर पर।

पहले टोका फिर दे दी इजाजत

मैं एक छोटी सी जगह से हूं जहां कभी मैंने गिटार देखा ही नहीं। जब संगीत से लगाव हुआ तो मैंने पैसे जमा करके गिटार खरीदा। हालांकि, म्यूजिक की प्रोफेशनल ट्रेनिंग नहीं ली मगर गिटार सीखा। मेरे गिटार का नाम 'फिरदौसी' है जिसका मतलब है जन्नती। जब इसे बजाता हूं तो जन्नत में होने का अहसास होता है। परिवार में पापा सेना में सूबेदार हैं, मां गृहिणी और दो छोटे भाई-बहन हैं। शुरू में भारत भ्रमण को लेकर परिवार ने मना किया, लेकिन बाद में मान गए।

लोग मिलते गए कारवां बनता गया

'राहगीर' कहते हैं, शुरू में जितने पैसे थे उनसे सफर तय किया। फिर धीरे-धीरे लोगों का साथ मिलने लगा। जिस शहर में जाता वहां लोग मेरा गाना सुनते और मदद को आगे आते। कोई वीडियो बनाकर अपलोड कर देता तो कोई सोशल मीडिया पर ट्रैवलर्स ग्रुप में टैग कर देता। इसी बीच एक ट्रैवेल कंपनी ने जब मेरा वीडियो देखा तो उसने मदद करने का ऑफर दिया। वहीं, कुछ लोग लाइव परफार्मेस का पैसा भी देते हैं। जिससे मेरा खर्च चल जाता है। महिला सुरक्षा, बालश्रम, सेना, वृद्ध आश्रम जैसे विषयों पर बहुत से गीत व रचनाएं हैं। सोशल इश्यू पर फ्री में परफार्म करता हूं। अब तक बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात होते हुए अब यूपी की यात्रा कर रहा हूं।

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