Coronavirus effect: बुजुर्ग हो रहे अवसाद के शिकार, ये सुझाव होंगे कारगर
बुजुर्गों को मानसिक अवसाद से बचाने के लिए विशेषज्ञों ने दिए सुझाव। सावधानी के साथ निकलें घर से।
लखनऊ, (कुसुम भारती)। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के चलते ज्यादातर लोगों ने बाहर निकलना कम कर दिया है। बहुत जरूरी काम होने पर ही लोग बाहर निकल रहे हैं। खासकर कुछ परिवारों ने घर के बुजुर्गों के बाहर निकलने पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है। ऐसे में, ज्यादातर बुजुर्ग अवसाद का शिकार हो रहे हैं। हालांकि, कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए अपनाया गया यह कदम सही है, मगर मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से बुजुर्गों को एकदम से घर में कैद करना भी ठीक नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं कि शरीर के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य भी बेहद जरूरी है। बुजुर्गों का घर में सारा दिन बंद रहना उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है।
रुचिकर कामों में व्यस्त करें
केजीएमयू के गिरियाट्रिक डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. भूपेन्द्र सिंह कहते हैं, एक बात का विशेष ध्यान रखें कि किसी भी समस्या में विचलित नहीं होना चाहिए। वहीं, समस्या को स्वीकार करें और फिर उस समस्या को हल करने का तरीका ढूंढें। कोरोना वायरस के मामले बढ़ रहे हैं, इसलिए परिवार के बुजुर्गों का खास ख्याल रखने की जरूरत है। घर में उन्हें उनके रुचिकर कामों में व्यस्त रखने का प्रयास करें।
जीवन के अनुभवों पर चर्चा करें
समाजशास्त्री आलोक चांटिया कहते हैं, कोरोना की वैश्विक समस्या के चलते लॉकडाउन में जिस आयु वर्ग के लोगों को सबसे ज्यादा समस्या से ग्रसित होना पड़ा, वह हैं परिवार के बुजुर्ग। समाज संबंधों का जाल है और पहली बार इस जाल में बुजुर्गों को लगातार एक जगह बंदकर बैठने से संबंधों के दायरे में घुटन महसूस हुई। ऐसे में, बुजुर्गों की मानसिकता को और भी अच्छी तरह समझने की जरूरत है। परिवार के सदस्य उनके साथ समय जरूर बिताएं। उनके जीवन के अनुभवों और पुरानी बातों पर चर्चा करें। बच्चों को उनके पास थोड़ा समय बिताने को प्रेरित करें।
दोस्तों का ग्रुप बना दें
डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल में मनोचिकित्सक डॉ. देवाशीष शुक्ला कहते हैं, बच्चे और बुजुर्ग एक समान होते हैं। यह सच है कि एक उम्र के बाद बुजुर्ग फिर से बच्चों की तरह व्यवहार करने लगते हैं। तरह-तरह की जिद करते हैं। वहीं, गिरियाट्रिक पेशेंट को न्यू बॉर्न बेबी की तरह ट्रीट करना चाहिए। यदि उनको सुबह-शाम टहलने की आदत है तो कोरोना काल के दौरान उनको घर के लॉन, बालकनी या घर के आसपास टहलने को कहें। टहलने के दौरान उनके कई दोस्त बन जाते हैं। ऐसे में आजकल वे अपने दोस्तों को मिस भी करते होंगे इसलिए उनके दोस्तों का सोशल मीडिया पर एक ग्रुप बना दें ताकि आपस में सब एक-दूसरे से जुड़ सकें।
अवसाद से निकालें
मोटीवेटर, कॉरपोरेट व स्प्रिचुअल लाइफ कोच रचना भटनागर कहती हैं, अवसाद में किसी भी व्यक्ति का आत्मबल कमजोर पड़ जाता है, खासकर बुजुर्गों का। ऐसे में, परिवार और दोस्त किसी भी इंसान को बहुत मानसिक संबल दे सकते हैं। अतः आज यह बहुत महत्वपूर्ण है कि जब भी मन में नकारात्मक विचार आएं तो खुद को अपने मनपसंद कार्य में व्यस्त कर लें। कोरोना काल भी जरूर खत्म होगा। अवसाद घेरे तो उससे बचने के उपाय ढूंढने की कोशिश करें।
मोटीवेशनल किताबें पढ़ता हूं
सिंचाई विभाग से सेवानिवृत्त हरिनारायण सिंह कहते हैं, 13 साल पहले रिटायर हो चुका हूं। उसके बाद मैंने ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय जॉइन कर लिया था। जहां योग व मेडिटेशन करने के बाद मुझे सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। घर में सिर्फ मैं और मेरा बेटा रहते हैं। बेटे के ड्यूटी पर जाने के बाद घर के काम निपटाता हूं फिर मोटीवेशनल किताबें पढ़ता हूं।